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वहीं, सरकार का 2 साल में 7 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने का दावा बिल्कुल चौंकाने वाला है, क्योंकि देश में हर साल लगभग 1.2 करोड़ रोजगार सृजित करने की जरूरत है और सरकार के आंकड़ों के हिसाब से उससे तीन गुना ज्यादा रोजगार सृजित किए गए हैं. सरकार का यह दावा सिर्फ कागजों पर ही दिख रहा है.
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तो फिर वास्तविकता क्या है?
मुद्रा साइट पर जारी आंकड़े और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आंकड़ों में काफी समानता है. साइट पर जारी 2015 और 2016 के आंकड़ों के हिसाब से 7.45 करोड़ में से 3 लाख करोड़ रुपये इस योजना के अस्तित्व में आने के बाद से दिए जा चुके हैं. हालांकि, ऋण बढ़ाए गए हैं, लेकिन यह मुद्रा योजना से नहीं है. मुद्रा को एक पुनर्वित्त बैंक के रूप में जाना जाता है.
वास्तव में मुद्रा योजना के तहत जो लोन दिए जा रहे हैं वह बैंक और माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) के माध्यम से दिया जा रहा है. इनमें 65% बैंकों और 35% एमएफआई का हिस्सा होता है. एमएफआई के तहत लोन 2015 में 45,904 करोड़ के बाद अगले साल इसमें 23.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 2016 में यह आंकड़ा 56,837 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. वहीं, बैंकों में यह बढ़ोतरी 49% की हुई है. 2015 में जहां यह 86,000 करोड़ रुपये थी, वहीं 2016 में यह 1.28 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
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नया नहीं ऋण देना
मुद्रा के सीईओ जीजी मैमन ने यह माना कि बैंकों और एमएफआई द्वारा सूक्ष्म क्षेत्रों में ऋण नया नहीं है, लेकिन इस वृद्धि के पीछे मुद्रा की पुनर्वित्त सुविधा है. वहीं, मुद्रा के खुद के आंकड़ों के हिसाब से न तो बैंक और न ही एमएफआई ने इस सुविधा का लाभ उठाया है. 2015 में बैंकों ने मुद्रा योजना से केवल 2,671 करोड़ रुपये का ऋण लिया है. इसी प्रकार एमएफआई ने केवल 1.34 प्रतिशत ही मुद्रा को रिफाइनेंस किया है.
बता दें कि मुद्रा से पहले ही एमएफआई से गरीबों को दिए गए रुपये में इजाफा होने लगा था. वैसे एमएफआई चार्टर में गरीबों को लोन दिए जाने की प्राथमिकता रखी गई थी. यह आंकड़ा 2014 में 23500 करोड़ रुपये था, जबकि 2014 में 37500 करोड़ रुपये हो गया. यहां यह स्पष्ट है कि यह ग्रोथ 55 प्रतिशत की थी. मुद्रा योजना से पहले बैंकों द्वारा दिए गए लोन का डाटा फिलहाल उपलब्ध नहीं था लेकिन आरबीआई के 10 लाख रुपये से कम के लोन के आंकड़ो से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
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2013 में बैंकों के पास 10 लाख रुपये से कम के लोन के रूप में एक लाख करोड़ रुपये का बकाया है. वहीं यह बकाया 2014 में करीब 50 फीसदी बढ़कर 1.5 लाख करोड़ हो गया. यह आंकड़ा सवाल उठाने पर मजबूर करता है कि क्या सरकार ने केवल बैंकों और एमएफआई की लोन देने की वर्तमान प्रकिया को ही बदल दिया है जिसे नई योजना बताया जा रहा है.
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मुद्रा से मिली नौकरी का आंकड़ा नहीं
जहां तक नौकरियों के सृजन का सवाल है मुद्रा के सीईओ मैमन ने कहा कि उनके पास कोई साफ आंकड़ा नहीं है कि मुद्रा ने कितनी नौकरियां सृजित की हैं. उन्होंने कहा कि इस बारे में हमने अभी तक कोई अनुमान नहीं लगाया है. हमारे पास इसका कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन मैं समझता हूं कि नीति आयोग इस दिशा में प्रयास कर रहा है.
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