- नितिन नवीन 45 साल में बीजेपी के सबसे युवा और बिहार से पहले वर्किंग प्रेसिडेंट बने
- 2026 से 2029 तक पूर्व, दक्षिण भारत और लोकसभा चुनाव उनकी सबसे बड़ी परीक्षा होंगे
- संगठन, सरकार और जमीनी अनुभव के साथ बीजेपी ने युवा नेतृत्व पर भरोसा जताया
भारतीय राजनीति में ठीक उसी तरह बदलाव देखने को मिल रहा है जैसे पैर के नीचे की दबी रेत. इस तेजी से बदलते दौर में बीजेपी ने पार्टी का कमान युवा नितिन नवीन को सौंपा है. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें महज 45 साल की उम्र में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. नितिन नवीन ने इसके साथ ही अपार संभावनाओं से भरी बहुत अधिक जिम्मेदारियों वाले इस किरदार में अपना कदम रखा है. पार्टी के लिए भी यह ऐतिहासिक पल है क्योंकि वो बीजेपी के आज तक के सबसे युवा अध्यक्ष हैं. उनसे पहले यह तमगा नितिन गडकरी के नाम था, जिन्होंने 52 साल की उम्र में पार्टी की बागडोर संभाली थी. साथ ही नितिन नवीन बिहार से चुने गए पहले अध्यक्ष भी हैं, जो उस पार्टी का नेतृत्व करेंगे जिसने परंपरागत तौर पर अन्य क्षेत्रों में काफी मजबूती हासिल की है.
बेजोड़ चयन
बीजेपी संसदीय बोर्ड का यह फैसला साफ इशारा करता है कि पार्टी अब युवा नेतृत्व और संगठनात्मक ऊर्जा पर ज्यादा भरोसा कर रही है. नितिन नवीन की पहचान एक मेहनती, जमीन से जुड़े और शालीन नेता के रूप में रही है. वे वरिष्ठ बीजेपी नेता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के बेटे हैं, जो बिहार के कायस्थ समाज से आते हैं. कायस्थ समुदाय की बिहार में महज 0.6 फीसद आबादी होने के बावजूद नौकरशाही, प्रोफेशनल लोगों, शिक्षा जगत और बिहार की मीडिया में मजबूत पकड़ है. बीजेपी में मौजूद अनुभवी दिग्गज नेताओं के बीच नवीन का चुना जाना पार्टी में गतिशीलता और आबादी के उस हिस्से के बीच राजनीतिक सफलता के लिए अहम है जिसे भारत का युवा वर्ग कहा जाता है.

नितिन का राजनीतिक सफर
नितिन नवीन का राजनीतिक सफर अपने पिता के निधन के बाद बेहद अप्रत्याशित ढंग से शुरू हुआ. तब उन्होंने इंजीनियरिंग की पहले साल की पढ़ाई छोड़ कर हलचल से भरी बिहार की राजनीति में अपने कदम रखे. तब से वो कठिन से कठिन परिस्थितियों का डट कर सामना करते हुए आगे बढ़े हैं. वो राजधानी (पटना) के बांकीपुर निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चार विधानसभा चुनाव जीते तो पांचवीं बार 2006 में पटना पश्चिम से उपचुनाव में जीत हासिल की. अपने कार्यकाल में उन्होंने सड़क निर्माण मंत्री से लेकर शहरी विकास और कानून मंत्री तक कई भूमिकाएं निभाईं, यही कारण है कि शासन के विभिन्न अनुभवों से भरा उनका एक मजबूत पोर्टफोलियो बना है. युवा जोश और विशेषज्ञता से भरे ठोस अनुभव का मेल उन्हें एक ऐसा अद्भुत विकल्प बनाता है, जो पार्टी में एक बड़े संगठनात्मक बदलाव की रणनीति की ओर इशारा करता है.
Shri Nitin Nabin Ji has distinguished himself as a hardworking Karyakarta. He is a young and industrious leader with rich organisational experience and has an impressive record as MLA as well as Minister in Bihar for multiple terms. He has diligently worked to fulfil people's…
— Narendra Modi (@narendramodi) December 14, 2025
पीएम मोदी के संदेश का मतलब समझिए
मेहनती साथियों को पसंद करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया एक्स पर अपने बधाई संदेश में लिखा, "नितिन नवीन जी ने एक मेहनती कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. वह एक युवा और मेहनती नेता हैं, जिनके पास संगठन का अच्छा अनुभव है और बिहार में कई बार विधायक और मंत्री के तौर पर उनका रिकॉर्ड भी काफी प्रभावशाली रहा है."

