उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को केशवानंद भारती मामले में उस ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया जिसने देश में ‘संविधान के मूलभूत ढांचे का सिद्धांत' दिया था. धनखड़ ने बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाया और संकेत दिया है कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए. धनखड़ के इस बयान पर कांग्रेस ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि 'उन्हें' पाठ्यपुस्तकों (Textbooks)की ओर वापस जाना चाहिए क्योंकि संविधान सर्वोच्च है न कि विधायिका. कांग्रेस ने कहा है कि उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को ‘गलत' कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है.
जयपुर में राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा था, ‘‘संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है? क्या भारत के संविधान में कोई नया ‘थियेटर' (संस्था) है जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा. 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी, 1973 में केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा ...कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं.'' उन्होंने कहा था, ‘‘यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.'' इसके साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ‘‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है.'' उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
धनखड़ के इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘सांसद के रूप में 18 वर्षों में मैंने कभी भी किसी को नहीं सुना कि वह उच्चतम न्यायालय के केशवानंद भारती मामले के फैसले की आलोचना करे.अरुण जेटली जैसे भाजपा के कई कानूनविदों ने इस फैसले की सराहना मील के पत्थर के तौर पर की थी. अब राज्यसभा के सभापति कहते हैं कि यह फैसला गलत है. यह न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है.''जयराम रमेश ने यह भी कहा, ‘एक के एक बाद संवैधानिक संस्थानों पर हमला किया जाना अप्रत्याशित है. मत भिन्नता होना अलग बात है, लेकिन उप राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के साथ टकराव को एक अलग ही स्तर पर ले गए है.''पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, ‘‘राज्यसभा के सभापति जब यह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है तो वह गलत हैं. संविधान सर्वोच्च है. उस फैसले (केशवानंद भारती) को लेकर यह बुनियाद थी कि संविधान के आधारभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकवाद आधारित हमले को रोका जा सके.'' उनका यह भी कहना है, ‘‘एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम को निरस्त किए जाने के बाद सरकार को किसी ने नहीं रोका था कि वह नया विधेयक लाए. विधेयक को निरस्त करने का मतलब यह नहीं है कि आधारभूत सिद्धांत ही गलत है.''
चिदंबरम ने कहा, ‘‘असल में सभापति के विचार सुनने के बाद हर संविधान प्रेमी नागरिक को आगे के खतरों को लेकर सजग हो जाना चाहिए.'' कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने संवाददाताओं से कहा कि राज्यसभा के सभापति को ब्रिटिश संसद नहीं, बल्कि भारतीय पुस्तकों की तरफ लौटने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत का संविधान सर्वोच्च है, विधायिका नहीं. संविधान हम सबसे बड़ा है. हमें इसी सिद्धांत का अनुसरण करने की जरूरत है.''(भाषा से भी इनपुट)
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