
- कारगिल युद्ध के 26 साल बाद नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के कश्मीर की तस्वीर काफी बदल चुकी है.
- भारत का जम्मू-कश्मीर जहां विकास, पर्यटन, शिक्षा और नवाचार का केंद्र बन चुका है.
- दूसरी ओर पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान बुनियादी सुविधाओं के लिए भी जूझ रहे हैं.
1999 की गर्मियों में दुनिया उस वक्त स्तब्ध रह गई, जब पाकिस्तानी सैनिक आतंकियों के वेश में कारगिल की बर्फीली ऊंचाइयों पर चुपचाप कब्ज़ा कर बैठे. ये वे पोस्ट थीं, जिन्हें भारतीय सेना ने मौसम की कठोरता के कारण अस्थायी रूप से खाली किया था. इस दुस्साहसिक घुसपैठ के ज़रिए पाकिस्तान की मंशा साफ थी- नियंत्रण रेखा (LoC) को बदलना, लद्दाख को कश्मीर से अलग करना और कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाना.
भारत ने इसका जवाब कारगिल युद्ध के रूप में दिया, एक ऐसा सैन्य अभियान जिसने भारतीय सेना के अद्वितीय साहस, समर्पण और रणनीतिक कौशल की मिसाल पेश की. हमारी सेनाओं ने एक-एक ऊंचाई को फिर से हासिल किया और घुसपैठियों को खदेड़ दिया. युद्ध का अंत पाकिस्तान की सैन्य और कूटनीतिक पराजय के रूप में हुआ. इसने उसके आक्रामक इरादों और कब्ज़ाए गए इलाकों में प्रशासनिक नाकामी को उजागर कर दिया.
इस घटना के 26 साल बाद, अब नियंत्रण रेखा के दोनों ओर की तस्वीर बिल्कुल बदल चुकी है. एक ओर भारत का जम्मू-कश्मीर विकास, पर्यटन, शिक्षा और नवाचार का केंद्र बन चुका है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र ( पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर - PoJK) और गिलगित-बाल्टिस्तान (PoGB) आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर: रणभूमि से पुनर्निर्माण तक
कारगिल की विजय सिर्फ़ सीमाओं की रक्षा नहीं थी, यह भारत की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और समावेशी विकास की नींव थी. 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर ने विकास की एक नई यात्रा शुरू की है.
- कारगिल आज सौर ऊर्जा से रोशन गांवों, हर मौसम में खुली जोजिला सुरंग और विस्तारित हवाई अड्डे के साथ राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ चुका है.
- श्रीनगर स्मार्ट सिटी बन चुका है. नई सड़कें, आधुनिक ट्रैफिक सिस्टम और खूबसूरत झेलम रिवरफ्रंट इसकी पहचान बन गए हैं.
- उधमपुर-बारामूला रेलमार्ग ने कश्मीर को देश के साथ मजबूत तरीके से जोड़ दिया है.
- IIT जम्मू का सैटलाइट कैंपस अब अवंतीपोरा में कार्यरत है और सीमांत क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की पहुंच को बढ़ा रहा है.
- NIT श्रीनगर, NIFT और कश्मीर सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाएं स्थानीय प्रतिभाओं को दिशा दे रही हैं.
- साक्षरता दर 67% के पार हो गई है. लड़कियों के नामांकन में भी लगातार सुधार हो रहा है.
साल 2024 में 18 लाख से ज्यादा पर्यटक कश्मीर घाटी की सुंदरता का अनुभव करने पहुंचे थे. श्रीनगर में जी20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक यहां कायम हुई शांति का अंतरराष्ट्रीय प्रमाण है.
जम्मू-कश्मीर के लोग भी प्रेरणा बन रहे हैं:
- श्रीनगर के जहूर अहमद मीर को नवीकरणीय ऊर्जा में योगदान के लिए राष्ट्रीय सम्मान मिला.
- बारामूला के ओलंपिक स्कीयर आरिफ खान देश का नाम रोशन कर रहे हैं.
- कुपवाड़ा के उद्यमी फिरदौस अहमद किसानों को सतत कृषि अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
ये बदलाव संयोग नहीं बल्कि नीति, संकल्प और निरंतर प्रयास का परिणाम हैं.
