जस्टिस ढींगरा (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को हरियाणा में कांग्रेस की सरकार के कार्यकाल के दौरान ज़मीन सौदों के लिए नियम बदलकर फायदा पहुंचाया गया था या नहीं, इस मामले की जांच कर रहे जस्टिस एसएन ढींगरा को हरियाणा सरकार ने जांच के लिए और वक्त दे दिया है। गुरुवार को जस्टिस ढींगरा ने रिपोर्ट तैयार करने के लिए और समय मांगा था। अब यह रिपोर्ट अगस्त तक सौंपी जानी है।
जस्टिस ढींगरा ने जांच के लिए और मोहलत मांगते हुए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को सूचित किया था कि उन्हें कुछ नई जानकारियां मिली हैं, जो कि इस जमीन सौदे में शामिल सरकारी अधिकारियों की पहचान में मददगार साबित हो सकती हैं। इन कागजों की जांच के लिए जस्टिस ढींगरा ने समय मांगा है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासन के दौरान हुआ था सौदा
कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासनकाल के दौरान रॉबर्ट वाड्रा और अन्य डेवलपरों द्वारा किए गए जमीन सौदों की जांच के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने लगभग एक साल पहले रिटायर्ड जस्टिस ढींगरा को नियुक्त किया था।
जस्टिस ढींगरा पर भी लगे हैं आरोप
जांच के दौरान इस बात पर भी विवाद हुए कि दिल्ली हाईकोर्ट में जज रह चुके 67-वर्षीय जस्टिस ढींगरा ने रॉबर्ट वाड्रा या उनकी रियल एस्टेट कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के किसी प्रतिनिधि या इस सौदे में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने वाले वरिष्ठ अफसर अशोक खेमका को भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।
हालांकि NDTV से बातचीत में जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह सिर्फ सरकारी अफसरों से आमने-सामने मुलाकात करना चाहते थे, और "प्राइवेट पार्टियों को अलग से सवाल भेज दिए गए थे, जिनके जवाब उन्होंने दाखिल कर दिए हैं..."
क्या है मामला
दरअसल, रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ा विवाद गुड़गांव के एक 3.5 एकड़ के प्लॉट के सौदे पर आधारित है, जिसे उन्होंने वर्ष 2008 में 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा, और कुछ ही महीने बाद उसे देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया।
वाड्रा और कंपनी का इनकार
रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ दोनों ही सौदे में कुछ भी गलत तरीके से किया गया होने से इनकार करते रहे हैं। कांग्रेस, सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका भी 'फायदा पहुंचाए जाने के लिए किया गया सौदा' होने की बात का खंडन कर चुके हैं, और उन्होंने जांच को 'राजनैतिक बदले की कार्रवाई' करार दिया था। बीजेपी का कहना है कि राज्य में सत्तासीन होने का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने नियमों में मनचाहे बदलाव किए, जिनसे न सिर्फ रॉबर्ट वाड्रा को ज़मीन सस्ते दामों पर बेची गई, बल्कि उस ज़मीन के कमर्शियल इस्तेमाल के लिए मंजूरी भी बेहद जल्द दे दी गई, जिसकी वजह से बेचने तक उसकी कीमतें बहुत बढ़ गई। उस ज़मीन सौदे को वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था, जिनका सिर्फ तीन ही दिन बाद तबादला कर दिया गया।
जस्टिस ढींगरा ने जांच के लिए और मोहलत मांगते हुए मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को सूचित किया था कि उन्हें कुछ नई जानकारियां मिली हैं, जो कि इस जमीन सौदे में शामिल सरकारी अधिकारियों की पहचान में मददगार साबित हो सकती हैं। इन कागजों की जांच के लिए जस्टिस ढींगरा ने समय मांगा है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासन के दौरान हुआ था सौदा
कांग्रेस की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार के शासनकाल के दौरान रॉबर्ट वाड्रा और अन्य डेवलपरों द्वारा किए गए जमीन सौदों की जांच के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने लगभग एक साल पहले रिटायर्ड जस्टिस ढींगरा को नियुक्त किया था।
जस्टिस ढींगरा पर भी लगे हैं आरोप
जांच के दौरान इस बात पर भी विवाद हुए कि दिल्ली हाईकोर्ट में जज रह चुके 67-वर्षीय जस्टिस ढींगरा ने रॉबर्ट वाड्रा या उनकी रियल एस्टेट कंपनी स्काई लाइट हॉस्पिटैलिटी के किसी प्रतिनिधि या इस सौदे में कथित गड़बड़ियों को उजागर करने वाले वरिष्ठ अफसर अशोक खेमका को भी पूछताछ के लिए नहीं बुलाया।
हालांकि NDTV से बातचीत में जस्टिस ढींगरा ने कहा कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह सिर्फ सरकारी अफसरों से आमने-सामने मुलाकात करना चाहते थे, और "प्राइवेट पार्टियों को अलग से सवाल भेज दिए गए थे, जिनके जवाब उन्होंने दाखिल कर दिए हैं..."
क्या है मामला
दरअसल, रॉबर्ट वाड्रा से जुड़ा विवाद गुड़गांव के एक 3.5 एकड़ के प्लॉट के सौदे पर आधारित है, जिसे उन्होंने वर्ष 2008 में 7.5 करोड़ रुपये में खरीदा, और कुछ ही महीने बाद उसे देश के सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ को 58 करोड़ रुपये में बेच दिया।
वाड्रा और कंपनी का इनकार
रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ दोनों ही सौदे में कुछ भी गलत तरीके से किया गया होने से इनकार करते रहे हैं। कांग्रेस, सोनिया गांधी और रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका भी 'फायदा पहुंचाए जाने के लिए किया गया सौदा' होने की बात का खंडन कर चुके हैं, और उन्होंने जांच को 'राजनैतिक बदले की कार्रवाई' करार दिया था। बीजेपी का कहना है कि राज्य में सत्तासीन होने का फायदा उठाते हुए कांग्रेस ने नियमों में मनचाहे बदलाव किए, जिनसे न सिर्फ रॉबर्ट वाड्रा को ज़मीन सस्ते दामों पर बेची गई, बल्कि उस ज़मीन के कमर्शियल इस्तेमाल के लिए मंजूरी भी बेहद जल्द दे दी गई, जिसकी वजह से बेचने तक उसकी कीमतें बहुत बढ़ गई। उस ज़मीन सौदे को वरिष्ठ नौकरशाह अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था, जिनका सिर्फ तीन ही दिन बाद तबादला कर दिया गया।
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