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This Article is From May 08, 2023

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बेहद जटिल है पार्टियों का जातिगत गणित

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जाति हमेशा की तरह बड़ा कारक बनी हुई है, और सभी पार्टियां सभी जातियों से अधिकतम वोट हासिल करने के लिए विधानसभा सीट के स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग कर रही हैं. सभी पार्टियों द्वारा चुने गए प्रत्याशियों पर नज़र डालने से यह साफ-साफ दिखाई देता है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बेहद जटिल है पार्टियों का जातिगत गणित
कर्नाटक में अनुसूचित जाति के लिए 36 और अनुसूचित जनजाति के लिए 15 सीटें आरक्षित हैं...

अप्रैल महीना आधा बीतते-बीतते कर्नाटक विधानसभा चुनाव एक अजीब-से मोड़ पर पहुंच गया था, जब कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की कि 'लिंगायत' मतदाताओं के साथ धोखा किया गया, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा को हाशिये पर डाल दिया, और जगदीश शेट्टर को टिकट देने से इंकार कर दिया. सत्तासीन BJP के दो लिंगायत नेताओं के प्रति सहानुभूति जताकर कांग्रेस ने लिंगायत मतदाताओं को रिझाकर अपने साथ लाने की कोशिश की, जो परंपरागत रूप से BJP से ही जुड़े रहे हैं.

उधर, दक्षिणी कर्नाटक में परंपरागत रूप से जनता दल सेक्युलर (JDS) या कांग्रेस के साथ जुड़े रहे वोक्कलिगा समुदाय के मतदाताओं को रिझाने की कोशिश देखी गई, जब BJP ने उन्हें आरक्षण दे दिया, वोक्कलिगा शासक केम्पेगौड़ा की विशाल प्रतिमाएं बनवाईं और यह भी कहना शुरू किया कि 17वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान को वोक्कलिगाओं ने ही मारा था.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जाति हमेशा की तरह बड़ा कारक बनी हुई है, और सभी पार्टियां सभी जातियों से अधिकतम वोट हासिल करने के लिए विधानसभा सीट के स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग कर रही हैं. सभी पार्टियों द्वारा चुने गए प्रत्याशियों पर नज़र डालने से यह साफ-साफ दिखाई देता है.

कांग्रेस, BJP और JDS की ओर से उतारे गए प्रत्याशियों में से लगभग 45 फीसदी उम्मीदवार वोक्कलिगा या लिंगायत समुदाय से ही है. लिंगायत समुदाय से BJP के प्रत्याशी सर्वाधिक हैं, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के परिवार के नेतृत्व वाली JDS के प्रत्याशियों की सूची में वोक्कलिगा उम्मीदवार बहुतायत में हैं.

वैसे, सभी पार्टियों के रणनीतिकारों का इस बात पर मतैक्य है कि प्रत्याशियों की सूची कर्नाटक में आबादी की जाति संरचना को प्रतिबिंबित नहीं करती, बल्कि यह सूची राज्य की राजनीति में कुछ जातियों के राजनीतिक प्रभुत्व को दर्शाती है. कर्नाटक ने 2017-18 में की गई जातिगत जनगणना के आंकड़ों को जारी नहीं किया है, लेकिन गैर-आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक लिंगायत मतदाता सूबे की आबादी का 14-18 फीसदी हिस्सा हैं, और वोक्कलिगा समुदाय के मतदाता कुल आबादी के 11-16 फीसदी हैं.

विधानसभा चुनाव 2023 का ढर्रा भी 2018 जैसी ही है. यह लगातार दूसरा चुनाव है, जब BJP ने मुस्लिम या ईसाई समुदाय से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है. 2018 में सत्ता में वापसी की कोशिश के तहत कांग्रेस ने 'अहिन्दा रणनीति' अपनाई थी - जो अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों के लिए कन्नड़ भाषा के शब्दों का संक्षिप्त रूप है. 2023 में उनके आधे से भी कम उम्मीदवार समाज के इन वर्गों से हैं.

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उत्तरी कर्नाटक का बड़ा हिस्सा लिंगायत-बहुल है, जबकि बेंगलुरू और दक्षिणी कर्नाटक के प्रत्याशियों में वोक्कलिगा समुदाय के नामों की भरमार है. तटीय कर्नाटक में बिल्लवा आबादी (अधिकांश अनुमानों के अनुसार, आबादी का लगभग दो-तिहाई) की बड़ी तादाद के चलते यहां अन्य पिछड़ी जातियों का अनुपात सबसे अधिक है. BJP यहां हिन्दुत्व वोट और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर निर्भर है. कांग्रेस उन निर्वाचन क्षेत्रों में बिल्लवा उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर हिन्दुत्व के खिलाफ जातिगत गणित का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही है, जहां BJP उम्मीदवार संख्यात्मक रूप से छोटे, लेकिन राजनीतिक रूप से अधिक शक्तिशाली बंट समुदाय से हैं.

