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This Article is From May 03, 2024

In-depth: कर्नाटक में रेवन्ना के 'सेक्स स्कैंडल' का फायदा उठा पाएगी कांग्रेस? BJP को कितना नुकसान

कांग्रेस प्रज्जवल रेवन्ना का मुद्दा उछालकर ज़्यादा से ज़्यादा महिला मतदाताओं को अपनी ओर खींचना चाहती है. कर्नाटक के पहले दौर के चुनाव में पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं ने वोट डाला है.

In-depth: कर्नाटक में रेवन्ना के 'सेक्स स्कैंडल' का फायदा उठा पाएगी कांग्रेस? BJP को कितना नुकसान
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के दो चरण के मतदान हो चुके हैं. तीसरे चरण में 7 मई को वोट डाले जाएंगे. तीसरे फेज में कर्नाटक की बची 14 सीटों पर भी वोटिंग होगी. इसी के साथ यहां मतदान का काम पूरा हो जाएगा. प्रदेश में दूसरे और आखिरी चरण के इस चुनाव में बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच सीधी टक्कर है. इस फेज में किसी भी सीट पर जेडीएस (JDS) का उम्मीदवार नहीं है, लेकिन चर्चा उसी की हो रही है, क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के पोते और सांसद प्रज्ज्वल रेवन्ना के सेक्स स्कैंडल ने प्रदेश के चुनाव को हाई वोल्टेज बना दिया है.

दक्षिण में इस बार बीजेपी ने पूरा जोर लगाया है और कर्नाटक को तो बीजेपी का 'गेट-वे ऑफ साउथ' कहा जाता है. अगर इस बार बीजेपी का वोटर शिफ्ट होता है तो उसके लिए कौन से फैक्टर्स अहम होंगे?

कर्नाटक में जेडीएस बीजेपी की सहयोगी पार्टी है, इसलिए कांग्रेस इस मुद्दे को ज़ोर-शोर से उठाकर उसे घेरने की कोशिश कर रही है. वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर जवाबी हमला बोलते हुए कहा है कि कानून-व्यवस्था तो राज्य का मुद्दा है. कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अब तक इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?

प्रज्जवल रेवन्ना मुद्दे को लेकर कांग्रेस के आक्रामक प्रचार की वजह है, दूसरे दौर की वो 14 सीटें जिन पर बीजेपी का कब्ज़ा है. पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बीजेपी अपने इस किले को मज़बूत करती गई है. पिछले चुनाव में तो उसका स्ट्राइक रेट 100% था.

कर्नाटक में 7 मई को 14 सीटों पर मतदान

कर्नाटक में पिछले तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो जिन 14 सीटों पर चुनाव होने हैं, उस पर बीजेपी ने 2009 में 47 फीसदी वोट के साथ 12 सीटें, 2014 में 50 फीसदी वोट के साथ 11 सीटें और 2019 में 55 फीसदी वोट के साथ सभी 14 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस की बात करें तो उसने 2009 में 42 फीसदी वोट के साथ 2 सीट और 2014 में 42 फीसदी वोट के साथ 3 सीटें जीती. वहीं 2019 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर 33 फीसदी हो गया और वो सभी 14 सीटें हार गई. कांग्रेस अगर एक भी सीट छीनने में कामयाब होती है तो ये उसके लिए फ़ायदा ही है.

कांग्रेस प्रज्जवल रेवन्ना का मुद्दा उछालकर ज़्यादा से ज़्यादा महिला मतदाताओं को अपनी ओर खींचना चाहती है. कर्नाटक में पहले दौर के चुनाव में पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं ने वोट डाला है. कर्नाटक पर बीजेपी की पकड़ के पीछे वहां का जातिगत समीकरण है, जो लगातार कई चुनावों में बीजेपी के पक्ष में रहा है.

अगर हम पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की तुलना करें तो विधानसभा का नतीजा चाहे जो रहा है, लोकसभा में डंका बीजेपी का ही बजा है. कर्नाटक की जनता पर मोदी नाम का जादू भी सिर चढ़कर बोलता रहा है. 2014 में जहां देश भर में बीजेपी को 27 प्रतिशत वोट मिले, तो कर्नाटक में 57 फीसदी लोगों ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया. बात पिछले चुनाव यानी 2019 की करें तो बीजेपी को जहां देश भर में 32 प्रतिशत वोट मिले तो वहीं कर्नाटक में 54 फीसदी लोगों ने बीजेपी का साथ दिया.

अब सवाल है कि प्रज्जवल रेवन्ना का सेक्स स्कैंडल सामने आने के बाद कर्नाटक में इस दौर के चुनाव में किसे नफा और किसे नुकसान हो रहा है? सभी 14 सीटें बचा पाना बीजेपी के लिए कितनी बड़ी चुनौती है? क्या कांग्रेस इस पोजिशन में है कि वो बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी कर सके?

बीजेपी और कांग्रेस के बीच 22 फीसदी वोट का अंतर

पिछले चुनाव के नतीजों को देखें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच 22 फीसदी वोट का अंतर है. बीजेपी को 55 फीसदी वोट मिले और कांग्रेस को 33 फीसदी, क्या इतने बड़े अंतर को पाटना आसान है? रेवन्ना का मुद्दा कितना बड़ा है, क्या ये मतदाताओं खासकर महिला वोटरों को प्रभावित कर सकता है?

जब बात महिला मतदाताओं की है तो केवल रेवन्ना का मुद्दा ही अहम हो जाता है या और भी फैक्टर्स काम कर सकते हैं. बीजेपी ने मंगलसूत्र का मुद्दा उठाया, तो कांग्रेस की राज्य सरकार की स्कीम्स, कौन सा फैक्टर ज्यादा असर डाल सकता है. ये सवाल इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि पिछले चरण में महिला मतदाताओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया है.

वहीं कर्नाटक में जातियों की सियासत भी खूब होती है. लिंगायत, वोक्कालिगा, दलित और ओबीसी जातियों का ये समीकरण कितना अहम होगा. पिछली बार कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन था. इस बार जेडीएस बीजेपी के साथ है. ये बीजेपी के लिए फायदेमंद है या जेडीएस से दोस्ती बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती है, ये तो 4 जून को नतीजे के दिन ही पता चलेगा.

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