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लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) की मतगणना के आगे बढ़ने के साथ ही कई चौंकाने वाले परिणाम सामने आ रहे हैं. कई कद्दावर नेताओं को अप्रत्याशित परिणामों का सामना करना पड़ा है. इनमें असम की धुबरी लोकसभा सीट (Dhubri Lok Sabha seat) भी शामिल है, जहां से ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (All India United Democratic Front) के मौलाना बदरुद्दीन अजमल (Maulana Badruddin Ajmal) रिकॉर्ड मतों से हार गए हैं. करीब 55 फीसदी मुस्लिम वोटर्स वाले धुबरी में उन्हें 10,12,476 वोटों से हार झेलनी पड़ी है. इन चुनावों में कांग्रेस ने उन्हें भाजपा की बी टीम बताया था और शायद यह बात कांग्रेस मतदाताओं तक भी पहुंचाने में कामयाब रही है, जिसके कारण इस मुस्लिम बहुल सीट के परिणाम चौंकाने वाले हैं.
धुबरी लोकसभा सीट बांग्लादेश की सीमा से लगती है. धुबरी को बंगाली भाषी प्रवासी मुसलमानों का गढ़ माना जाता है और अजमल को मुसलमानों में काफी लोकप्रिय माना जाता रहा है. हालांकि इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार रकीबुल हुसैन ने उन्हें हरा दिया है. कांग्रेस उम्मीदवार रकीबुल हुसैन को 14,71,885 और अजमल को 4,59,409 वोट मिले हैं.
2005 में की थी एआईयूडीएफ की स्थापना
परफ्यूम और टेक्सटाइल के व्यापारी बदरुद्दीन अजमल ने 2005 में एआईयूडीएफ की 2005 में स्थापना की थी और 2009 में धुबरी से सांसद बनने से पहले विधायक बने थे. वे तीन बार लगातार धुबरी से सांसद रहे हैं.
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पिछले तीन चुनावों से लगातार घट रहा था अजमल का वोट
पिछले तीन चुनावों में एआईयूडीएफ का मत प्रतिशत तीन चुनावों से लगातार घट रहा है. 2019 में एआईयूडीएफ को 42.7 और 2014 में 43.3 फीसदी वोट मिला था. हालांकि 2009 में एआईयूडीएफ को सर्वाधिक 51.7 फीसदी वोट मिला था. उन्होंने 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार अबू तेहर बेपारी को हराया तो 2014 में कांग्रेस के वाजिद अली चौधरी और 2009 में कांग्रेस के ही अनवर हुसैन को शिकस्त दी थी. भाजपा यह सीट कभी भी जीतने में कामयाब नहीं रही है.
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अजमल को रोकने के लिए कांग्रेस की कामयाब रणनीति
इन चुनावों में कांग्रेस मतदाताओं को यह समझाने में कामयाब रही है कि भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए अजमल को रोकना होगा. चुनावों के दौरान कांग्रेस ने अजमल को "बूढ़ा शेर" बताने के साथ ही एआईयूडीएफ को भाजपा की "बी टीम" बताया.
धुबरी में किसी भी हिंदू उम्मीदवार ने कभी भी सीट नहीं जीती है, हालांकि भाजपा के डॉ. पन्नालाल ओसवाल ने 1998 में 24 फीसदी वोट हासिल कर अच्छी लड़ाई लड़ी थी. हालांकि 1999 में उग्रवादी संगठन उल्फा ने उनकी हत्या कर दी थी.
अजमल को लोगों के एक परोपकारी शख्स के रूप में जाना जाता है. उन्हें प्रवासी मुसलमानों के लिए एक तरह से मसीहा समझा जाता है. प्रवासी समुदाय को आने वाली किसी परेशानी के लिए लोग अजमल की ओर ही देखते रहे हैं.
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