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जब तीनों प्रमुख पार्टियों ने समान जाति के प्रत्याशी उतारे
कर्नाटक में 46 अनारक्षित विधानसभा सीटों पर कांग्रेस, BJP और JDS ने समान जाति के प्रत्याशियों को उतारा है. इनमें से 21 विधानसभा सीटों में लिंगायत उम्मीदवार हैं - इनमें से अधिकतर विधानसभा सीटें उत्तरी कर्नाटक से हैं - और 25 निर्वाचन क्षेत्रों में वोक्कलिगा प्रत्याशी हैं (सभी दक्षिणी कर्नाटक में). लिंगायत सीटों पर अधिकतर मौजूदा विधायक BJP के हैं, जबकि वोक्कलिगा सीटों पर JDS का दबदबा है.

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आमने-सामने की टक्कर
इस साल कांग्रेस और BJP - जिनके समूचे सूबे में बड़ी तादाद में विधानसभा सीटें जीतने की उम्मीद है - ने 76 विधानसभा सीटों पर समान जाति के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है.

2018 के मुकाबले यह तादाद बढ़ी है, जब कांग्रेस और BJP ने 70 विधानसभा सीटों पर समान जाति के प्रत्याशियों को उतारा था. BJP ने इनमें से 31 सीटों पर जीत हासिल की थी, और कांग्रेस 22 सीटों पर जीती थी. शेष सभी सीटें JDS के खाते में गई थीं, जो मुख्यतः दक्षिणी कर्नाटक के वोक्कलिगा-प्रभुत्व वाले इलाके थे.

33 सीटों पर कांग्रेस और BJP के लिंगायत प्रत्याशी आमने-सामने थे, और इनमें से कांग्रेस के 12 की तुलना में BJP के 19 प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. 28 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और BJP ने वोक्कलिगा प्रत्याशियों को उतारा था, जिनमें से कांग्रेस के आठ उम्मीदवार जीते थे, और BJP को छह सीटों पर जीत मिली थी, जबकि शेष सीटें JDS ने जीती थीं.

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उपजाति बनाम उपजाति
मध्य अप्रैल में BJP ने पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को पार्टी टिकट देने से इंकार कर दिया था. कांग्रेस ने अवसर का लाभ उठाते हुए तुरंत उन्हें टिकट की पेशकश कर दी. कांग्रेस का सारा हिसाब-किताब सावदी के कद पर टिका था, और वह भी लिंगायत नेता के रूप में नहीं, बल्कि लिंगायतों की उपजाति गनिगा के नेता के रूप में. इसी तरह BJP के पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर के साथ आ जाने के साथ ही कांग्रेस लिंगायतों की एक अन्य उपजाति बनजिगा समुदाय में दबदबा कायम होने की उम्मीद कर रही है. कांग्रेस ने कुल तीन गनिगा और चार बनजिगा उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.

लिंगायत जाति के भीतर संख्यात्मक रूप से प्रभावशाली समुदाय पंचमशाली लिंगायतों में BJP का असर सबसे मज़बूत माना जाता है. कांग्रेस के 14 प्रत्याशियों की तुलना में इस उपजाति से BJP ने 18 प्रत्याशी उतारे हैं. लिंगायत समुदाय के लिए 2 फीसदी आरक्षण बढ़ाने की BJP सरकार की हालिया घोषणा का अर्थ इसी उपजाति के नेताओं को शांत करना था, जो लिंगायतों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर 71 दिन तक विरोध प्रदर्शन करते रहे थे.

अनुसूचित जाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित सीटों में उपजातियों का हिसाब-किताब संभवतः सबसे ज़्यादा स्पष्ट है.

कर्नाटक में अनुसूचित जाति के लिए 36 और अनुसूचित जनजाति के लिए 15 सीटें आरक्षित हैं. अनुसूचित जातियों के कई समुदायों को पारंपरिक रूप से आंतरिक आरक्षण के लिए चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है - 'वाम' अनुसूचित जाति समुदायों को अधिक प्रताड़ित और उत्पीड़ित माना जाता है, 'दक्षिण' अनुसूचित जाति समुदाय बड़े पैमाने पर कृषिप्रधान हैं, तीसरा वर्ग 'छूत' कहलाते हैं, जिनमें खानाबदोश लम्बानी समुदाय शामिल है, और चौथे वर्ग में अन्य सभी आते हैं.

येदियुरप्पा के प्रभाव के चलते लम्बानी परंपरागत रूप से BJP को वोट देते रहे हैं, और अनुसूचित जातियों के भीतर आंतरिक आरक्षण को संशोधित करने के कर्नाटक सरकार के हालिया निर्णय से 'वाम' अनुसूचित जातियों को ज़्यादा आरक्षण मिला है. राजनीतिक हिसाब-किताब था कि इस फैसले से इन समुदायों से वोट पाने में मदद मिलेगी.

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में BJP ने 11 सीटें 'वाम' वर्ग के उम्मीदवारों को, और 10 सीटें 'लम्बानी' वर्ग के प्रत्याशियों को दी हैं.

दूसरी ओर, कांग्रेस ने 'दक्षिण' अनुसूचित जाति (इसी समुदाय में कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे शामिल हैं) को 16, और 'लम्बानी' वर्गों को सिर्फ पांच सीटें दी हैं.

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