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Manifesto FAQs: कैसे तैयार होता है चुनावी घोषणा पत्र, क्‍या हैं नियम-कानून, किस तरह के ऐलान नहीं कर सकते राजनीतिक दल?

How to Make Manifesto: कई राजनीतिक दल मेनिफेस्‍टो को संकल्प पत्र, विजन डॉक्यूमेंट, घोषणा-पत्र, प्रतिज्ञा पत्र आदि नाम देते हैं.​ इसको लेकर चुनाव आयोग के कुछ दिशानिर्देश भी तय किए गए हैं.

Manifesto FAQs: कैसे तैयार होता है चुनावी घोषणा पत्र, क्‍या हैं नियम-कानून, किस तरह के ऐलान नहीं कर सकते राजनीतिक दल?
  • घोषणा-पत्र का इतिहास 19वीं-20वीं सदी से ही जुड़ा है. भारत में 1952 के आम चुनावों से ये महत्वपूर्ण दस्तावेज बना
  • मेनिफेस्टो की तैयारी की प्रक्रिया अमूमन स्थानीय मुद्दों के विश्लेषण से वरिष्ठ नेताओं की मंजूरी तक की होती है
  • चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार चुनावी वादे संविधान, कानून और आचार संहिता के अनुरूप होने चाहिए
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Manifesto FAQ: बिहार चुनाव को लेकर बढ़ती सियासी सरगर्मी के बीच राजद-कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन के बाद अब बीजेपी-जदयू की अगुवाई वाले एनडीए ने भी अपना संकल्‍प-पत्र (Manifesto) जारी कर दिया है. NDA ने बिहार में 1 करोड़ से ज्‍यादा नौकरियां देने और 1 करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने समेत कई बड़े वादे किए हैं. अपने घोषणा पत्र में NDA ने महिलाओं, युवाओं, पिछड़ा वर्ग, किसानों और व्‍यापारियों सभी वर्ग को ध्‍यान में रखते हुए बड़ी-बड़ी घोषणाएं की हैं. महागठबंधन ने भी अपने मेनिफेस्‍टो में 'हर घर में सरकारी नौकरी देने' समेत कई बड़े ऐलान किए हैं. तेजस्‍वी यादव ने इन घोषणाओं को संभव बताया है.

कसमें, वादें, प्‍यार, वफा सब... बातें हैं, बातों का क्‍या!

मेनिफेस्टो में किए गए कई ऐलानों को लेकर जनता ऊहापोह में रहती है. एक बड़ी आबादी तो इन लोकलुभावन वादों से खूब आकर्षित होती है, वहीं बहुत से लोग कुछ घोषणाओं को असंभव बताते हैं. कुछ फीसदी लोग ये मानकर चलते हैं कि ये घोषणाएं कभी पूरी नहीं होने वालीं. कइयों के मन में तो दशकों पहले साल 1967 में आई मनोज कुमार की फिल्‍म उपकार का गीत चलता है- कसमें, वादें, प्‍यार, वफा सब... बातें हैं, बातों का क्‍या. उनके मन में कुछ ऐसे ही भाव रहते हैं.

ऐसे में मेनिफेस्‍टो यानी चुनावी संकल्‍प पत्र या घोषणा-पत्र को लेकर मन में कई सवाल पैदा होना लाजिमी है. आखिर इसकी शुरुआत कब हुई होगी? कोई राजनीतिक पार्टी अपना मेनिफेस्‍टो कैसे तैयार करती है? क्‍या मेनिफेस्टो को लेकर कोई नियम-कानून भी है? इसमें राजनीतिक पार्टियां किस तरह के वादे कर सकती हैं और किस तरह के वादें नहीं कर सकतीं? इन तमाम सवालों के जवाब यहां हम दे रहे हैं. 

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चुनावी घोषणा-पत्र का इतिहास

चुनावों के पहले लगभग हर राजनीतिक पार्टी अपना संकल्‍प पत्र यानी घोषणा-पत्र लेकर आती है. न केवल भारत में, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई देशों में राजनीतिक दल अपना मेनिफेस्‍टो जारी करते हैं. ये पार्टी का एक विजन डॉक्‍युमेंट होता है कि आने वाले समय में अगर उनकी सरकार बनी तो वे क्‍या-क्‍या काम करेंगे. 

भारत समेत दुनिया में चुनावी घोषणा-पत्र की परंपरा 19वीं-20वीं सदी में विकसित हुई. सबसे पहले 19वीं सदी के अंत में ब्रिटेन, अमेरिका जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में पार्टियों ने अपना पॉलिसी-विजन जनता के सामने पेश करना शुरू किया. 

भारत में आजादी आंदोलन के दौर में ये चलन शुरू हुआ, जब कांग्रेस समेत अन्य दलों ने अलग-अलग मकसदों के साथ घोषणा-पत्र जारी किए. स्वतंत्र भारत में पहली बार बड़े पैमाने पर 1952 के आम चुनावों में तमाम दलों ने घोषणा-पत्र पेश किए, जो बाद में लोकतंत्र के हर चुनाव-दौर का अहम दस्तावेज बन गया.​

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कोई भी पार्टी कैसे तैयार करती है मेनिफेस्टो? 

