मणिपुर में करीब तीन महीने से जारी जातीय हिंसा के बीच गृह मंत्रालय ने बुधवार को कुकी विद्रोही समूहों के साथ बातचीत की, जिन्होंने सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (एसओओ) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. विद्रोहियों ने मणिपुर से अलग, लेकिन भारत के भीतर ही एक अलग प्रशासन की मांग की. एसओओ वार्ता का हिस्सा रहे एक शख़्स ने एनडीटीवी को बताया, ''जहां तक बातचीत का सवाल है, इसमें बदलाव आया है. पहले हम मणिपुर के अंदर क्षेत्रीय परिषद की मांग कर रहे थे. लेकिन अब हम उनसे अलग अपना प्रशासन चाह रहे हैं,''
उन्होंने कहा कि कुकियों को राज्य की राजधानी इंफाल घाटी से खदेड़ दिया गया है और उन पर शासन करने के लिए एक प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत है, इसलिए वे एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "हम राजनीतिक समाधान चाहते हैं और हमने दिल्ली को इसके बारे में सूचित किया है."
कुकी-बहुल पहाड़ी इलाकों में रहने वाले मैतेई लोग भी भागकर घाटी में आ गए हैं. वे पहाड़ी पर अपने घर लौटने में असमर्थ हैं, जैसे कुकी गंभीर विश्वास की कमी के कारण इम्फाल घाटी में लौटने से सावधान हैं. जब SOO समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, तो यह राज्य सरकार, केंद्र और विद्रोही समूहों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता था, लेकिन आज सिर्फ एसओओ उग्रवादियों को ही बातचीत के लिए दिल्ली बुलाया गया.
विद्रोहियों ने पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा और संयुक्त निदेशक (उत्तर) मंदीप तुली से मुलाकात की. “पहले, वार्ता त्रिपक्षीय थी, लेकिन अब हमें राज्य सरकार पर कोई भरोसा नहीं है. हमने केंद्र को अपनी परेशानी बताई. इसके अलावा, अगर हमारे पास अपना प्रशासन होगा, तो हम अपने पैरों पर वापस खड़े हो सकेंगे." एक अन्य विद्रोही ने कहा.
हालांकि, विद्रोहियों की मांग अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मैतई लोगों की मांग को लेकर 3 मई को मैतई और कुकी के बीच हुई झड़प से ठीक पहले की कहानी में अचानक बदलाव है. मैतई की एसटी मांग पर कुकी आपत्ति जता रहे थे, लेकिन अब यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया है और विद्रोही एक अलग प्रशासन की मांग को लेकर सामने आ गए हैं.
मैतई लोगों ने आरोप लगाया है कि यह एसओओ से जुड़े विद्रोहियों की अपने अंतिम लक्ष्य यानी अलग प्रशासन तक पहुंचने की पूरी योजना थी, जबकि एसटी विरोधी मांग का विरोध केवल एक ध्यान भटकाने वाला था. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह पूछे जाने पर स्पष्ट किया कि क्या बातचीत अभी भी तीन पक्षों के बीच है? कहा, “समझौता त्रिपक्षीय है, लेकिन अक्सर तीन पक्षों के बीच स्टैंडअलोन आधार पर भी बातचीत होती है. इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है,''
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं