मध्य प्रदेश के सियासी घमासान के बीच कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट में कांग्रेस की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा, ''आज हम एक अजीबोगरीब स्थिति में हैं. राज्य की जनता ने कांग्रेस पार्टी (114 सीटों) पर भरोसा किया और भाजपा ने 109 सीटें जीतीं. सबसे बड़ी पार्टी ने उस दिन विश्वास मत जीता था. 18 महीनों से बहुत ही स्थिर सरकार काम कर रही थी.'' कांग्रेस ने आगे कहा, ''स्पीकर को ये देखना होगा कि इस्तीफे स्वैच्छिक हैं या नहीं.'' दवे ने आगे कहा, ''विधायकों को अगुवा किया गया. राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट का जो आदेश भेजा वो पूरी तरह असंवैधानिक है.''
कोर्ट में दुष्यंत दवे ने कहा, ''यह साधारण फ्लोर टेस्ट का सवाल नहीं है, बल्कि बाहुबल और धन शक्ति का उपयोग करके लोकतंत्र को नष्ट करने का सवाल है.'' उन्होंने कहा, ''आज सुबह दिग्विजय सिंह वहां गए लेकिन उन्हें हिरासत में लिया गया है. वे क्या चाहते हैं, मुझे समझ नहीं आ रहा. भाजपा एक जिम्मेदार पार्टी और सत्ता में पार्टी है. हम एक संकट का सामना कर रहे हैं जो मानवता ने पहले कभी नहीं देखा है, क्या वे चाहते हैं कि अदालत अब इस पर सुनवाई करे.''
दवे ने कोर्ट में कहा कि इस समय दुनिया गंभीर समस्या से गुजर रहा है ऐसे में क्या अभी बहुमत परीक्षण जरूरी है? संविधान पीठ से तय करे कि क्या विधायक इस तरह इस्तीफा दे सकते हैं?
कांग्रेस ने अब गवर्नर पर सवाल खड़ा करते हुए उनके पत्र का हवाला दिया और कहा, ''गवर्नर ये कैसे कह सकते है कि हमारे पास बहुमत नहीं है जबकि बहुमत परीक्षण भी नहीं हुआ. कोई भी विश्वास मत केवल 16 विधायकों की उपस्थिति में होना चाहिए . यदि कांग्रेस से जुड़े 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और यदि सीट खाली हो गई है, तो विश्वास मत को उक्त 22 निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं के प्रतिनिधित्व के बिना नहीं रखा जा सकता है, जिसे केवल चुनाव द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है.''
कांग्रेस की तरफ से वकील दवे ने कहा, ''स्पीकर सदन के मास्टर हैं, वह (गवर्नर) स्पीकर को भी ओवरराइड कर रहे हैं. जब उन्होंने देश में हर चीज को बेमानी बना दिया है तो देश में उनके कोई अधिकार क्यों है?''
कांग्रेस ने कहा कि 16 बागी विधायक अभी भी बंगलोर में है. वो अभी तक वापस मध्य प्रदेश नहीं आये. ऐसे में वो चाहते है कि कोर्ट उनकी अर्जी पर सुनवाई कर उन्हें राहत दे. मैं कोर्ट से गुजारिश करता हूं कि बागी विधायकों की अर्जी पर कोई आदेश न जारी किया जाए.'' दवे ने दलील में कहा, ''या तो सभी विधायक सदन में आएं या फिर इस्तीफ़ाशुदा सीटों पर फिर से चुनाव होने तक शक्तिपरीक्षण कराने की याचिका पर सुनवाई ना हो. विधायकों को जहां रखा गया है वहां एक-कमरे का खर्च 30-40 हजार है.''
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस पर कहा, ''एक तरफ, जब मैंने "संवैधानिक नैतिकता" अभिव्यक्ति का उपयोग किया तो मेरी आलोचना की गई थी, लेकिन जब बीआर अंबेडकर ने अभिव्यक्ति का उपयोग किया था तो इसका मतलब निकाला गया कि संविधान के सिद्धांतों से ही संवैधानिक नैतिकता आया है.''
दुष्यंत दवे संविधान सभा की उस डिबेट को पढ़ा रहे है जिसमे भीम राव अम्बेडकर ने संविधान के उद्देश्य को लेकर बात कही थी. स्थिर शासन को संविधान की एक बुनियादी संरचना के रूप में माना जाना चाहिए ताकि कोई भी निर्वाचित सरकार की स्थिरता के खिलाफ काम न करे. राज्यपाल के पास रात में सीएम या स्पीकर को कुछ भी करने के लिए निर्देश भेजने का कोई बिजनेस नहीं था. जिसपर कहा, ''तभी पांच साल के कार्यकाल का प्रावधान रखा गया है.''