किसी भी पार्टी के घोषणा-पत्र की तैयारी कई स्तरों पर होती है. सबसे पहले पार्टी एक समिति या पैनल बनाती है. BJP, कांग्रेस और अन्‍य पार्टियां अपनी मेनिफेस्‍टो कमिटी का ऐलान भी करती है और इनके सदस्‍यों के नाम सार्वजनिक भी करती है. कमिटी के सदस्य वरिष्ठ नेता, विशेषज्ञ, कार्यकर्ता और रिसर्च टीमें होती हैं.​

बिहार और उत्तर प्रदेश में दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों के कैं‍पेनिंग का काम संभाल चुकी एक एजेंसी के कर्ताधर्ता अमित कुमार बताते हैं कि निचले से ऊपरी स्तर पर (ब्लॉक, जिला, राज्य) लोगों की समस्याएं, स्थानीय मुद्दे और सुझाव एकत्र किए जाते हैं. पार्टी पदाधिकारी, कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, प्रोफेशनल आदि इन जानकारियों का विश्लेषण करते हैं और फिर प्रमुख मुद्दे तय किए जाते हैं. 

NDTV से बातचीत के दौरान उन्‍होंने बताया कि इन मुद्दों का कानूनी, सामाजिक, और आर्थिक अध्ययन किया जाता है, बजटिंग और वादों की व्यावहारिकता जांची जाती है. फिर अंतिम ड्राफ्ट पर वरिष्ठ नेताओं की मंजूरी के बाद एक डॉक्यूमेंट तैयार होता है और उसे चुनाव से कुछ दिन पहले सार्वजनिक रूप से जारी कर दिया जाता है. 

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मेनिफेस्‍टो को लेकर कोई नियम-कानून भी है क्‍या?

कई राजनीतिक दल मेनिफेस्‍टो को संकल्प पत्र, विजन डॉक्यूमेंट, घोषणा-पत्र, प्रतिज्ञा पत्र आदि नाम देते हैं.​ इसको लेकर चुनाव आयोग के कुछ दिशानिर्देश भी तय किए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2013 से ही चुनाव आयोग, पार्टियों के घोषणा-पत्र के लिए स्पष्ट निर्देश लागू कर चुका है. 

बिहार में एक पॉलिटिकल पार्टी का पीआर संभाल रहे राजनीतिक विश्‍लेषक विनीत कुमार बताते हैं, चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार ध्‍यान में रखा जाता है 

  • कोई वादा संविधान के मूल सिद्धांत, कानून या आचार संहिता के खिलाफ नहीं होना चाहिए. 
  • किसी भी ऐलान से चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता, मतदाताओं के अधिकार या लोकतांत्रिक मर्यादा को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए.​
  • घोषणा पत्र में किए गए वादों के लिए वित्तीय स्रोत या उसे पूरा करने का रोडमैप स्पष्ट करना जरूरी होता है.​​
  • पार्टियां कोई भी भ्रामक या झूठा वादा नहीं कर सकतीं जो बाद में असंभव साबित हो जाए या जानबूझकर मतदाताओं को गुमराह करता हो. 

मुफ्त वस्तु या सुविधाओं या फिर लुभावनी घोषणाओं का आधार स्पष्ट करना जरूरी होता है. ऐसा न हो कि जनता को गैरकानूनी रूप से लालच दिया जाए. 

कैसी घोषणाएं की जा सकती हैं?

  • रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जनकल्याणकारी वादे
  • कानून व्यवस्था, महिलाओं/युवाओं/वंचित समुदाय के लिए खास योजनाएं
  • क्षेत्रीय विकास, सरकारी सेवाओं का विस्तार, आर्थिक वितरण से जुड़े प्लान
  • सभी वादों के साथ खर्च और व्यावहारिकता का खुलासा जरूरी है

कैसी घोषणाएं नहीं कर सकतीं पार्टियां? 

  • संविधान या कानून के विरुद्ध कोई घोषणा, जैसे किसी धर्म या जाति के पक्ष में कोई गैरकानूनी वादा
  • हिंसा, भेदभाव, सामाजिक विभाजन या राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देने वाली बात
  • अनुचित या असंभव मुफ्तखोरी से जुड़ी घोषणाएं (फ्री जॉब, पैसे बांटने आदि)
  • ऐसी घोषणा जो चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को नुकसान पहुंचाए, जैसे कि सीधे पैसे का लालच

कुल मिलाकर घोषणा पत्र एक राजनीतिक दल की ओर से जनता के सामने पेश किया गया विजन डॉक्युमेंट होता है. पार्टियां लोकलुभावन वादे करें, लेकिन उनके पीछे तर्क, फंडिंग और व्यावहारिकता बताना जरूरी होता है. चूंकि घोषणा पत्र लोकतंत्र में जनता के निर्णय को दिशा देता है, इसलिए इसकी शुचिता और जिम्मेदारी सर्वोपरि है.  

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