
Karnataka's Caste Census Report: कर्नाटक मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत जाति जनगणना रिपोर्ट में पिछड़े समुदायों के लिए आरक्षण को मौजूदा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है. सरकारी सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी. सूत्रों के अनुसार, सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (संक्षेप में जाति जनगणना) इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि पिछड़ी जातियों की जनसंख्या 70 प्रतिशत है.
क्या है रिपोर्ट में
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़े समुदायों को 51 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए. सूत्रों ने बताया कि इसमें तमिलनाडु और झारखंड का उदाहरण दिया गया है, जो पिछड़े वर्ग की आबादी के अनुसार क्रमशः 69 और 77 प्रतिशत आरक्षण प्रदान कर रहे हैं. सूत्रों ने बताया कि अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) की कुल जनसंख्या 4,16,30,153 है. रिपोर्ट का हवाला देते हुए सूत्रों ने दावा किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी क्रमशः 1,09,29,347 और 42,81,289 है.
वोक्कालिगा क्यों नाराज
कर्नाटक में कराये गये जाति आधारित सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर 17 अप्रैल को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की अध्यक्षता में होने वाली मंत्रिमंडल की विशेष बैठक में चर्चा होनी है, लेकिन कई समुदायों ने इस पर अपनी आपत्तियां व्यक्त की हैं तथा कई अन्य ने इसका विरोध करते हुए नये सिरे से ऐसी गणना कराने की मांग की है. ‘कर्नाटक राज्य वोक्कालिगा संघ' के अध्यक्ष बी केंचप्पा गौड़ा ने संवाददाताओं से कहा कि सर्वेक्षण रिपोर्ट त्रृटिपूर्ण है. राज्य में प्रभावी वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले गौड़ा ने कहा, ‘‘इस सर्वेक्षण रिपोर्ट का कोई आधार नहीं है. यह पूरी तरह से त्रृटिपूर्ण है. यह 2011 की जनगणना के आधार पर किया गया है, जो आज के संदर्भ में अर्थहीन है. इसके अलावा, हमारे समुदाय के किसी भी व्यक्ति ने कभी सर्वेक्षणकर्ताओं को नहीं देखा, फिर भी जाति आधारित गणना की गई, जो अपने आप में संदेह पैदा करती है.''
लिंगायत क्यों नाराज
जगदीश लिंगायत महासभा के प्रधान महासचिव एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से सेवानिवृत्त अधिकारी एस एम जामदार ने कहा कि जाति आधारित जनगणना अवैध और त्रृटिपूर्ण है.उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि राज्य सरकार को भारतीय जनगणना अधिनियम के तहत जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है. केवल भारत सरकार ही ऐसा कर सकती है और उन्होंने 1931 के बाद से आज तक ऐसा नहीं किया है. भारत सरकार के अलावा कोई अन्य प्राधिकारी यदि जनगणना करता है तो यह अवैध है.''
"लोगों ने गलत जानकारी दी"
जामदार ने बताया कि जब पूरी आबादी का सर्वेक्षण किया जाता है तो उसे जनगणना कहा जाता है और जब आबादी के एक छोटे हिस्से को शामिल किया जाता है तो उसे नमूना सर्वेक्षण कहा जाता है. उन्होंने कहा, ‘‘एक अच्छा नमूना सर्वेक्षण करने के लिए सभी नमूनों को शामिल किया जाता है, लेकिन इस सर्वेक्षण (राज्य सरकार द्वारा) में 25 से 30 प्रतिशत नमूने को छोड़ दिया गया. यही कारण है कि आंकड़े त्रृष्टिपूर्ण हैं.'' जामदार ने आरोप लगाया कि बच्चों की शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दिलाने के लिए लोगों ने सर्वेक्षण के दौरान गलत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि लोगों ने आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपनी जातियों को पिछड़े समुदायों में बताया. कर्नाटक में लिंगायत भी प्रमुख समुदायों में है.
मुरुघा मठ ने क्या कहा
चित्रदुर्ग में मुरुघा मठ के प्रभारी बसवप्रभु स्वामीजी ने कहा, ‘‘हम सिफारिशों के सार्वजनिक होने का इंतजार करेंगे ताकि उनपर निर्णय ले पाएं. हमें देखना होगा कि यह हमारे पक्ष में है या हमारे खिलाफ. अखिल भारत वीरशैव महासभा इस पर अंतिम निर्णय लेगी.'' विवादित सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण रिपोर्ट शुक्रवार को राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत की गई. इसे संक्षेप में जाति आधारित गणना कहा जाता है. कर्नाटक के कानून एवं संसदीय कार्य मंत्री एच.के. पाटिल ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया कि जाति आधारित गणना की रिपोर्ट सौंप दी गई है और 17 अप्रैल को होने वाली ‘विशेष मंत्रिमंडल बैठक' में इस पर विस्तृत चर्चा होगी. जाति आधारित गणना की यह विस्तृत रिपोर्ट 50 खंडों में है. कर्नाटक के पिछड़ा वर्ग विकास मंत्री शिवराज तंगदागी के अनुसार, राज्य सरकार ने इस सर्वेक्षण पर 165 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
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