
- आरएसएस के तीन दिवसीय कार्यक्रम में मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर जोर दिया.
- भागवत ने कहा कि संघ स्वयंसेवकों और संबंधित संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता है.
- संघ परिवार के कुल 32 संगठन हैं, जिनमें विश्व हिंदू परिषद और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद शामिल हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का '100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज' विषय पर तीन दिवसीय कार्यक्रम मंगलवार से नई दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुआ. इसके पहले दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के भविष्य के लिए अपना दृष्टिकोण और उसे आकार देने में स्वयंसेवकों की भूमिका पर प्रकाश डाला. इस दौरान उन्होंने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों में अपने कामकाज में स्वतंत्र और स्वायत्त हैं.उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवकों पर संघ के सुझावों का पालन करने का कोई दबाव नहीं है.
क्या आरएसएस अपने स्वयंसेवकों को नियंत्रित करता है
मोहन भागवत ने कहा कि उनका संगठन अपने स्वयंसेवकों और उससे जुड़े संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संघ कोई दबाव समूह बनाने में नहीं, बल्कि सभी को एकजुट करने में विश्वास रखता है. उन्होंने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों में अपने कामकाज में स्वतंत्र और स्वायत्त हैं और उन पर संघ के सुझावों का पालन करने का कोई दबाव नहीं है.
आरएसएस प्रमुख ने इस दौरान किसी संगठन का नाम नहीं लिया. लेकिन उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय आई जब केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के संगठनात्मक मामलों को लेकर संघ और पार्टी के बीच कथित तौर पर मतभेद की खबरें हैं. बीजेपी वैचारिक रूप से आरएसएस से प्रेरित है. आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित विश्व हिंदू परिषद (विहिप), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), भारतीय मजदूर संघ जैसे कुल 32 संगठन हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से संघ परिवार कहा जाता है.

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित आरएसएस के कार्यक्रम की शुरूआत करते संघ प्रमुख मोहन भागवत.
उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक संघ से प्राप्त विचारों और संस्कार के आधार पर आवश्यक परिवर्तन और रचनात्मक सुधार लाने के लिए कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. भागवत ने कहा, "लेकिन ये स्वयंसेवक जो करते हैं, वह उनका स्वतंत्र, पृथक और स्वायत्त कार्य है. इसका श्रेय उन्हें जाता है, संघ को नहीं." उन्होंने कहा, "हालांकि, संघ को (यदि कोई बदनामी हुई है तो) इसका हिस्सा बनना होगा, क्योंकि माल हमारा गया है.''
स्वयंसेवकों और संघ का संबंध
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) का उदाहरण देते हुए, आरएसएस प्रमुख ने कहा, "हमारे स्वयंसेवक वहां काम करने गए थे. उन्होंने श्रम क्षेत्र से संबंधित पूरी दुनिया को एक नया दृष्टिकोण दिया." उन्होंने कहा कि किसी भी संगठन में सभी स्वयंसेवक नहीं होते. वहां कई अन्य लोग भी हैं, ये संगठन संघ के नहीं हैं. ये लोगों के हैं... इन संगठनों की स्थापना स्वयंसेवकों ने की है या वे वहां गए हैं." भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों और संघ के बीच का बंधन अटूट और चिरस्थायी है.
संघ प्रमुख ने कहा, लेकिन उन पर संघ की बात मानने या सुनने का कोई दबाव नहीं है. उन्होंने कहा, "वे हमारी बात समझेंगे और वही करेंगे जो उनका मन करेगा. क्योंकि वे एक खास क्षेत्र में काम कर रहे हैं जिसमें उन्हें अनुभव और विशेषज्ञता हासिल है. संघ केवल यही अपेक्षा करता है कि ऐसे संगठन ठीक से काम करें और स्वयंसेवक अच्छा प्रदर्शन करें. भागवत ने कहा, "वे स्वतंत्र और स्वायत्त हैं और धीरे-धीरे इस हद तक आत्मनिर्भर हो जाते हैं कि वे (संघ से) मदद मांगने की स्थिति में नहीं रहते. हमें केवल स्वयंसेवकों की चिंता है. वे अपने संगठनों का ध्यान रखते हैं."
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