कर्नाटक की राजनीति (Karnataka Politics) में लिंगायत संप्रदाय का काफी प्रभाव माना जाता रहा है. ऐसा कहा जाता है कि लिंगायत समुदाय का मूड ही ये तय करता है कि प्रदेश में किसके हाथ में सत्ता की चाबी जाएगी. राज्य में 10 मई को विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में हर पार्टी लिंगायत को अपने साथ लाने में जुटी है.
कर्नाटक के 67 साल के इतिहास में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ लिंगायत समुदाय सिर्फ पिछले ढाई दशक से ही खड़े दिखते हैं. यानी उस वक्त से, जब बीएस येदियुरप्पा एक मास लीडर के तौर पर उभरे थे. लेकिन इसके पहले के 42 साल लिंगायत कांग्रेस या फिर कांग्रेस से टूटकर अलग हुए जनता परिवार के साथ थे. 42 सालों का लिंगायतों का साथ किस तरह कांग्रेस-जनता परिवार से छूटा और येदियुरप्पा की तरफ खींचा, पढ़िए इसपर डिटेल रिपोर्ट:-
कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय को अगड़ी जातियों में शुमार किया जाता है, जो संपन्न भी हैं. इनका इतिहास 12वीं शताब्दी से शुरू होता है. कर्नाटक में लिंगायतों की आबादी तकरीबन 18 फीसदी है, जो 110 विधानसभा सीटों पर सीधा असर डालते हैं. लिंगायतों की 102 उपजातियां हैं. इनमें से 16 उपजातियों को ओबीसी का दर्जा मिला है. कर्नाटक के अलावा पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इस समुदाय की अच्छी आबादी है. लिंगायत नेता येदियुरप्पा कनिका उपजाति से हैं. इसे उत्तर-भारत में 'तेली' कहते हैं.
एस निजलिंगप्पा ने पहले सीएम
1956 में मैसुरू स्टेट के रूप में दर्जा मिलने के बाद इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री एस निजलिंगप्पा बने थे. वो लिंगायत थे और सीएम के तौर पर उन्होंने दो बार शपथ ली. इंदिरा गांधी से मतभेद के बाद निजलिंगप्पा ने खुद को सक्रिय राजनीति से दूर कर लिया. ऐसा कहते हुए उन्होंने यह कह दिया कि मेरी दो आंखे हैं- रामकृष्ण हेगड़े और वीरेंद्र पाटिल. रामकृष्ण हेगड़े कांग्रेस से अलग होकर जनता परिवार में शामिल हो गए. चूंकि निजलिंगप्पा ने उनपर भरोसा जताया था, तो लिंगायत रामकृष्ण हेगड़े के साथ आ खड़े हुए. हेगड़े ब्राह्मण होने के बाद भी सीएम बने थे.
वीरेंद्र पाटिल के प्रति भी निभाई वफादारी
अस्सी के दशक की शुरुआत में लिंगायतों ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया. जब लोगों को लगा कि जनता दल राज्य को स्थायी सरकार देने में नाकाम हो रही है तो लिंगायतों ने अपनी राजनीतिक वफादारी वीरेंद्र पाटिल की तरफ कर ली. पाटिल 1989 में कांग्रेस को सत्ता में लेकर आए. लेकिन वीरेंद्र पाटिल को राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और इसके बाद लिंगायतों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया. रामकृष्ण हेगड़े लिंगायतों के एक बार फिर से चेहते नेता बन गए. हेगड़े से लिंगायतों का लगाव तब भी बना रहा जब वे जनता दल से अलग होकर जनता दल यूनाइटेड में आ गए. हेगड़े की वजह से ही लोकसभा चुनावों में लिंगायतों के वोट भारतीय जनता पार्टी को मिले और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी.
उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में प्रभावशाली
सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतीहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है. देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया. अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.
बीजेपी की हार से लिया बदला
रामकृष्ण हेगड़े के निधन के बाद लिंगायतों ने बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना और 2008 में वे सत्ता में आए. जब येदियुरप्पा को कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, तो लिंगायतों ने 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार से अपना बदला लिया. येदियुरप्पा का लिंगायत समाज में मजबूत जनाधार है.
कर्नाटक विधानसभा का समीकरण
कर्नाटक राजनीतिक लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है. राज्य में 224 विधानसभा और 28 लोकसभा की सीटें हैं. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के पास 121, कांग्रेस के पास 69 और जेडीएस के पास 30 विधायक हैं. वहीं लोकसभा की 28 सीटों में से 25 बीजेपी, एक-एक कांग्रेस, जेडीएस और निर्दलीय के पास है.
कर्नाटक में कहां-कहां है लिंगायत का प्रभाव
कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र लिंगायत बहुल इलाका है, यहां से 50 विधायक चुने जाते हैं. सीएम बोम्मई भी यहीं से आते हैं. इनके अलावा कई वरिष्ठ नेता भी यहां से आते हैं. यही कारण है कि प्रत्येक विधानसभा चुनावों में ये किंगमेकर की भूमिका में होती है. इस क्षेत्र में 7 जिले आते हैं, जिनमें बागलकोट, धारवाड़, विजयपुरा, बेलगावी, हावेरी, गडग और उत्तर कन्नड़ शामिल हैं.
लिंगायत समुदाय के बड़े नेता
फिलहाल, लिंगायत समुदाय से सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा हैं. इसके अलावा, मौजूदा सीएम बसवराज बोम्मई भी इसी समुदाय से आते हैं. दिग्गज नेता जगदीश शेट्टर का भी लिंगायत समुदाय से नाता है. वहीं, एचडी थम्मैया और केएस किरण कुमार भी लिंगायत के बड़े नेताओं में शुमार हैं.
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