असम विधानसभा मुस्लिम विधायकों को शुक्रवार को नमाज अदा करने के लिए दिए जाने वाले दो घंटे के अवकाश को खत्म कर दिया गया है. विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय के एक बयान में कहा गया है कि शुक्रवार को मुस्लिम विधायकों के 'नमाज' अदा करके वापस आने पर दोपहर भोज के बाद सदन की कार्यवाही फिर से शुरू होती थी.
नमाज ब्रेक 1937 में मुस्लिम लीग के मुहम्मद सादुल्लाह द्वारा शुरू की गई थी. इस प्रथा का उद्देश्य विशेष रूप से मुसलमानों को ध्यान में रखते हुए नमाज के लिए छुट्टी प्रदान करना था.
असम के CM हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि दो घंटे के जुम्मा ब्रेक को खत्म करके, असम विधानसभा ने उत्पादकता को प्राथमिकता दी है और औपनिवेशिक बोझ के एक और निशान को समाप्त किया है. यह प्रथा मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्ला ने 1937 में शुरू की थी.
कौन थे मुस्लिम लीग के सैयद सादुल्लाह?
सादुल्लाह का जन्म 1885 में गुवाहाटी में हुआ था. उन्होंने गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज, और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी. मुहम्मद सादुल्ला असम में मुस्लिम लीग के नेता थे और अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें 1928 में ब्रिटिश सरकार से नाइटहुड की उपाधि मिली थी. 1936 में सादुल्लाह ने गैर-कांग्रेसी दलों के साथ गठबंधन करके ब्रिटिश भारत में असम के पहले मुख्यमंत्री बने. हालांकि, 1938 में अविश्वास प्रस्ताव हारने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
मुहम्मद सादुला के बारे में?
सादुल्ला असम से संविधान सभा के लिए चुने गए थे और विधानसभा की कार्यवाही में भाग लेने वाले 28 मुस्लिम लीग सदस्यों में से एक थे. मसौदा समिति में बैठने वाले मुस्लिम लीग के एकमात्र सदस्य थे. विधानसभा में उनका हस्तक्षेप अल्पसंख्यक अधिकारों को सुरक्षित करने के इर्द-गिर्द घूमता था.
फरवरी 1924 में सादुल्ला को असम के गवर्नर सर जॉन हेनरी केर से एक मंत्री के रूप में अपनी कार्यकारी परिषद में शामिल होने का प्रस्ताव मिला था. सादुल्ला ने तुरंत प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, परिषद सत्र शुरू होने से पहले शिलांग पहुंचने का वादा किया. लेकिन 9 दिसंबर 1924 को पद की शपथ लेने के ठीक बाद उनकी पत्नी का निधन हो गया. इस घटना से सादुल्ला को झटका लगा और उन्होंने दोबारा शादी न करने का फैसला किया. बाद में उन्होंने अपना जीवन अपने करियर, अपनी बेटी की परवरिश और अपने तीन बेटों की देखभाल के लिए लगा दिया.
सादुल्ला ने 1926 में तीसरी सुधार परिषद के लिए हुए चुनावों में बहुमत से जीत हासिल की. उन्हें एक नया मंत्री पद मिला. 1928 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई. सादुल्ला शिलांग में ग्यारह साल बिताने और असम की राजनीति से थक जाने के बाद 1935 में कलकत्ता चले गए.
फरवरी 1937 में भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुसार आम चुनाव हुए. सादुल्ला असम वापस लौटे और विधान सभा में सीट जीती. उन्हें राज्यपाल द्वारा मंत्रालय बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था.
वह 1951 में गंभीर रूप से बीमार थे. मृत्यु की संभावना थी, गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए राजनीति से सेवानिवृत्ति में साधारण जीवन को स्वीकार कर लिया. शिलॉन्ग में सर्दियों के ठंड के मौसम की कठोरता से बचने के लिए, वह मैदानी इलाकों में चले गए. 8 जनवरी 1955 को उनकी जन्मस्थली गुवाहाटी में उनका निधन हो गया.
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