दवे ने कहा, ''एक विधायक का कर्तव्य है, अपनी शपथ के अनुसार, जब कोई आपसे चार्टर्ड फ्लाइट और एक सुंदर होटल में ठहरने का वादा करता है, तो उसे भागना नहीं है. उनका कर्तव्य लोगों के प्रति है.'' कोर्ट ने पूछा, ''अभी तक कितने विधायकों का इस्तीफा मंजूर हुआ है.'' इस पर कांग्रेस का वकील दुष्यंत दवे ने कहा, ''6 विधायकों का.''
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ''जब स्पीकर ने 6 का इस्तीफा स्वीकार किया तो क्या उन्होंने सभी 22 विधायकों पर अपने विवेक का इस्तेमाल किया.'' इस पर दवे ने कहा, ''आज सबसे बुनियादी मुद्दा यह है कि राज्यपाल एक फ्लोर टेस्ट के लिए कैसे निर्देशित कर सकते हैं? वह यह तय करने वाले कोई नहीं है. इस्तीफे पर निर्णय लेने के लिए राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है. दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता कार्यवाही में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं है. राज्यपाल द्वारा ऐसा कोई भी आदेश संवैधानिक रूप से ठहरने वाला नहीं है.''
जस्टिस गुप्ता ने कहा, ''हम दसवीं अनुसूची पर नहीं हैं.'' इस पर दवे ने कहा, ''लेकिन फ्लोर टेस्ट के आदेश तो राज्यपाल ने दिए हैं.'' जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा, ''यही तो वे कर रहे हैं. वे अपनी सदस्यता छोड़ रहे हैं और मतदाताओं के पास फिर से जा सकते हैं.'' दवे ने कहा, ''यह एक बहुत ही सीमित व्याख्या है. कांग्रेस सरकार तुरंत ना हटे तो आसमान नहीं गिरेगा और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को जनता के बीच जाना चाहिए.''
दवे ने कहा परिस्थिति को अलग से एकांगी तौर पर देखने की बजाय समग्र में देखा जाय. जिन विधायकों के इस्तीफे मंज़ूर हो जाएं उन सीटों पर उपचुनाव हो जाय फिर शक्ति परीक्षण हो.'' दवे ने कहा कि इस चरण पर बहुमत परीक्षण की इजाजत नही दी जानी चाहिए. सभी 22 विधायकों को चुनाव में उतरने दिया जाए. इसके बाद फ्लोर टेस्ट हो.''
दुष्यन्त दवे की तरफ से बहस पूरी हुई. सिंघवी ने कोर्ट से समय मांगा जवाब दाखिल करने के लिए, लेकिन वकील मुकुल रोहतगी ने विरोध किया कहा समय देना ठीक नहीं. कोर्ट को तुरन्त आदेश देना चाहिए. रोहतगी ने कहा कांग्रेस वही पार्टी है जिसने 1975 में आपातकाल लगा कर लोकतंत्र की हत्या की थी. कांग्रेस पार्टी का मकसद केवल सत्ता में रहना है. रोहतगी ने कहा कि ये केस कोई दलबदल का केस नहीं है, ये केस विधायकों के इस्तीफा देने का है.''
वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, ''राज्यपाल राज्य के संवैधानिक मुखिया है ये उनकी जिम्मेदारी है कि वो सुनिश्चित करे कि राज्य में काम संविधान के मुताबिक चलता रहे.'' रोहतगी ने आगे कहा, ''यह सत्ता की वासना है जिसके कारण ये सभी तर्क दिए जा रहे हैं. यह अनसुनी बात है कि एक व्यक्ति जिसने बहुमत खो दिया है और एक दिन भी जारी नहीं रख सकता, अब कह रहा है कि वह 6 महीने तक जारी रखना चाहता है. फिर से चुनाव होना चाहिए और फिर एक विश्वास मत हो.''
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ''मुद्दा यह है कि उन्होंने इस्तीफा दिया है इस पर स्पीकर द्वारा परीक्षण किया जाना है. स्पीकर का कर्तव्य है कि वह यह जांचने के लिए बाध्य है कि क्या किसी को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है. स्पीकर को पहले इस्तीफा स्वीकार करना होगा. यह एक न्यायाधीश के इस्तीफे की तरह नहीं है, जहां वह अपने हाथों से इस्तीफा देता है. स्पीकर को खुद को संतुष्ट करना होगा.''
