370 का टारगेट हासिल करना BJP के लिए संभव या असंभव? क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

अमिताभ तिवारी ने कहा कि जब टारगेट नहीं होगा तो फिर हासिल कैसे होगा? सवाल यह है कि विपक्ष का टारगेट क्या है? मिशन 370 बीजेपी पूरा कर सकती है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 303 सीटों पर जीत मिली थी. जिनमें से 151 सीटों पर जीत का अंतर 20 प्रतिशत से भी अधिक रहा था.

नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha election 2024) के पहले चरण के लिए शुक्रवार को देश के 102 सीटों पर वोट डाले गए. देश में 7 चरण में 543 सीटों पर चुनाव होने हैं. भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने अपने लिए इस चुनाव में 370 और एनडीए के लिए मिशन 400 का टारगेट रखा है. बीजेपी की तरफ से इसे लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं. पार्टी ने अपने कई सांसदों के टिकट भी काट लिए हैं. उम्मीदवारों के चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक में बेहद सावधानी बरती गयी है.

एनडीटीवी की टीम ग्राउंड जीरो पर लगातार जनता के नब्ज को समझने की कोशिश कर रही है. ऐसे में पहले चरण के मतदान के बाद क्या है हालात और क्या बीजेपी अपने मिशन में सफल हो पाएगी? इस विषय को जानने के लिए  राजनीति के 2 एक्सपर्ट हमारे मैनेजिंग एडिटर मनोरजन भारती और राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी से बात की.

बीजेपी के मिशन 370 को लेकर मनोरजंन भारती ने क्या कहा?
मनोरंजन भारती ने पहले चरण के चुनाव से पहले कई संसदीय सीटों पर ग्राउंड जीरो पर जाकर जनता की राय को समझने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि मिशन 370 बीजेपी के लिए कठिन दिख रहा है. 370 तक पहुंचने के लिए स्ट्राइक रेट 83 प्रतिशत की होनी चाहिए.  पहले फेज में बीजेपी को 77 में से 64 सीटों पर जीतने की जरूरत होगी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का घोषणापत्र इस बार बेहद मजबूत है. पार्टी की तरफ से इस बार न्याय की बात कही गयी है. उधर मोदी जी की गारंटी है वहीं इधर कांग्रेस की न्याय की गारंटी है. 

अमिताभ तिवारी की मिशन 370 पर क्या है राय
अमिताभ तिवारी ने कहा कि जब टारगेट नहीं होगा तो फिर हासिल कैसे होगा? सवाल यह है कि विपक्ष का टारगेट क्या है? मिशन 370 बीजेपी पूरा कर सकती है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 303 सीटों पर जीत मिली थी. जिनमें से 151 सीटों पर जीत का अंतर 20 प्रतिशत से भी अधिक रहा था. बीजेपी का बेस बेहद मजबूत है. 

विपक्षी गठबंधन की एकता पर एक्सपर्ट ने क्या कहा? 
अमिताभ तिवारी ने कहा कि विपक्षी गठबंधन में इस चुनाव में भी एकता नहीं है. बंगाल में टीएमसी अलग है. केरल में वामदल अलग हैं. पंजाब में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन नहीं है. ऐसे में विपक्षी वोट एक बार फिर से बंट जाएंगे. जनता के बीच कन्फ्यूजन उत्पन्न होता है. वहीं मनोरजंन भारती ने कहा कि इन राज्यों में रणनीति के तहत यह कदम उठाए गए हैं. यही काम ओडिशा में बीजेपी और बीजेडी भी करना चाहती थी जो हो नहीं पाया. 

क्या बीजेपी को सिर्फ पीएम मोदी का भरोसा?
मनोरंजन भारती ने कहा कि हाईवे से लेकर हर जगहों पर सिर्फ पीएम मोदी की ही तस्वीर दिख रही है. उम्मीदवारों की तस्वीर देखने को नहीं मिली है. ये ऐसा लगता है कि शायद बीजेपी की अधिक निर्भरता पीएम मोदी पर हो गयी है. अमिताभ तिवारी ने कहा कि ये बात माना जा सकता है कि बीजेपी के पास सिर्फ एक ही नेता हैं लेकिन विपक्ष के पास शायद वो एक नेता भी नहीं है जिसके ऊपर निर्भरता बने. उन्होंने कहा कि निर्भरता उस दौर में गलत होता है जब ब्रांड की लोकप्रियता कम हो रही हो लेकिन पीएम मोदी के केस में ऐसी बात नहीं है. 

मतदान में बढ़ोतरी का क्या रहा है परिणाम पर असर? 
12 में से 7 चुनावों में मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली. इन चुनावों के परिणाम पर नजर देने के बाद पता चलता है कि 7 में से 4 बार सरकार बदली. वहीं 3 चुनावों में सरकार नहीं बदली अर्थात सत्ताधारी दल को वोट परसेंट के बढ़ने का फायदा भी हो सकता है और नुकसान भी हो सकता है. साल 1984, 2009 और 2019 के चुनावों में वोट परसेंट के बढ़ने का लाभ सत्ताधारी दल को हुआ और उसकी बड़ी बहुमत के साथ वापसी हुई. 4 चुनाव ऐसे रहे हैं जब मतदान में बढ़ोतरी हुई और केंद्र की सरकार बदल गयी. साल 1977, 1996, 1998 और 2014 के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ ही सत्ता में भी परिवर्तन देखने को मिला. 

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