लॉकडाउन में ठप पड़ी अर्थव्यवस्था के चलते पश्चिमी यूपी में भी बेरोजगारों की तादात बढ़ी है. लॉकडाउन के चलते लाखों रुपये खर्च करके BBA से लेकर MA BEd की डिग्री लेने वाले युवा भी मनरेगा में काम करने पर मजबूर हैं. बुलंदशहर के जुनेदपुर गांव में मनरेगा का काम इन दिनों जोरों पर चल रहा है. ये काम अकुशल श्रमिकों का है लेकिन लॉकडाउन के बाद सतेंद्र कुमार, सुरजीत और रोशन कुमार जैसे डिग्री धारक भी नौकरी की जगह मजदूरी कर रहे हैं.
सतेंद्र कुमार ने सवा लाख खर्च करके BBA की डिग्री ली जबकि सुरजीत सिंह ने स्कॉलरशिप के जरिए बीएड का कोर्स पूरा किया है और रोशन कुमार MA करके वाशिंग पाउडर की कंपनी में नौकरी करते थे लेकिन लॉकडाउन ने अब इन तीनों को मनरेगा की कतार में खड़ा कर दिया है. नौकरी छूटी तो अब मनरेगा में दो सौ रुपये में दो घनफुट मिट्टी निकालने का काम कर रहे हैं.
सतेंद्र कुमार ने कहा कि मेरे पास BBA की डिग्री है कहीं अच्छी नौकरी नहीं मिली. जहां मिली छह सात हजार की मिल रही थी. फिर लॉकडाउन लगा तो वो भी छूट गई. यहां आए तो ग्राम प्रधान ने मनरेगा के काम में लगा दिया. सुरजीत कुमार ने कहा कि मेरे पास MA BEd की डिग्री है. अभी पढ़ाई छोड़ी है. जॉब देखता इससे पहले लॉकडाउन हो गया. फिर यहां मनरेगा में काम में लग गया. रोशन कुमार ने बताया कि दो घन मिट्टी फुट निकालता हूं, दो सौ रुपये मिलता है. MA पास हूं, पहले नौकरी करता था, अच्छा पैसा कमाता था, लॉकडाउन हुआ, छूट गया, फिर यहां लग गया.
बुलंदशहर के जुनैदपुर गांव में लॉकडाउन से पहले 20 मजदूर काम करते थे, अब बढ़कर 100 मजदूर हो गए हैं. ग्राम प्रधान की मानें तो इन मजदूरों में 20 से ज्यादा लोग डिग्री धारक हैं. ग्राम प्रधान वीरेंदर सिंह ने कहा कि ये बच्चे सही बोल रहे हैं. लॉकडाउन के बाद नौकरी छूटी. इनकी आर्थिक हालत खराब हो गई तो ये मनरेगा के काम में लग गए हैं.
इस वक्त देशभर में 14 करोड़ लोगों के जॉबकार्ड बने हैं. इन सबको 100 दिन काम देने के लिए 2.8 लाख करोड़ की जरूरत पड़ेगी. जबकि भारत सरकार के बजट बढ़ाने के बावजूद अभी नरेगा का कुल बजट एक लाख करोड़ है. इसी के चलते जानकार नरेगा का दायरा बढ़ाने का मांग कर रहे हैं.
मनरेगा की रिसर्चर रितिका गेरा ने कहा कि अब ये हुआ कि दो शहर से पैसा आता था वो रुक गया, उल्टा वो लोग घर लौट आए. इसके चलते 14 करोड़ जॉबकार्ड पर जो 26 करोड़ लोग थे वो बढ़ गए. इसलिए इसमें बजट की और जरूरत है. कौन इसमें काम करता है, ये सबके लिए खुला है. जो भी ग्रामीण वयस्क काम करना चाहता है वो जॉबकार्ड बनवा सकता है. उन्हें सौ दिन के काम का अधिकार होगा.
लॉकडाउन के बाद बढ़ती बेरोजगारी इसी से समझी जा सकती है कि इस साल एक अप्रैल से 20 मई के बीच करीब 35 लाख लोगों ने काम मांगने के लिए आवेदन किया जो इस दशक में मनरेगा में काम करने की सबसे ज्यादा मांग के तौर पर देखा जा रहा है.
ग्रामीण इलाके के भूमिहीन श्रमिक और कुशल श्रमिकों को अब तक महानगर नौकरी के साधन मुहैया कराते थे लेकिन पहली बार महानगरों से गांव की ओर बड़ी तादाद में हुए पलायन से गांव में खाने कमाने की जद्दोजहद बढ़ती दिखाई दे रही है. मनरेगा जैसी स्कीमों की परिधि अगर नहीं बढ़ाई गई तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं.
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