जानकारों के अनुसार भारत अपने मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम को तीन महीने तक और बढ़ा सकता है. यह कार्यक्रम देश की अधिकांश आबादी को कवर करता है और इसकी सालाना लागत 18 बिलियन डॉलर (करीब डेढ़ खरब रुपये) से अधिक है. पहचान जाहिर न करते हुए मामले के जानकारों ने कहा है कि सरकार दिसंबर तक लगभग 80 करोड़ लोगों को मुफ्त चावल या गेहूं देना जारी रख सकती है. खाद्य मंत्रालय ने कार्यक्रम के विस्तार की मांग की है. पूर्व में तय व्यवस्था के अनुसार यह खाद्य कार्यक्रम सितंबर के अंत में समाप्त होना था. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
ब्लूमबर्ग ने पहले बताया था कि देश के वित्त मंत्रालय के रिजर्वेशनों के बावजूद खाद्य मंत्रालय ने खाद्य कार्यक्रम का विस्तार किया है. लोगों ने कहा कि वित्त मंत्रालय, जो कार्यक्रम का विस्तार करने के पक्ष में नहीं था, ने राजकोषीय दबाव और वैश्विक स्तर पर अल्प आपूर्ति के कारण दिए जाने वाले अनाज की मात्रा को कम करने का सुझाव दिया है. उन्होंने कहा कि इस बारे में जल्द ही अंतिम निर्णय आने की उम्मीद है.
यह खाद्य कार्यक्रम अप्रैल 2020 से एक सख्त कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान गरीबों की मदद करने के लिए शुरू हुआ था. इसमें हर महीने प्रति व्यक्ति 5 किलोग्राम खाद्यान्न देने की व्यवस्था है. तब से सरकार इसका आर्थिक बोझ वहन कर रही है. इससे इसकी कुल लागत बढ़कर लगभग 44 बिलियन डॉलर हो गई है.
इस मामले में खाद्य और वित्त मंत्रालयों के प्रवक्ताओं ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
मुफ्त खाद्य कार्यक्रम के विस्तार का प्रस्ताव अक्टूबर से शुरू होने वाले भारत के त्योहारी सीजन से पहले आ सकता है, जो कि आर्थिक गतिविधियों के लिहाज से महत्वपूर्ण सीजन है. इस साल के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात सहित हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं. सरकार का फैसला इस स्थिति में कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का आ सकता है.
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