पत्रकारों से बात करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:
आम चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने देश में हर साल 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था, लेकिन आज जमीनी सच्चाई इससे काफी दूर नजर आती है. इस मुद्दे पर आलोचनाओं का सामना कर रही सरकार अब मुद्रा योजना का बखान कर रही है. सरकार के तीन साल पूरा होने के अवसर पर सरकार के मंत्रियों ने तीन साल के काम को जनता के सामने रखा था, लेकिन बेरोजगारों को नौकरी देने के मुद्दे पर सरकार काफी पिछड़ती दिख रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अभी हाल ही में यह दावा किया था कि अपने अस्तित्व में आने के 2 साल के भीतर ही मुद्रा योजना के तहत सरकार ने 7.28 करोड़ लोगों को स्वरोजगार के लिए लोन दिया है. मुद्रा योजना के तहत सरकार अब तक छोटे उद्यमियों को 3.17 लाख करोड़ रुपये का लोन दे चुकी है. इस योजना के तहत 50,000 से लेकर 10 लाख रुपये तक का लोन मिलता है.
एक रैली के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह
वहीं, सरकार का 2 साल में 7 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने का दावा बिल्कुल चौंकाने वाला है, क्योंकि देश में हर साल लगभग 1.2 करोड़ रोजगार सृजित करने की जरूरत है और सरकार के आंकड़ों के हिसाब से उससे तीन गुना ज्यादा रोजगार सृजित किए गए हैं. सरकार का यह दावा सिर्फ कागजों पर ही दिख रहा है.
यह भी पढ़ें: यूपी के इन दो जिलों में 2,500 युवाओं को रोजगार देने का दावा, बनेगा आईटी पार्क
तो फिर वास्तविकता क्या है?
मुद्रा साइट पर जारी आंकड़े और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आंकड़ों में काफी समानता है. साइट पर जारी 2015 और 2016 के आंकड़ों के हिसाब से 7.45 करोड़ में से 3 लाख करोड़ रुपये इस योजना के अस्तित्व में आने के बाद से दिए जा चुके हैं. हालांकि, ऋण बढ़ाए गए हैं, लेकिन यह मुद्रा योजना से नहीं है. मुद्रा को एक पुनर्वित्त बैंक के रूप में जाना जाता है.
वास्तव में मुद्रा योजना के तहत जो लोन दिए जा रहे हैं वह बैंक और माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) के माध्यम से दिया जा रहा है. इनमें 65% बैंकों और 35% एमएफआई का हिस्सा होता है. एमएफआई के तहत लोन 2015 में 45,904 करोड़ के बाद अगले साल इसमें 23.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 2016 में यह आंकड़ा 56,837 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. वहीं, बैंकों में यह बढ़ोतरी 49% की हुई है. 2015 में जहां यह 86,000 करोड़ रुपये थी, वहीं 2016 में यह 1.28 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
एक रैली के दौरान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह
वहीं, सरकार का 2 साल में 7 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराने का दावा बिल्कुल चौंकाने वाला है, क्योंकि देश में हर साल लगभग 1.2 करोड़ रोजगार सृजित करने की जरूरत है और सरकार के आंकड़ों के हिसाब से उससे तीन गुना ज्यादा रोजगार सृजित किए गए हैं. सरकार का यह दावा सिर्फ कागजों पर ही दिख रहा है.
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तो फिर वास्तविकता क्या है?
मुद्रा साइट पर जारी आंकड़े और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आंकड़ों में काफी समानता है. साइट पर जारी 2015 और 2016 के आंकड़ों के हिसाब से 7.45 करोड़ में से 3 लाख करोड़ रुपये इस योजना के अस्तित्व में आने के बाद से दिए जा चुके हैं. हालांकि, ऋण बढ़ाए गए हैं, लेकिन यह मुद्रा योजना से नहीं है. मुद्रा को एक पुनर्वित्त बैंक के रूप में जाना जाता है.
वास्तव में मुद्रा योजना के तहत जो लोन दिए जा रहे हैं वह बैंक और माइक्रोफाइनांस संस्थाओं (एमएफआई) के माध्यम से दिया जा रहा है. इनमें 65% बैंकों और 35% एमएफआई का हिस्सा होता है. एमएफआई के तहत लोन 2015 में 45,904 करोड़ के बाद अगले साल इसमें 23.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 2016 में यह आंकड़ा 56,837 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. वहीं, बैंकों में यह बढ़ोतरी 49% की हुई है. 2015 में जहां यह 86,000 करोड़ रुपये थी, वहीं 2016 में यह 1.28 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
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