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मोदी का 'जादू' या दीदी की 'ममता'... कौन होगा बंगाल का टाइगर? क्या बदल जाएगी 2019 वाली तस्वीर

ममता बनर्जी 13 साल से बंगाल की सत्ता में हैं. पहले वो INDIA अलायंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली थी, लेकिन बाद में फैसला बदल लिया. अब 'एकला चलो रे' के कॉन्सेप्ट पर 'मां, माटी और मानुष' की रणनीति पर जीत की उम्मीद कर रही हैं. दूसरी ओर BJP ने पिछले चुनाव में यहां 18 सीटें जीती थी. अब पार्टी उससे बेहतर प्रदर्शन के लिए जोर लगा रही है.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) समाप्ति की ओर है. 1 जून को सातवें फेज की वोटिंग बाकी है. 4 जून को तय हो जाएगा कि मतदाताओं ने NDA या INDIA में किसे चुना है. इस चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने NDA के लिए 400 पार का टारगेट रखा है. अकेले BJP को 370 सीटों का टारगेट मिला है. लक्ष्य को हासिल करने के लिए दक्षिण भारत के राज्यों के अलावा BJP का फोकस 4 राज्यों यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में है. पश्चिम बंगाल (West Bengal Seats) में 42 लोकसभा सीटों में से 33 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है. बाकी 9 सीटों के लिए 1 जून को सातवें फेज में वोट डाले जाएंगे. यहां ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की पार्टी TMC और BJP के बीच सीधा मुकाबला है. थर्ड फ्रंट भी चुनाव लड़ रहे हैं. 

ममता बनर्जी 13 साल से बंगाल की सत्ता में हैं. पहले वो INDIA अलायंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली थी, लेकिन बाद में फैसला बदल लिया. अब 'एकला चलो रे' के कॉन्सेप्ट पर 'मां, माटी और मानुष' की रणनीति पर जीत की उम्मीद कर रही हैं. दूसरी ओर BJP ने पिछले चुनाव में यहां 18 सीटें जीती थी. अब पार्टी उससे बेहतर प्रदर्शन के लिए जोर लगा रही है. NDTV के खास शो बाबाvsबाबा में आइए समझते हैं कि बंगाल में क्या इस बार भी TMC ज्यादातर सीटें जीत लेगी या BJP पिछली बार के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करेगी? मोदी या ममता...आखिर कौन होगा बंगाल का टाइगर? 

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बंगाल के चुनावी रण में कौन-कौन?
1. ममता बनर्जी की TMC: TMC पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी है और चुनावी मैच की सबसे बड़ी टीम भी. यह सभी 42 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है. पहले INDIA ब्लॉक के साथ चुनाव लड़ने वाली थी, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर बात नहीं बनी. ऐसे में ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया.

2.BJP: बंगाल में दूसरी बड़ी टीम BJP है. यह प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी भी है. BJP भी अकेले चुनाव लड़ रही है और सभी 42 लोकसभा सीटों पर कैंडिडेट खड़े किए हैं. ममता बनर्जी के धुर विरोधी शुभेंदु अधिकारी चुनावी कैंपेन संभाले हुए हैं.  

3. थर्ड फ्रंट- कांग्रेस, CPI(M) और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF): बंगाल में कांग्रेस और CPI (M) मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 में कांग्रेस को 2 सीटें और 5.7% वोट मिले थे. जबकि CPI(M) ने इस बार 22 सीटों पर कैंडिडेट खड़े किए हैं. जबकि कांग्रेस ने 9 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं.

सातवें फेज में किन 9 सीटों पर होगी वोटिंग
1 जून को दमदम, बारासात, बशीरहाट, जयनगर, मथुरापुर, डायमंड हार्बर, जादवपुर, कोलकाता नॉर्थ और कोलकाता साउथ में वोट डाले जाएंगे.

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बंगाल में 2014 और 2019 में कैसा रहा था स्कोर?     
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं, "सीट के लिहाज से अगर देखें, तो 2014 में BJP को 2 सीटें मिली थी और 17% वोट शेयर था. TMC को 34 सीटें मिली और वोट शेयर 39% था. लेफ्ट पार्टी का 30% वोट शेयर था और 2 सीटें जीती थी. कांग्रेस को 4 सीटें मिली थी. 2019 में लेफ्ट का सारा वोट BJP को ट्रांसफर हो गया. 24% वोट शेयर लेफ्ट पार्टी का घट गया. BJP का वोट शेयर 17 से 41% हो गया. BJP जहां 18 सीटें जीतने में कामयाब हुई. वहीं, TMC 34 से घटकर 22 पर आ गई. कांग्रेस को 2 सीटें मिली और लेफ्ट का खाता ही नहीं खुला.

