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This Article is From Oct 08, 2016

मिनी सोलर पावर प्लांट स्कीम : निजी ऊर्जा कम्पनियों की बल्ले बल्ले, किसानों की 'बिजली गुल'

मिनी सोलर पावर प्लांट स्कीम : निजी ऊर्जा कम्पनियों की बल्ले बल्ले, किसानों की 'बिजली गुल'
पंजाब के मानसा में सबसे बड़े सोलर पावर प्लांट की शुरुआत
चंडीगढ़: पंजाब के मानसा में सबसे बड़े सोलर पावर प्लांट की शुरुआत हुई है. यह ज़िला किसानों की ख़ुदकुशी के लिए सबसे ज़्यादा चर्चा में रहता है. धूमधाम के साथ उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने इस सोलर पावर प्लांट का उद्घाटन किया. चुनावी मौसम में बादल सरकार सौर्य ऊर्जा में निवेश के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां गिनाने में जुटी है लेकिन छोटे किसानों के लिए मिनी सोलर पावर प्लांट स्कीम की 'बिजली गुल' कर दी गई है.

पिछले साल लॉन्च की गयी स्कीम के तहत-खेती की ज़मीन पर 1 से 2.5 मेगावॉट के मिनी सोलर पावर प्लांट लगाने के लिए निविदाएं मांगी गयीं, सरकार ने बिजली खरीदने के लिए अधिकतम 7.04 रुपये प्रति यूनिट की दर तय की, जनवरी 2016 में 281 किसानों को सरकार ने शॉर्टलिस्ट किया, नीलामी में किसानों का रेट 6.26 से 6.99 रुपये प्रति यूनिट तय हुआ. लेकिन किसानों की ख़ुशी ज़्यादा दिन नहीं टिकी. सरकार ने पहले करार करने की तारीख बढ़ाई और फिर बाद में स्कीम ही रद्द कर दी.

उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल कहते हैं कि स्कीम सिर्फ़ किसानों के लिए नहीं थी, कंपनियों के लिए भी थी. उनका रेट बहुत ज़्यादा था, इनका रेट बहुत कम है. लेकिन किसान कह रहे हैं कि बादल सरकार ने उनके साथ दगा किया. सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट रद्द करते वक़्त ये दलील दी थी कि 31 मार्च 2016 के बाद नई दरें लागू होंगी जो अभी तक घोषित नहीं की गयी हैं. 29 से 31 मार्च 2015 के बीच किसानों से ज़्यादा कीमत पर बिजली खरीदने के लिए 10 निजी कंपनियों के साथ करार किया गया.

मुक्तसर के परमजीत सिंह बताते हैं, 'कहां 50 मेगावॉट लगना है और कहां ये एक मेगावॉट लगना है, उसके हिसाब से हमारे रेट भी कम थे, हमारे बाद इन्होंने 7.01 पैसे, 7.03 पैसे और साथ में उनको तीन तीन करोड़ की सब्सिडी भी दे रहे हैं और लैंड भी दे रहे हैं. हमारी अपनी लैंड थी. लैंड कॉस्ट भी हम नहीं डाल रहे. हमारी लैंड कॉस्ट और प्रोजेक्ट कॉस्ट लगा लें तो हमें मार्जिनल रेट ही दिए थे.'

मानसा की सतिंदर कौर के दोनो बेटे विदेश जा बसे थे लेकिन जब परिवार की सोलर पावर प्लांट स्कीम पास हुई तो वतन लौटने का बहाना मिल गया. पर सरकार ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सतिंदर बताती हैं, 'यह एक ऐसी स्कीम लगी कि सरकार हमारे लिए कुछ करेगी और बच्चे जो बाहर भाग रहे हैं, वे वापिस आएंगे, लेकिन नहीं, यह सिर्फ छलावा था. हमें मिला कुछ नहीं, जबकि हम लोगों ने पैसा भी लगा दिया, ज़मीन भी खाली कर दोनों बच्चे भी आ गए. इतना खर्च करके अब दोबारा इधर उधर जॉब कर रहे हैं. हमारे साथ सरेआम फ्रॉड हुआ है.' सरकार के रवैये से हताश ज़्यादातर किसानों ने सिक्योरिटी डिपॉजिट वापिस लेने से इनकार कर दिया है और न्याय के लिए हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है.

किसानों का दावा है कि मिनी सोलर पावर प्लांट स्कीम से उन्हें खेती से आगे बढ़ने में मदद मिलती. गांव में रोज़गार के अवसर खुलते और युवाओं के पलायन पर भी अंकुश लगता लेकिन इन सभी फायदों को दरकिनार कर बादल सरकार ने निजी कंपनियों को तरजीह दी ताकि उसके शासनकाल  में निवेश के आंकड़े बेहतर नज़र आएं.

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