COVID-19 के ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron) के पहले मामले की पुष्टि के बाद केरल (Kerala) के तिरुवनंतपुरम (Thiruvananthapuram) में राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (Rajiv Gandhi Centre for Biotechnology) में 30 और सैंपलों पर जीनोम सीक्वेंसिंग टेस्ट चला रहा है. जैसे ही एनडीटीवी ने लैब में कदम रखा, जहां नमूनों पर प्रारंभिक 8 घंटे का काम किया जाता है, तो टीम के सदस्यों को पीपीई किट पहने देखा गया, जो अलग-अलग कैबिनों में सैंपलों पर काम कर रहे थे. केरल में 12 दिसंबर को ब्रिटेन से लौटे यात्री में ओमिक्रॉन की पुष्टि हुई है.
जीनोम सीक्वेंसिंग करने वाली लैब के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ राधाकृष्णन ने एनडीटीवी को बताया कि हमने पहले ओमिक्रॉन पॉजिटिव मरीज के संपर्क में आए चार लोगों के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे हैं. इसके अलावा, यात्रियों के राज्य में विभिन्न अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों से हमें लगभग 25 सैंपल प्राप्त हुए हैं, जिनकी कोविड-19 की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है.
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इस केंद्र में जीनोम सीक्वेंसिंग में अधिकतम 72 घंटे तक का समय लग सकता है. वहीं पूरी क्षमता से काम करने पर भी जैव सूचनात्मक डिटेल के लिए एक या दो दिन का अतिरिक्त समय भी लग सकता है.
डॉ राधाकृष्णन ने जानकारी देते हुए बताया कि हमारे पास एक दिन में 3,000 से अधिक सैंपलों के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग करने की क्षमता है. जब हमने पहले मामले की पुष्टि की तो हमारे पास केवल आठ सैंपल थे. एक फ्लो सेल का उपयोग केवल एक बार किया जा सकता है और अधिकतम 96 नमूने लिए जा सकते हैं. प्रत्येक फ्लो सेल की लागत 1.2 लाख आती है. केंद्र सरकार की इस लैब में मार्च 2020 से बिना किसी छुट्टी के चौबीसों घंटे काम किया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि यह एक नेशनल इमरजेंसी है. हमें अन्य तरह की सीक्वेंसिंग को रोकना होगा या उसके लिए अलग समय निर्धारित करना होगा और फिलहाल COVID-19 व ओमिक्रॉन को प्राथमिकता देनी होगी.
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यह पूछे जाने पर कि क्या भारत में जीनोम सीक्वेंस के माध्यम से ओमिक्रॉन की पुष्टि करने में लगने वाला समय अन्य देशों की तुलना में अधिक है, डॉ राधाकृष्णन ने अकॉम्पैक्ट हैंड-हेल्ड मशीन "ऑक्सफोर्ड नैनोपोर" को दिखाया जो उनके द्वारा उपयोग की जाने वाली तीन मशीनों में से एक है और कहा कि यह बहुत स्टैंडर्ड है. दुनिया में कोई अन्य तकनीक नहीं है, जो इससे तेज कर सकती है. क्योंकि भारत में हम जो भी तकनीक का उपयोग करते हैं, वह वर्तमान में स्वदेशी नहीं है. इसलिए अमेरिका के पास जो भी प्रणाली है, वही भारत में और दुनियाभर में इस्तेमाल की जाती है.
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