बता दें कि शिवराज सिंह चौहान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सीएम कमलनाथ, विधानसभा सचिव को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने कहा है कि आदेश की कॉपी, ईमेल, वाट्एसएप के माध्यम से बागी विधायकों को भी दिया जाए. याचिका में कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने 16 विधायकों को कब्ज़े में रखा है. साथ ही याचिका में कहा है कि 16 विधायकों की अनुपस्थिति में बहुमत परीक्षण नहीं हो सकता. कांग्रेस पार्टी ने फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल के निर्देश पर भी सवाल उठाया, जिसमें उन्होंने कहा है कि कमलनाथ सरकार पहले ही सदन में बहुमत खो चुकी है.
मुकुल रोहतगी ने बोम्मई जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि गवर्नर को राष्ट्रपति को रिपोर्ट देने की आवश्यकता होती है, अगर वे ये पाते हैं कि राज्य संविधान के अनुसार काम नहीं कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को इस तरह की रिपोर्ट बनाने से पहले एक विकल्प खोजने की कोशिश करनी चाहिए. यह A356 से पहले का एक चरण है. जब उन्होंने अपनी सरकार बनाई तो उनके पास 114 प्लस 7 थे. इसलिए आज हमें यह लेना होगा कि वे 108 प्लस 7 हैं. अब राज्यपाल ने कहा कि आप बहुमत खो चुके हैं, 16 का आधार है. सवाल यह है कि क्या उन्होंने इस्तीफा दिया है?
रोहतगी ने कहा कि तथ्यात्मक स्थितियों में न घसीटें. एक बहुत ही सीमित प्रश्न है, जिसे अदालत को अभी तय करने की आवश्यकता है. राज्यपाल को राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव से पहले विकल्प का पता लगाना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक चिंता जो हमारे पास है वह यह है कि स्पीकर ने इन 16 के लिए फैसला नहीं किया है. उनका कहना है कि 16 को बेंगलुरु भेज दिया गया है. हम विधायकों को कार्यवाही में शामिल होने के लिए मजबूर नहीं कर सकते, लेकिन हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अपना फैसला ले सकें. यह एक संवैधानिक न्यायालय का कर्तव्य है.
रोहतगी ने कहा कि ये लोग कह रहे हैं कि ये विधायक अगवा किए गए हैं. लेकिन ऐसे वीडियो हैं जिनमें वे कह रहे हैं कि वे अपनी मर्जी से आए हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने विधायकों द्वारा दिए गए हलफनामे को देखकर कहा कि वे खुद को याचिकाकर्ता के रूप में वर्णित कर रहे हैं जैसे कि वे एक याचिका दायर करने जा रहे हैं. हमें निश्चिंत होना है, यह उनकी पसंद है कि वे सदन में प्रवेश करना चाहते हैं, व्हिप
आदि का पालन करते हैं या नहीं. लेकिन निश्चित रूप से, जब आरोप है कि उन्हें कैद में रखा जा गया तो हमें यह देखना होगा कि ये उनकी स्वतंत्र इच्छा हैं. जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि ये इन 16 पर निर्भर है कि वे सदन में जाते हैं या नहीं, लेकिन ये साफ है कि इनको बंधक बनाकर रखा नहीं जा सकता. हम इसे कैसे सुनिश्चित करें? हालांकि हम ये नहीं कह रहे कि उन्हें बंधक बनाया गया है.
रोहतगी ने कहा कि हमारे पास वीडियो हैं जिसमें वे कह रहे हैं कि हम फ्री हैं. स्पीकर जो चाहे करें, वे नहीं आना चाहते. एक मात्र सवाल यह है कि राज्यपाल के आदेश का पालन किया जाना था या नहीं. 22 विधायकों ने इस्तीफा दिया, राज्यपाल को बताया गया कि उनके पास प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर आने के पर्याप्त कारण नहीं थे? यह देखने के लिए एक उचित दृष्टिकोण है कि इस मामले का अंत हो. इसके बाद संवैधानिक प्राधिकार की दिशा में हस्तक्षेप करने के लिए कुछ भी नहीं है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने फिर से बागी विधायकों द्वारा दायर हलफनामों को देखा और कहा कि एक अदालत कैसे सुनिश्चित करे कि विधायकों ने अपनी इच्छा से फैसला किया है. एक संवैधानिक अदालत के रूप में, हमें अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करना होगा. इसे सुनिश्चित करने के लिए क्या तरीके हो सकते हैं? हम यह नहीं कह सकते कि हमने टीवी पर देखा है और इसलिए हम निश्चित हैं. हम एक संवैधानिक न्यायालय हैं और हमें यह सुनिश्चित करना होगा.
