
- पूर्व ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने बताया कि उन्हें RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था.
- महबूब मुजावर ने भगवा आतंकवाद की थ्योरी को पूरी तरह से झूठी करार दिया और जांच में पक्षपात की बात कही.
- जांच के दौरान महबूब मुजावर पर झूठे केस बनाए गए, लेकिन कोर्ट में वे निर्दोष साबित हुए.
Malegaon Blast Case: मालेगांव ब्लास्ट केस का सच हर कोई जानना चाहता है. इस केस पर तत्कालीन ATS अधिकारी महबूब मुजावर ने आज विस्फोटक खुलासे किए. उन्होंने बताया कि इस केस में RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने दिया था. मालेगांव ब्लास्ट केस के प्रमुख जांच अधिकारी परमबीर सिंह ने उन्हें मोहन भागवत को पकड़कर लाने का आदेश दिया था. महबूब मुजावर ने दावा किया कि “भगवा आतंकवाद” की थ्योरी पूरी तरह से झूठी थी.
'भगवा आतंकवाद हो या हरा आतंकवाद...'
इतना ही नहीं महबूब मुजावर ने बताया कि जांच के दौरान कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें कई सुविधाएं भी दी थीं. उन्होंने बताया, 'इस मामले में मेरे ऊपर झूठे केस लगाए गए, लेकिन कोर्ट से मैं निर्दोष साबित हुआ. मालेगांव ब्लास्ट केस की जांच को गलत दिशा में ले जाने की कोशिश हो रही थी, लेकिन मैंने उसका विरोध किया. इस पूरे प्रकरण में राज्य सरकार का दबाव वरिष्ठ अधिकारियों पर रहा होगा, ऐसा संदेह है. मुझे पहले ही इस गोपनीय जानकारी की भनक लग चुकी थी, इसलिए इतने सालों तक चुप रहा. भगवा आतंकवाद हो या हरा आतंकवाद, मेरा किसी से कोई लेना-देना नहीं था. मैं सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा था.'
तत्कालीन ATS पुलिस निरीक्षक ने कहा, मुझे पता था कि ये सब झूठ है, इसलिए ही मेरे खिलाफ केस दर्ज किए गए. मोहन भागवत को भगवा आतंकवाद के नाम पर फंसाने की कोशिश की जा रही थी.
सिमी पर था पहले शक
आपको बता दें कि 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के उत्तर में स्थित मालेगांव शहर में एक जबरदस्त धमाका हुआ. शुरू में एटीएस को शक था कि इसमें स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) जैसे प्रतिबंधित मुस्लिम संगठनों का हाथ हो सकता है, क्योंकि पहले हुए धमाकों में पाकिस्तान समर्थित और देशी मुस्लिम आतंकी संगठनों की भूमिका सामने आ चुकी थी. लेकिन एटीएस के तत्कालीन प्रमुख, दिवंगत आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे के नेतृत्व में हुई जांच ने देश को चौंका दिया. बाद में जांच में सामने आया कि मालेगांव ब्लास्ट में शामिल सभी आरोपी हिंदू थे और इसे "भगवा आतंकवाद" का मामला बताया गया.
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