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अटल बिहारी के अनसुने किस्से: जब सोनिया गांधी का आया फोन... समझिए 'वाजपेयी' बनना क्यों मुश्किल

कारगिल युद्ध जब हुआ तो देश में केयरटेकर सरकार थी. एक वोट से वाजपेयी जी की सरकार गिर गई थी, लेकिन उस दौरान पूरा देश एक हो गया था. सारे बड़े फैसले लिए गए, सशस्त्र सेना को दिशा निर्देश दिए गए.

अटल बिहारी के अनसुने किस्से: जब सोनिया गांधी का आया फोन... समझिए 'वाजपेयी' बनना क्यों मुश्किल
  • अशोक टंडन ने वाजपेयी के सेंस ऑफ ह्यूमर और कूटनीतिक क्षमताओं के कई किस्से साझा किए
  • वाजपेयी ने 1998 में विभिन्न विपक्षी दलों को जोड़कर गठबंधन सरकार बनाई और Consensus की राजनीति की मिसाल दी
  • वाजपेयी ने कारगिल युद्ध के दौरान संतुलित दृष्टिकोण और नेतृत्व को आज भी भारतीय राजनीति में याद किया जाता है
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अटल बिहारी वाजपेयी की आज 101वीं जयंती है. 25 दिसंबर को उनका जन्मदिन होता था. अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक सोच के विरोधी तो आज भी मिलेंगे पर शायद ही कोई होगा जो अटल बिहारी वाजपेयी का विरोधी होगा. उनके लिए तो 90 के दौर में दूसरे दलों के नेता तो यहां तक कहते थे कि आदमी सही है पर पार्टी गलत. एक इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका बड़ा बखूबी जवाब दिया था. उन्होंने कहा कि अगर आदमी सही है तो पार्टी कैसे गलत हो सकती है. आज पीएम मोदी ने लखनऊ में राष्ट्र प्रेरणा स्थल का उद्घाटन किया. यहां पर वाजपेयी जी के साथ ही डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की भव्य कांस्य प्रतिमाएं लगाई गई हैं. इसके साथ ही एक अत्याधुनिक संग्रहालय भी विकसित किया गया है.

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अटल बिहारी वाजपेयी के यूं तो कई किस्से हैं, मगर प्रधानमंत्री रहते हुए उनके किस्से जानकर आपको पता चलेगा कि वाजपेयी बनना क्यों मुश्किल है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया एडवाइजर रहे अशोक टंडन ने ऐसे ही किस्सों को एनडीटीवी के साथ साझा किया. 

वाजपेयी का सेंस ऑफ ह्यूमर

अशोक टंडन ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी की सेंस ऑफ ह्यूमर की तारीफ हर कोई करता था. रैलियों में तो वो एक से एक किस्से सुनाते ही थे, मगर कूटनीति में भी इसका प्रयोग करते थे. बस लेकर जब अटल बिहारी पाकिस्तान गए थे तो एक पाकिस्तान के महिला पत्रकार ने कहा, "मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, लेकिन मुंह दिखाई में कश्मीर चाहिए."इस पर अटल जी ने जवाब दिया, "मैं शादी के लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए."   अशोक टंडन ने कहा, महिला पत्राकर ने जो सवाल पूछा था, उसमें भी एक मैसेज छुपा हुआ था और वाजपेयी ने पलट कर जो जवाब दिया, उसमें भी एक मैसेज छुपा था.

जब नवाज शरीफ भी हो गए थे मुरीद 

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अशोक टंडन ने एक और किस्सा बताते हुए कहा, 'मुझे याद है जब लाहौर के गवर्नर हाउस में अटल बिहारी वाजपेयी एक सभा को संबोधित कर रहे थे... उन्होंने दिल से पाकिस्तान की जनता से अपील की थी कि देखिए हम पड़ोसी हैं, हम दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं बदल सकते. उन्होंने दिल से पाकिस्तान की जनता से अपील की थी और उसका असर काफी ज्यादा पाकिस्तान की जनता पर पड़ा था. तब मजाक में नवाज शरीफ ने कहा कि वाजपेयी जी, अब आप तो पाकिस्तान से भी इलेक्शन जीत सकते हैं!'

सोनिया गांधी का वो फोन कॉल

अटल बिहारी वाजपेयी के व्यवहार पर अशोक टंडन ने कहा कि सांसद पर जब आतंकी हमला हुआ था तो सोनिया गांधी ने वाजपेयी को फोन किया था, उनसे पूछा था -- 'मिस्टर प्रधानमंत्री? क्या आप ठीक है? क्या आप सुरक्षित हैं? मैं आपकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हूं? उसके जवाब में अटल जी बोले - सोनिया जी, मुझे आपकी चिंता हो रही है. आप तो कहीं संसद में नहीं फंसी हुईं है. अपना ध्यान रखिए!' यह जो एक जेस्चर था, दो नेताओं का, विपक्ष और प्रधानमंत्री का, ऐसे समय में जब देश पर आफत आई थी, मेरा मानना है कि यह देश की लोकतांत्रिक राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात थी. उस समय सारा देश एकजुट हो गया था, विपक्ष एकजुट होकर वाजपेयी जी के साथ खड़ा रहा.

नया शब्द गढ़ा गठबंधन धर्म

अशोक टंडन ने बताया कि 90 के दौर में BJP एक अनटचेबल पॉलीटिकल पार्टी मानी जाती थी, लेकिन 1998 आते-आते गठबंधन को बनाना वाजपेयी जी के व्यक्तित्व का ही नतीजा था, जिसके कारण कई विपक्षी दल उनके साथ जुड़े. उनके मंत्रिमंडल में जार्ज फर्नांडिस, शरद यादव, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक, नीतीश कुमार आदि थे. आज की राजनीति में भी इनमें से कई सक्रिय हैं. वाजपेयी ने एक बड़ा राजनीतिक गठबंधन बनाया और चलाया. उसका सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्होंने चलाने में एक Consensus की राजनीति की, अपनी पार्टी का एजेंडा किसी पर नहीं थोपा था. वाजपेयी के करियर की यह सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि उन्होंने डायवर्स पॉलीटिकल पार्टियों को साथ लेकर गठबंधन सरकार बनाई और चलाई. उन्होंने COALITION DHARMA शब्द कॉइन किया था.

अटल की राह पर मोदी

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अटल बिहारी को याद करते हुए अशोक टंडन ने कहा कि आज नरेंद्र मोदी सरकार वाजपेयी की लिगेसी को आगे बढ़ा रही है. अगर कश्मीर की समस्या कि हम बात करें तो जब आतंकवाद चल रहा था, उस समय वाजपेयी जी कश्मीर गए थे और उन्होंने कहा था कि हम कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत को दायरे में रखकर कश्मीर का हल चाहते हैं और यह Kashmir के अवाम के दिलों को छू गई थी. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही तीन बातें कहकर जम्मू कश्मीर में बात को आगे बढ़ाया. वहां चुनाव होते हैं चुनाव का voting % देश के बराबर होता है. उसके बाद PM Modi ने अपना एजेंडा भी लागू किया धारा 370 को हटाकर! पीएम मोदी ने यह जो Legacy अटल जी की है, उसको सुशासन दिवस के तौर पर  मनाना शुरू किया है. सुशासन की लिगेसी को मोदी जी ने आगे बढ़ाया है.

ऐसी जंग किसी ने नहीं लड़ी

अशोक टंडन ने बताया कि वाजपेयी ने अपने कार्यकाल के दौरान बड़ी चुनौतियों को बेहद सहजता से मैनेज किया. जब कारगिल हुआ, उससे पहले अटल जी बस लेकर शांति का संदेश लेकर पाकिस्तान गए थे. अटल जी मानते थे कि उनके जैसे व्यक्तित्व का नेता अगर पाकिस्तान के साथ संबंध नहीं सुधारेगा तो आगे चलकर मुश्किल होगी. वह बस लेकर पाकिस्तान गए, उसके बाद कारगिल हुआ, लेकिन कारगिल जब हुआ और उसके बाद जिस तरह से हमारी सेना ने डटकर  मुकाबला किया, वो सभी को मालूम है. कारगिल की विजय को विजय दिवस के तौर पर आज भी याद करते हैं.

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कारगिल युद्ध जब हुआ तो देश में केयरटेकर सरकार थी. एक वोट से वाजपेयी जी की सरकार गिर गई थी, लेकिन उस दौरान पूरा देश एक हो गया था. सारे बड़े फैसले लिए गए, सशस्त्र सेना को दिशा निर्देश दिए गए. वाजपेयी एक राजनेता ही नहीं Statesman थे और उनके स्टेटमेंट्सशिप के दौरान ही देश ने प्रगति की नई राह चुनी चाहे वो आर्थिक मोर्चे पर हो या कूटनीति मोर्चे पर.

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