कोर्ट ने कहा कि हमें केवल यह सुनिश्चित करना है कि ये 16 अपने अधिकार को स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर सकें. यदि वे आना पसंद करते हैं, तो वो विधानसभा में आसानी से बिना मुश्किल से जा सकें. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम विधायिका के रास्ते में नहीं आने वाले. हम जानते हैं कि ये 16 ही संतुलन को एक या दूसरी तरफ झुकाते हैं. बस हमें इस बात की सहायता चाहिए कि इसका तौर तरीका क्या हो. हम विधायिका के रास्ते में नहीं आने वाले. हम जानते हैं कि ये 16 ही संतुलन को एक या दूसरी तरफ
झुकाते हैं. बस हमें इस बात की सहायता चाहिए कि इसका तौर तरीका क्या हो.
रोहतगी ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल चाहें तो कल विधायकों से मिल लें. मुलाकात की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जा सकती है. हालांकि जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस पर कोई आदेश जारी नहीं किया है.
रोहतगी ने कहा कि आखिर कांग्रेस उन विधायकों को भोपाल क्यों बुलाना चाहती है, जबकि वे कांग्रेस से मिलना ही नहीं चाहते. कांग्रेस उनसे मोलभाव कर खरीद फरोख्त करना चाहती है. उन्होंने दलील दी कि अगर कोई सीएम फ्लोर टेस्ट से बच रहा हो तो यह साफ संकेत है कि वह बहुमत खो चुका है. राज्यपाल को बागी विधायकों की चिट्ठी मिली थी. उन्होंने सरकार को फ्लोर पर जाने के लिए कहकर वही किया जो उनकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है
रोहतगी की दलील पूरी होने के बाद 16 बागी विधायकों की तरफ से मनिंदर सिंह ने बहस की. मनिंदर सिंह ने कहा कि हमारा इस्तीफा केवल लोकतंत्र को मजबूत करने के इरादे से है. हमने अपनी विचारधाराओं के कारण इस्तीफा दे दिया. यह अदालत ये कैसे देखेगी कि हमने कैसे और क्यों इस्तीफा दिया. इस्तीफे पर फैसला करने के लिए एक स्पीकर के संवैधानिक कर्तव्य के बारे में क्या? क्या वह अनिश्चितकाल तक इस पर बैठ सकता है? क्या वह बस बैठा रहे और कोई जांच शुरू नहीं करे. हम कहते हैं कि यह सरकार विश्वास खो चुकी है और इसे फ्लोर टेस्ट के लिए जाना चाहिए. राज्यपाल की संतुष्टि पर्याप्त है.
मनिंदर सिंह ने कहा कि इस्तीफा देने का अधिकार संविधान का दिया अधिकार है. लेकिन इस्तीफा स्वीकार करने के लिए स्पीकर का संबंधित कर्तव्य क्या है? क्या वह इस्तीफे पर बैठ सकता है, क्या वह यह चुन सकता है कि वह कुछ स्वीकार करेगा, दूसरों को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि राजनीतिक खेल चल रहा है? ये गलत है कि उनका अपहरण कर लिया गया था और ज़बरदस्ती के सभी आरोपों को रफा-दफा कर दिया गया था. उनके इस्तीफे को स्वीकार करने के लिए स्पीकर को निर्देश जारी किया गया. स्पीकर व्यक्तिगत सत्यापन के लिए क्यों कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि आप कह सकते हैं कि मैं आपके इस्तीफे पर बैठा रहूंगा. लेकिन आपके लिए एक व्हिप जारी करूंगा ताकि शेड्यूल X का एक मामला हो जाए. मनिंदर सिंह ने कहा कि हम संविधान के मुताबिक कोई भी सज़ा भुगतने को तैयार हैं लेकिन भोपाल जाने या कांग्रेस नेतृत्व से मिलने को तैयार नहीं हैं.
स्पीकर की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि क्या सदन की कार्यवाही के दौरान कोर्ट स्पीकर के अधिकारों में कटौती कर सकता है? भारत के संविधान का अनुच्छेद 212 अदालतों को सदन के अंदर होने वाली कार्रवाइयों पर संज्ञान लेने से रोक देता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह नजरअंदाज कर दी गई कि यह एक चालू विधानसभा है न कि एक ताजा या नई विधानसभा. और यह अदालत कभी भी विधानसभा में स्पीकर के विवेक के साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकती.