पूर्वी और दक्षिणी भारत में आगे चुनौतियां हैं, जहां 2026 में पांच विधानसभा चुनाव होने हैं
अब जैसे ही उन्होंने जेपी नड्डा से यह जिम्मेदारी संभाली है, चुनौतियां उनके सामने खड़ी हैं, खास कर उन क्षेत्रों में जहां बीजेपी मजबूत तो बनना चाहती है पर अब तक वहां नाकामियां ही हाथ लगी हैं. बिहार के हाल ही हुए विधानसभा चुनावों ने पार्टी को उसकी कमजोरियों को उजागर करने वाला कैनवास दिया है, खास कर 2026 में आने वाले पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के चुनावों से ठीक पहले. पूर्वी भारत बीजेपी के लिए एक जटिल चुनाव क्षेत्र बना हुआ है, जहां पार्टी का प्रभाव पश्चिम और उत्तर के राज्यों की तुलना में कहीं कम है, लिहाज यहां बीजेपी को सीमित सफलता ही मिली है. पश्चिम बंगाल में विभिन्न पहचानों से बना ताना-बाना बीजेपी के राष्ट्रवादी एजेंडे का विरोध करता है, तो तमिलनाडु और केरल में क्षेत्रीय राजनीति का बोलबाला रहा है. इन राज्यों के चुनावी किलों को भेदने के बीजेपी के पिछले प्रयास धराशाई हो गए थे, लिहाजा कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन की भूमिका और भी अहम हो जाती है.
7 राज्यों में नितिन की होगी परीक्षा
2027 में, सात मुख्य राज्यों में चुनाव होने हैं, इनमें से उत्तर प्रदेश, गुजरात, गोवा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल और मणिपुर में बीजेपी सत्ता में है. वहीं 2028 में, छत्तीसगढ़ में चुनाव होंगे, जहां नितिन नवीन 2022 और 2024 के लोकसभा चुनावों के पार्टी के मुख्य प्रभारी थे. 2029 में जिन अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं, वे हैं राजस्थान और मध्य प्रदेश (दोनों में बीजेपी का शासन है), कर्नाटक और तेलंगाना (दोनों में कांग्रेस पार्टी का शासन है) और पूर्वोत्तर के चार राज्यों नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय. इसके बाद 2029 में अगला लोकसभा चुनाव होगा. ये सभी चुनाव नितिन नवीन के बीजेपी अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान होने हैं. इनमें से हर चुनाव में अलग तरह की चुनौतियां होंगी. इन चुनौतियों का सामना करने के लिए शांत स्वभाव और नरम बोली वाले अदम्य ऊर्जा से भरी शख्सियत नितिन नवीन एक आदर्श साबित होंगे.

पार्टी के एजेंडे को उभारने और जमीनी स्तर के निर्वाचन क्षेत्रों के साथ संबंध मजबूत बनाने के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी परीक्षा होगी. यहां उनका अनुभव बहुत काम आएगा, लेकिन स्थानीय उम्मीदों के अनुसार पार्टी की रणनीति को आकार देने की उनकी क्षमता ही पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्हें मजबूती देगी. पार्टी के पारंपरिक समर्थकों की उम्मीदों का संतुलन करने के साथ ही उन युवा वोटर्स के बीच अपनी पार्टी की पैठ बढ़ानी होगी जो जवाबदेही के साथ-साथ शासन के तरीके में नवाचार की मांग करते हैं.
अमित शाह, नितिन गडकरी और जेपी नड्डा जैसे पूर्व अध्यक्षों की राह पर...
