
- 2024–25 के आंकड़े बताते हैं कि 1.47 करोड़ बुज़ुर्गों को वृद्धावस्था पेंशन के रूप में 6843 करोड़ रुपये मिले.
- 1.02 करोड़ महिलाओं को 3610 करोड़ रुपये विधवा पेंशन, 8.5 लाख को 243 करोड़ रुपये दिव्यांग पेंशन मिली.
- 9 साल से विधायक 1.1 लाख रुपये मासिक ले रहे हैं. इसमें अब 50 हजार रुपये बढ़ोतरी का प्रस्ताव है.
इसे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था का क्रूर मजाक ही कहेंगे कि जहां करोड़पति विधायक और मंत्री अपनी तनख्वाह-पेंशन बढ़ाने के लिए एकजुट रहते हैं, वहीं करोड़ों बुजुर्ग, विधवाएं और दिव्यांग आज भी 300 से 500 रुपये महीने की पेंशन पर गुज़ारा करने को मजबूर हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि इनके लिए पिछले 13 से 18 साल में इसमें एक रुपये का भी इजाफा नहीं हुआ है, जबकि इस दौरान महंगाई कई गुना हो चुकी है और नेताओं की सुविधाएं कई बार बढ़ाई जा चुकी हैं.
RTI से हुआ खुलासा
मध्यप्रदेश में नीमच के आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ को ग्रामीण विकास मंत्रालय से मिले जवाब में यह पूरी हक़ीक़त दर्ज है. राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) 15 अगस्त 1995 को शुरू हुआ था. तब इसमें तीन योजनाएं थीं- वृद्धावस्था पेंशन, राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना और मातृत्व लाभ योजना. वर्ष 2000 में अन्नपूर्णा योजना जोड़ी गई और मातृत्व योजना स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंप दी गई.
2011-12 में तय हुई 500, 300 पेंशन
साल 2007 में "निर्धन" की परिभाषा हटाकर बीपीएल मानक लागू किया गया और पेंशन 75 से बढ़ाकर 200 रुपये कर दी गई. 2009 में विधवा और विकलांग पेंशन योजनाएं शुरू हुईं. 2011 में 80 साल से ऊपर के बुजुर्गों के लिए 500 रुपये और 2012 में विधवाओं व विकलांगों के लिए 300 रुपये पेंशन तय की गई. इसके बाद से अब तक इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई.
आज की स्थिति यह है कि 40–79 साल की विधवाओं को 300 रुपये और 80 साल से ऊपर की विधवाओं को 500 रुपये मिलते हैं. वृद्धावस्था और दिव्यांग पेंशन भी इन्हीं दरों पर अटकी हुई है. आरटीआई साफ़ कहती है कि न रकम बढ़ाने का कोई प्रस्ताव है और न उम्र की सीमा घटाने की तैयारी.
हर लाभार्थी को रोज 10–15 रुपये
2024–25 के आंकड़े बताते हैं कि 1.47 करोड़ बुज़ुर्गों को वृद्धावस्था पेंशन के रूप में 6843 करोड़ रुपये मिले. 1.02 करोड़ महिलाओं को विधवा पेंशन के तहत 3610 करोड़ रुपये प्राप्त हुए. वहीं 8.5 लाख विकलांगों को दिव्यांग पेंशन में 243 करोड़ रुपये हासिल हुए. चौंकाने वाली बात ये है कि कागज़ों पर यह करोड़ों की राशि है, लेकिन हक़ीक़त में हर लाभार्थी को रोज़ाना 10–15 रुपये से ज़्यादा नहीं मिलते.
विधायकों का वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव
अब ज़रा मध्यप्रदेश विधानसभा की तस्वीर देखिए. पिछले नौ साल से विधायक 30,000 रुपये वेतन और 35,000 रुपये चुनाव भत्ता समेत कुल 1.1 लाख रुपये मासिक ले रहे हैं. अब विधानसभा ने प्रस्ताव दिया है कि इसमें 50 हजार रुपये की बढ़ोतरी की जाए, ताकि वेतन 1.6 लाख रुपये हो जाए. इतना ही नहीं, पूर्व विधायकों की पेंशन 35 हजार से बढ़ाकर 70 हजार रुपये करने का भी प्रस्ताव है. अगर ये लागू हुआ तो एमपी के विधायकों को राजस्थान-गुजरात के विधायकों से भी ज़्यादा वेतन मिलेगा.
230 में से 205 विधायक करोड़पति
एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (ADR) की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश के 230 विधायकों में से 205 करोड़पति हैं. इनमें से 102 विधायकों की संपत्ति 5 करोड़ रुपये से ज़्यादा है. फिर भी, सभी दलों के नेता वेतन बढ़ाने की पैरवी में एकजुट हैं.
कांग्रेस विधायक आतिफ़ अकील कहते हैं कि अगर सैलरी बढ़ी तो हम क्षेत्र का विकास बेहतर कर पाएंगे. वहीं भाजपा के पूर्व मंत्री अरविंद भदौरिया कहते हैं कि विधायक का वेतन वेतन नहीं, मानदेय है. इसे सेवा भाव से देखना चाहिए और बढ़ाना चाहिए.
सवाल ये है कि जब करोड़पति विधायक अपनी जेबें भरने के लिए राज्य की गरीब जनता पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं, तो सरकारें करोड़ों विधवाओं, बुज़ुर्गों और विकलांगों को महज 300 रुपये पर ज़िंदा रहने को मजबूर क्यों करती हैं? पेंशन की रकम बढ़ाने का क्यों कोई प्रस्ताव तक नहीं है?
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