Lok Sabha Elections 2024: पश्चिमी उप्र की अमरोहा सीट (Amroha Seat) की सियासी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. यहां निवर्तमान सांसद और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार कुंवर दानिश अली (Kunwar Danish Ali) का मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर (Kanwar Singh Tanwar) से है,लेकिन बीएसपी उम्मीदवार के चलते अमरोहा का मुस्लिम मतदाता असमंजस में है.
तहजीब, ढोल और आम का शहर अमरोहा
बिच्छू वाली मजार.....वासुदेव मंदिर...शेरो-शायरी की पौधशाला और ढोल का शहर है अमरोहा... और यहां के लिए किसी ने ठीक ही कहा है कि "अमरोहा शाह ए तख्त है, गुजरां यहां की सख्त है, जो छोड़े वो कमबख्त है..." आज से पचास साल पहले ये बात मशहूर शायर जॉन एलिया ने कही थी, क्योंकि आजादी के दस साल बाद वो पाकिस्तान चले गए चूंकि अब लोकसभा चुनाव चल रहे हैं तो अमरोहा छोड़ने वाली बात सियासी मुद्दा क्यों बना है..आइए तहजीब, ढोल और आम के इस शहर में समझने की कोशिश करते हैं.
मोदी-योगी के काम से खुश हैं लोग- कंवर सिंह तंवर
दिल्ली-बरेली हाइवे पर एक आलीशान फार्म हाउस, उप्र के अमीर प्रत्याशियों में से एक बीजेपी के कंवर सिंह तंवर का है. यहां दर्जनों लग्जरी गाड़ियां...हेलीपैड पर खड़ा हेलीकॉप्टर...और सुबह से ही अपने सैकड़ों समर्थकों से घिरे कंवर सिंह तंवर चुनावी प्रचार के लिए निकल जाते हैं. 214 करोड़ की चल अचल संपत्ति के मालिक कंवर सिंह तंवर अमरोहा के ऐसे नेता माने जाते हैं, जो एसी एंबुलेंस चलाने से लेकर स्कूल खोलने तक का काम अपने खर्चे पर करा देते हैं, हालांकि इन सबके बावजूद 2019 में कुंवर दानिश अली से इनको सियासी शिकस्त मिली थी. अमरोहा से बीजेपी के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर ने दानिश अली को लेकर कहा कि गांव के लोग उन्हें यहां घुसने नहीं देते. उनका ना तो यहां घर है न दफ्तर. उनसे कोई मुकाबला नहीं है. पीएम मोदी और सीएम योगी के काम से लोग खुश हैं.
दानिश अली को नहीं मिल रहा सपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का समर्थन
उधर, 2019 में बीएसपी के टिकट से जीत का परचम लहरा चुके कुंवर दानिश अली इस बार इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनके सामने दो मुश्किलें हैं, पहली जिस दलित-मुस्लिम गठजोड़ से पिछली बार चुनावी नैय्या पार लगी थी वो इस बार नहीं है. दूसरा अमरोहा में सपा के नेता उनके साथ प्रचार करते नहीं दिख रहे हैं. इस पर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार कुंवर दानिश अली ने कहा कि देखिए बीजेपी का काम है, हिन्दुओं के ध्रुवीकरण का, लेकिन मैंने संसद में गरीब मजदूरों की आवाज उठाई है.
वैसे चुनाव में जीत और हार नंबर पर निर्भर होती है. मुसलमानों के पास यहां चार, दलित के पास तीन अंक हैं, जब ये दोनों मिलेगा तभी बीजेपी को हराया जा सकता है. दानिश अली के साथ समाजवादी पार्टी का नेता नहीं हैं, हालांकि कागज पर गठबंधन है, लेकिन कार्यकर्ता साथ नहीं दे रहे हैं.
बीएसपी ने चुनावी मुकाबला बना दिया है रोचक
अमरोहा के सियासी मुकाबले को वैसे बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मुजाहिद हुसैन ने दिलचस्प बना दिया है. मुजाहिद दावा करते हैं कि इस चुनावी गणित के जीत का फार्मूला है मुस्लिम-दलित गठजोड़, जो उनके पास है. आंकड़े देखें तो पता चलता है.अमरोहा लोकसभा सीट पर पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5.70 लाख, एससी 2.75 लाख, जाट 1.25 लाख, सैनी 1.25 लाख व अन्य 5 लाख के करीब हैं. बीएसपी उम्मीदवार मुजाहिद हुसैन ने कहा कि मुसलमान समझ चुका है कि दानिश अली के पास अपना वोट जीरो है. कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, उनका अपना वोटबैंक यहां है ही नहीं. दूसरा क्षेत्र में वो दिखते नहीं हैं, कौन देगा, उनको वोट.
ढोलक बनाने वालों को बीजेपी ने दी कई सुविधाएं
वैसे हर पार्टी जानती है कि इस चुनाव में जीत का ढोल तभी बजेगा जब अमरोहा के ढोलक बनाने वालों को सहूलियत मिलेगी. देश दुनिया में अमरोहा ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां ढोलक बनता है. बीजेपी सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रॉडक्ट के तहत ढोलक बनाने वालों को कई सुविधाएं दी हैं. ढोलक व्यवसायी शक्ति कुमार ने कहा कि 2017 से योगी सरकार ने हमे कई सहूलियत दी. पहले यहां तीन हजार लोग काम करते थे, अब डेढ़ लाख लोग इस रोजगार से जुड़े हैं, इसमें ज्यादातर मुस्लिम हैं.
वासुदेव मंदिर के साथ बिच्छू वाली मजार पर भी नेता करते हैं इबादत
वैसे इस चुनावी मौसम में नेता अमरोहा के प्राचीन वासुदेव मंदिर में सिर झुकाने जाते हैं तो बिच्छू वाली मजार पर भी इबादत करने जाते हैं. बेशक, अमरोहा संसदीय सीट की सियासी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है.अनुसूचित जाति के वोटरों को रिझाने की कोशिश बीजेपी, बीएसपी और इंडिया गठबंधन तीनों कर रहे हैं, लेकिन ढोल नगरी अमरोहा में किसका डंका बजेगा ये चुनावी नतीजों के बाद पता चलेगा.
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