नितिन नवीन के बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभालते ही उनकी तुलना अमित शाह, नितिन गडकरी और जेपी नड्डा जैसे उनके पूर्व अध्यक्षों से होना लाजिम है. इन सभी अपने तरह की संगठनात्मक ताकत और करिश्मे का इस्तेमाल करते हुए कुछ अहम मानक स्थापित किए हैं. अमित शाह ने बीजेपी को एक बेहद मजबूत चुनावी मशीन में तब्दील कर दिया, तो जेपी नड्डा ने मुश्किलों का अपनी राजनीतिक सूझबूझ के साथ सफलतापूर्वक सामना किया. वहीं नितिन गडकरी दिसंबर 2009 से जनवरी 2013 तक एक बेहद कठिन दौर में बीजेपी का नेतृत्व किया. उनका कार्यकाल संगठन के पुनर्गठन, अंत्योदय (गरीबों के उत्थान) जैसे अहम विषयों को अपनाने और 2004, 2009 के लोकसभा चुनावों में लगातार मिली दो हार के बाद भविष्य के चुनावों के लिए पार्टी को तैयार करने पर केंद्रित था.

चुनौती भी कम नहीं
अब नितिन नवीन के सामने पूर्व, पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में अपने इन पूर्व अध्यक्षों के अनुसार ही बीजेपी के नैरेटिव को दोहराने की चुनौती है, ताकि एक ऐसा मैसेज तैयार हो जो सबको साथ लेकर चलने वाला और उम्मीदों भरा हो. उन्हें ऐसे दृढ़ विश्वास के साथ पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए, जो न केवल अपने पोजिशन को समझता हो बल्कि उन्हें परंपराओं में अपनी जड़ें जमाए पार्टी के भीतर नई पीढ़ी के बदलाव के प्रतीक के रूप में भी देखा जाए.
संघ परिवार के थिंक टैंप इंडिया फर्स्ट फाउंडेशन के निदेशक श्री दुर्गानंद कहते हैं, "पैर में चक्कर, दिल में टक्कर, मुंह में शक्कर, नितिन नवीन के पास एक बीजेपी कार्यकर्ता के सभी आदर्श मौजूद हैं.” वे कहते हैं, नवीन नरम बोलने वाले और बहुत अधिक विनम्र है, तो साथ ही बहुत मेहनती हैं, काम के लिए पूरे देश में घूमते रहते हैं. दुर्गानंद कहते हैं कि उनके कोई दुश्मन नहीं हैं, केवल चाहने वाले हैं.
कार्यकारी अध्यक्ष के सामने चुनौती
नितिन नवीन को बीजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाना एक बड़ा दांव है जो बदलते राजनीतिक माहौल को समझने की पार्टी के नजरिए को दर्शाता है. एक ऐसे देश में जिसका तेजी से शहरीकरण हो रहा है, जहां बहुत बड़ी संख्या में युवा आबादी है, उनका नेतृत्व एक अधिक समावेशी पार्टी की तरफ बढ़ते बीजेपी का संकेत हो सकता है— या, इसके विपरीत, संगठन के ढांचे के भीतर के गहरे दरारों को उजागर कर सकता है. जब वो पार्टी को कई राज्यों में होने वाले हाई प्रेशर चुनावों की चुनौतियों का सामना करने की ओर बढ़ रहे हैं तो क्रिकेट की भाषा में यह कहना बिल्कुल सटीक होगा कि एक मुश्किल पिच पर बैटिंग करने जा रहे हैं. जहां बल्लेबाज को बेहद संयम, मजबूत डिफेंस, और समझदारी भरे शॉट्स के चयन की जरूरत होती है. फोकस पिच पर टिके रहने पर होता है- सॉफ्ट हैंड से खेलना, जोखिम कम से कम लेना, (पीछे हट कर या आगे बढ़कर ) क्रीज का सही इस्तेमाल करना, लगातार एक छोर से दूसरे छोर पर जाना, और सही मौके के इंतजार में मानसिक रूप से दृढ़ बने रहना. दुर्गानंद के अनुसार, उनमें (नितिन नवीन में) ये सभी खूबियां मौजूद हैं.
आने वाले कुछ साल न सिर्फ नवीन के सामने कई राज्यों के विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी की विचारधारा और विश्वसनीयता को बनाए रखने की बड़ी चुनौती रखेंगे, बल्कि यह दौर उस विरासत में उनकी जगह भी तय करेगा, जो युवा ऊर्जा और नए जोश की राह देख रहा है. खेल शुरू हो चुका है, जहां दांव पहले के मुकाबले कहीं बड़े हैं.
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