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This Article is From Aug 14, 2012

मुंबई में हुई हिंसा की पहले से रची गई थी साज़िश

मुंबई: शनिवार को आजाद मैदान पर हुई तोड़फोड़ एक सुनियोजत साज़िश नज़र आ रही है। हालांकि यह साज़िश किसकी हो सकती है... इसको लेकर पुलिस कमिश्नर और क्राइम ब्रांच की राय अलग−अलग नज़र आ रही है।

आजाद मैदान पर हुआ दंगा मुबंई पु्लिस की नाकामी की एक बड़ी कहानी कहता है। वह भी तब जब पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने पुलिस कमिश्नर समेत तमाम आला अफसरों को आजाद मौदान पर बड़ी तादाद में लोगों के उमड़ने की आशंका जताई थी।

मुंबई में किसी भी भीड़ की ऐसी हिमाकत इससे पहले शायद ही कभी दिखी हो… कुछ पल के लिए नहीं… बल्कि करीब आधे घंटे से भी ज्यादा देर तक सड़क पर हिंसा का रंग दिखा... वह भी मुबंई पुलिस मुख्यालय से मात्र महज़ मिनटों की दूरी पर।

पुलिस जान बचाकर भागती दिखी… और दंगाई निडर होकर कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते रहे। लेकिन मुंबई पुलिस के मुखिया अपनी कमज़ोरी मानने को तैयार नहीं हैं।

आयोजकों ने आजाद मैदान पर सभा के लिए इजाजत मांगते समय भले ही 1500 लोगों के आने की बात कही लेकिन मैदान को भरने और अपनी ताकत दिखाने की तैयारी वे चुपचाप करते रहे।

बताया जा रहा है कि इसके लिए कुर्ला, नेहरू नगर, भिवंडी, और जोगेश्वरी जैसे इलाकों में भड़काऊ भाषण भी दिए गए। सोशल वेबसाइट और एमएमस का भी सहारा लिया।

हैरानी की बात है कि मुबंई पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने इसकी ख़ुफ़िया जानकारी मुंबई के आला अफसरों को वक़्त रहते दे दी थी लेकिन सिर्फ 700 पुलिस बल का एक रुटीन सा बंदोबस्त लगाकर पुलिस ने अपनी ज़िम्मेदारी को ख़त्म मान लिया।

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