"लिव-इन रिलेशनशिप को तब मानेंगे सामान्य जब...": इलाहाबाद हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने कहा, "लिव-इन-रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के अप्रचलित होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है."

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

नई दिल्ली/इलाहाबाद:

लिव-इन रिलेशनशिप का जिक्र करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि "भारत में विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन काम कर रहा है". उच्च न्यायालय ने अपनी लिव-इन पार्टनर से बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की.

न्यायमूर्ति सिद्दार्थ की एकल पीठ ने कहा कि विवाह संस्था किसी व्यक्ति को जो "सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और स्थिरता" प्रदान करती है, वह लिव-इन-रिलेशनशिप कभी नहीं प्रदान करती है. उन्होंने कहा, "हर मौसम में साथी बदलने की ब्रिटिश अवधारणा को स्थिर और स्वस्थ समाज की पहचान नहीं माना जा सकता है."

हाईकोर्ट ने कहा कि भारत में मध्यम वर्ग की नैतिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. हाईकोर्ट ने कहा, "लिव-इन-रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के अप्रचलित होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है जहां विवाह की संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है."

अपने आदेश में, हाईकोर्ट ने ये भी कहा कि देश में इसी तरह की प्रवृत्ति के साथ, "हम भविष्य में हमारे लिए एक बड़ी समस्या पैदा करने की ओर बढ़ रहे हैं."

हाईकोर्ट ने कहा कहा, "विवाहित रिश्ते में साथी के प्रति बेवफाई और मुक्त लिव-इन-रिलेशनशिप को एक प्रगतिशील समाज के संकेत के रूप में दिखाया जा रहा है. युवा ऐसे उन्नत दर्शन के प्रति आकर्षित होते हैं, दीर्घकालिक परिणामों से अनजान होते हैं."

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