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क्या बंगाल में फिर चलेगा मोदी का जादू?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं, "बंगाल में पीएम मोदी का जादू चल सकता है. इसके 5 कारण हैं. पहला कारण- ममता बनर्जी कांग्रेस के INDIA अलायंस का हिस्सा नहीं हैं. इससे नुकसान होगा. ये चुनाव चूंकि लोकसभा का चुनाव है. इसलिए चुनाव में प्रो बीजेपी या एंटी बीजेपी, प्रो मोदी या एंटी मोदी का माहौल बनेगा. एंटी मोदी वोट कहीं न कहीं TMC या कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन में बंट सकती है. दूसरा कारण- पीएम मोदी की लोकप्रियता बंगाल में भी अच्छी-खासी है. पिछले चुनाव में 32% मतदाताओं ने पीएम मोदी के नाम पर वोट किया था. तीसरा करण-BJP को लाभार्थियों का भी बड़ा एडवांटेज मिल सकता है. मोदी सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभार्थी चाहे वो महिला हो, किसान हो... उसका भी अच्छा खासा असर बंगाल में देखने को मिलेगा." 

अमिताभ तिवारी कहते हैं, "चौथा कारण- BJP को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और संदेशखाली मामले का फायदा मिल सकता है. बंगाल में मुस्लिम आबादी करीब 30% है. इसलिए यहां पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण काम कर सकता है. पिछले चुनावों में हमने देखा है कि जहां भी ध्रुवीकरण होता है, वहां BJP को ऑटोमेटिक फायदा मिलता है. पांचवां कारण-" एंटी इंकमबेंसी का असर भी दिखेगा. 13 ऐसी सीटें हैं, जहां ममता के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी भी अच्छी-खासी है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि BJP इन स्थितियों का फायदा उठा पाती है या नहीं." 

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क्यों चल सकता है ममता का करिश्मा?
जितना भी कहें कि ये लोकसभा का चुनाव है, लेकिन किसी भी चुनाव में बंगाल में बंगाली अस्मिता हावी रहता है. क्योंकि यहां लैंग्वेज डिवाइड है. वहां ममता बनर्जी का कनेक्ट है. ममता बनर्जी बंगाली अस्मिता को विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में भुनाने की कोशिश करती हैं. चुनाव में बंगाली बनाम नॉन-बंगाली का मुद्दा भी छाया रहता है. दूसरी ओर, बंगाल में ममता बनर्जी का मजबूत SC/ST, महिला वोट बैंक है. TMC सरकार की कई वेलफेयर स्कीम खास तौर पर महिलाओं के लिए हैं. इनमें से कुछ स्कीमों के फंड में ममता बनर्जी ने चुनाव से पहले इजाफा किया है. जाहिर तौर पर इसका फायदा मिलेगा."

बंगाल में CAA का असर भी दोतरफा हो सकता है. यहां जहां लोगों में CAA को लेकर सकारात्मक रुख है. वहीं, नाराजगी भी है. इसका असर भी चुनाव में देखने को मिलेगा. TMC को एक और फायदा लोकल चेहरे को लेकर हो सकता है. यहां ममता लोकल चेहरा हैं. लेकिन BJP के पास बंगाल में कोई लोकल चेहरा नहीं है. BJP प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही वोट मांगती है.
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INDIA अलायंस से ममता के छिटकने का क्या हो सकता है असर?
अमिताभ तिवारी कहते हैं, "ममता बनर्जी को शायद ये लगा है कि बंगाल के मुस्लिम मतदाता पहले ही TMC के पास आ चुके हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. ऐसे में लगता है कि ममता बनर्जी को ये अंदेशा है कि कांग्रेस और लेफ्ट के पास कुछ बचा ही नहीं है. इसलिए इनके साथ अलायंस का कोई फायदा नहीं मिलेगा. कहीं न कहीं ये भी धारणा है कि अगर कांग्रेस और लेफ्ट अलग लड़ेंगे, तो एंटी ममता वोट BJP और TMC अलायंस में बंटेगा. इसलिए संभव है कि ममता ने 'एकला चलो' की नीति पर चलने का फैसला लिया.
 

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