PoJK और PoGB: भूले-बिसरे वादों की जंगभूमि
दूसरी ओर पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र - PoJK और PoGB - आज भी उपेक्षा, दमन और पिछड़ेपन की गिरफ्त में हैं.
- मुज़फ्फराबाद, स्कर्दू और अन्य शहरों में साफ़ पानी और बिजली अब भी सपने जैसे हैं.
- 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 40% लोग स्वच्छ जल से वंचित हैं और PoGB में हर दिन 18 घंटे तक बिजली गुल रहना सामान्य है.
- CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) के नाम पर तमाम वादे किए गए, लेकिन लाभ केवल सेना और बाहरियों को मिला.
- डायमर-भाषा बांध जैसी परियोजनाओं से विस्थापित लोग आज भी उचित मुआवज़े का इंतज़ार कर रहे हैं.
- पर्यटन स्थलों की अनदेखी, खनिजों की लूट और स्थानीय विकास की उपेक्षा ने जनता की उम्मीदें तोड़ दी हैं.
इतना ही नहीं, इन इलाकों में राजनीतिक असहमति को भी कुचल दिया गया है:
2018 का PoJK अंतरिम संविधान संशोधन, पाकिस्तान के ख़िलाफ़ बोलने को अपराध घोषित करता है.
- जुलाई 2025 में जब सरकारी कर्मचारी वेतन के विरोध में हड़ताल पर गए तो उन्हें दमनात्मक कार्रवाई की धमकी दी गई.
- PoGB को अब तक कोई संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है, वहां के लोगों को न पहचान मिली है, न ही अधिकार.
विकास बनाम सैन्यीकरण: सोच का फ़र्क
भारत के जम्मू-कश्मीर में आज का युवा शिक्षा, स्टार्टअप, खेल और वैश्विक मंचों से जुड़ रहा है, वहीं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के युवा अवसरों के अभाव में कट्टरता, दुष्प्रचार और अवसाद की ओर धकेले जा रहे हैं.
- वहां के विश्वविद्यालय संसाधनों के संकट से जूझ रहे हैं. बाल्टिस्तान विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं बुनियादी ढांचे से वंचित हैं.
- पिछले वर्षों में कोई उल्लेखनीय राष्ट्रीय उपलब्धि सामने नहीं आई. यह प्रतिभा की कमी नहीं बल्कि सिस्टम की नाकामी है.
- 2005 में आए भूकंप के समय भी पाकिस्तानी सेना ने अपने जवानों को प्राथमिकता दी, आम नागरिक मलबे में दबे रह गए.
इसके उलट, भारत ने जम्मू-कश्मीर में आपदा प्रबंधन, पुनर्वास और दीर्घकालिक विकास में लगातार निवेश किया है. यही दृष्टिकोण का असली अंतर है.
असल फर्क: सोच और संकल्प में
भारत जहां अपने नागरिकों के सपनों को साकार करने के लिए पुल, सुरंगें, संस्थान, रोजगार और आत्मबल दे रहा है, वहीं पाकिस्तान अपने ही नागरिकों की ज़मीन को सामरिक संपत्ति मानकर उनका दोहन कर रहा है. वो कारगिल, जहां कभी युद्ध की आग दहकी थी, अब वहां विकास की बयार बह रही है. दूसरी तरफ स्कर्दू की वादियां आज भी टूटी उम्मीदों और अधूरे वादों की गूंज से भरी हैं.
LoC: सिर्फ ज़मीन नहीं, सोच की भी रेखा
कारगिल युद्ध भले ही सैनिक मोर्चे पर भारत की जीत थी, लेकिन उसकी असली उपलब्धि विकास की नींव रखना थी. जम्मू-कश्मीर जो कभी संघर्ष का केंद्र था, आज शांति और संभावना का प्रतीक है. वही, PoJK और PoGB आज भी पाकिस्तान की उपेक्षा, दमन और शोषण का बोझ उठाए हुए हैं.
यह सिर्फ़ दो भौगोलिक क्षेत्रों की कहानी नहीं बल्कि दो सोचों की टकराहट है. एक सोच जो अपने नागरिकों को सशक्त बनाती है, और दूसरी जो उन्हें मोहरा मानती है. कारगिल कभी सिर्फ़ एक सामरिक जीत थी, आज वह लोगों के आत्मविश्वास और भविष्य में भारत की जीत बन चुकी है.
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