उन्होंने कहा कि ये एक तरीके का जुगाड़ है. चलती हुई विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश है. विधानसभा के नियमों का पालन किए बिना राज्यपाल स्पीकर की शक्तियों में हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं? यदि राज्यपाल को नियमों का पालन किए बिना एक चल रहे सदन में हस्तक्षेप करने के लिए कहा जाए तो कौन सी विधानसभा इस तरह से टिकेगी?
उन्होंने कहा कि 19 इस्तीफों में से 7 को एक ही व्यक्ति ने लिखा है, जिस पर विभिन्न विधायकों ने हस्ताक्षर किए हैं. दो लोगों ने 6-6 विधायकों के लिए पत्र लिखे. पत्र लगभग समान हैं और इसकी दो पंक्तियां हैं. इसे इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्यपाल ने टीवी पर कुछ देखा. यह एक नया अनुच्छेद और न्यायशास्त्र है. सिंघवी ने कहा कि बीजेपी इस अदालत को संवैधानिक पाप करने को कह रही है. सिंघवी ने कहा कि इन विधायकों में से फिर कुछ राज्य के मंत्री, कुछ निकायों के अध्यक्ष बन जाएंगे. क्या सुप्रीम कोर्ट तब हर मामले में कहेगा कि राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट के लिए कहा है? स्पीकर को भूल जाइए और इसका आदेश दीजिए.
कोर्ट ने कहा कि आप उनके इस्तीफे को स्वीकार क्यों नहीं करते? क्या वे अपने आप अयोग्य नहीं हो जाएंगे? यदि आप संतुष्ट नहीं हैं तो आप इस्तीफे को अच्छी तरह से अस्वीकार कर सकते हैं. आपने 16 मार्च को बजट सत्र स्थगित कर दिया. जब आप बजट पास नहीं करेंगे तो राज्य कैसे कार्य करेगा? और ऐसा नहीं है कि आप उस दिन नहीं मिले. उस दिन विधानसभा को बुलाया गया और फिर स्थगित कर दिया गया.
सिंघवी ने कहा कि 6 विधानसभा को कोरोना के चलते स्थगित किया गया है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि आप इस्तीफा स्वीकार करते हैं, तो क्या वे सैद्धांतिक रूप से अयोग्य नहीं होंगे. इस पर सिंघवी और सिब्बल ने कहा- नहीं. सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल स्पीकर को ये नहीं बता सकते कि वे विधानसभा का संचालन कैसे करें. धरती पर कोई भी शक्ति ऐसा नहीं कर सकती. गवर्नर के पास ये अधिकार नहीं है कि वे स्पीकर से पूछें कि फ्लोर टेस्ट कब कराएं. स्पीकर के पास विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की याचिका लंबित है. अभी उस पर फैसला नहीं हुआ है. सिंघवी ने कहा कि बीजेपी की याचिका छलावा है. इस पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए. राज्यपाल स्पीकर को नहीं कह सकते कि सदन कैसे चलाना है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर से पूछा कि अगर ये विधायक आपके सामने आते हैं, तो क्या आप कोई फैसला लेंगे? बागी विधायक ने कहा - हम जाना नहीं चाहते. जस्टिस चंद्रचूड़ने कहा- वे आपके सामने आने को तैयार नहीं हैं, फिर? सिंघवी ने कहा कि कल कोर्ट को बता देंगे. बागी विधायकों ने कहा कि सुरक्षा कारणों से नहीं जाना चाहते.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक ताजा फैसले में स्पीकर को जल्दी से निर्णय लेने के लिए कहा गया है. हमें बताएं कि आप कब फैसला करेंगे? सिंघवी ने कहा कि मैं नहीं चाहता कि स्पीकर के विवेक पर पर्दा डाला जाए. मैं कल सुबह इसके बारे में सूचित कर सकता हूं.
कपिल सिब्बल ने कहा कि मैं कांग्रेस का सदस्य हूं, मैं सीएम हूं, वे (बागी विधायक) कांग्रेस के हैं, मैं उनसे मिलना चाहता हूं. मनिंदर सिंह ने कहा कि हम आपसे मिलना नहीं चाहते. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये एक समस्या है, यह एक बच्चे की हिरासत की तरह नहीं है. मनिंदर सिंह ने कहा कि बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के लिए तैयार हैं. इस पर जस्टिस ने कहा कि लेकिन यह उचित नहीं होगा. मामले की कल सुबह 10.30 बजे फिर सुनवाई होगी.
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