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एक साथ हुए चुनाव तो देश को कितना फायदा? अर्थशास्त्रियों के साथ JPC का मंथन, निकला ये निचोड़

हाल के लोकसभा चुनाव में 1 लाख 35 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए, यानी प्रति वोट 1,400 रुपए. पांच साल में चुनावों पर 5-7 लाख करोड़ रुपए खर्च होते हैं, जो अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डालता है.

एक साथ हुए चुनाव तो देश को कितना फायदा? अर्थशास्त्रियों के साथ JPC का मंथन, निकला ये निचोड़
  • देश में बार-बार चुनाव होने से विकास और अर्थव्यवस्था दोनों में रुकावट आती है.
  • एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने से अर्थव्यवस्था का आकार सात लाख करोड़ तक बढ़ने की संभावना है.
  • केंद्र सरकार की पांच लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय योजनाएं चुनावों के कारण कार्यान्वयन में धीमी पड़ जाती हैं.
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नई दिल्ली:

अगर देश में लोक सभा और सभी राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराये जाते हैं तो इससे आर्थिक गतिविधियों की रफ़्तार बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था 7 लाख करोड़ तक बढ़ जाएगी. बुधवार को "एक देश, एक चुनाव" व्यवस्था पर राजनीतिक सहमति बनाने के लिए गठित जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (JPC) के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बातचीत में  कही.

बुधवार को JPC ने देश के तीन बड़े अर्थशास्त्रियों- 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ अरविंद पनगढ़िया डॉ. सुरजीत भल्ला और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष रहे. डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया के साथ कई घंटों तक "वन नेशन, वन इलेक्शन" पर चर्चा की.

बैठक के बाद पीपी चौधरी ने एनडीटीवी से कहा कि अर्थशास्त्रियों ने JPC के साथ इंटरेक्शन के दौरान कहा कि एक साथ अगर चुनाव होंगे तो अर्थव्यवस्था को फायदा होगा. बार-बार चुनाव से आर्थिक उथल-पुथल होता है, आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती है और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है. अगर देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे तो अर्थव्यवस्था का आकार 7 लाख करोड़ तक बढ़ जाएगा.

चौधरी कहते हैं  कि हर साल केंद्र सरकार करीब 5 लाख करोड रुपए अलग-अलग सेंट्रल सेक्टर स्कीम्स के जरिए जनता के कल्याण के लिए जारी करती है, यानी 5 साल में 25 लाख करोड रुपए! लेकिन हर साल अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर पर होने वाले चुनाव की वजह से सेंट्रल सेक्टर स्कीम का कार्यान्वयन धीमा पड़ जाता है और इससे योजनाएं ठीक से लागू नहीं हो पाती क्योंकि प्रशासन का ध्यान चुनाव में उलझ जाता है.

सूत्रों के मुताबिक, डॉ. अरविंद पनगढ़िया और डॉ. सुरजीत भल्ला दोनों ने JPC के सामने विस्तृत प्रस्तुति दी कि बार-बार होने वाले चुनाव विकास और आर्थिक प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित करते हैं. JPC के तीन सदस्य सांसदों ने एनडीटीवी से कहा कि बैठक में अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने सुझाव दिया कि संसदीय चुनाव और विधानसभा चुनाव अलग-अलग कराए जाने चाहिए. सूत्रों के मुताबिक डॉ. मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने भी कहा कि बेहतर होगा कि लोक सभा और सभी राज्यों के विधान सभाओं के चुनाव अलग-अलग हों.  

सूत्रों के अनुसार, एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने संयुक्त संसदीय समिति को बताया कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" के विचार का अर्थव्यवस्था पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. उन्होंने तर्क दिया कि एक साथ चुनाव कराने से धन की बचत नहीं हो सकती. उनका तर्क था कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" को आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए, इसे एक नए विचार के चश्मे से देखा जाना चाहिए.

एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने संयुक्त संसदीय समिति को बताया कि बार-बार होने वाले विधानसभा चुनावों का वित्तीय नियोजन (financial planning) पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे महत्वपूर्ण आर्थिक मामलों पर केंद्र और राज्यों के बीच बातचीत धीमी हो जाती है.

विशेषज्ञों का आंकलन है कि देश में निरंतर चुनाव होने से करीब 4.5 लाख करोड़ का सरकारी खर्च आता है, अगर एक साथ देश भर में चुनाव होंगे तो GDP 1.5% तक बढ़ सकती है.

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