जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने आतंकवाद पर एक बड़ी कार्रवाई करते हुए आतंक आरोपी बिट्टा कराटे की पत्नी और सैयद सलाहुद्दीन के बेटे समेत चार लोगों को टेरर लिंक के आरोप में सरकारी नौकरी से निकाल दिया है.
शीर्ष जेकेएलएफ आतंकी फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे इस समय आतंकवाद वित्तपोषण मामले में न्यायिक हिरासत में है. उसकी पत्नी अस्सबाह-उल-अर्जमंद खान जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थी और ग्रामीण विकास निदेशालय में कार्यरत थी. कश्मीर विश्वविद्यालय में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. मुहीत अहमद भट्ट और वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक माजिद हुसैन कादरी और उद्योग एवं वाणिज्य विभाग में सूचना प्रौद्योगिकी प्रबंधक सैयद अब्दुल मुईद की सेवाएं भी संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत बर्खास्त कर दी गईं.
सैयद अब्दुल मुईद पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी संगठन हिज्बुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन का बेटा है.
सरकारी सूचना के मुताबिक, जांच के दौरान यह पाए जाने पर कि बिट्टा कराटे की पत्नी अस्सबाह एक कट्टर अलगाववादी है, जिसके आतंकवादी संगठनों और आईएसआई के साथ गहरे संबंध हैं, उसे बर्खास्त कर दिया गया.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'वह कराटे के ट्रायल के दौरान सुर्खियों में आई थी. उसे पहली बार 2003 में शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय-कश्मीर में नौकरी मिली थी. उसकी नियुक्ति कथित तौर पर पिछले दरवाजे से हुई थी.'
उनके अनुसार यह भी सामने आया है कि 2003 से 2007 के बीच वह महीनों तक लगातार काम से गैर-हाजिर रही लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. आखिर में उसे अगस्त 2007 में बर्खास्त कर दिया गया.
साथ ही उन्होंने बताया कि, 'जब वह काम से गैर-हाजिर रही, तब उसने जर्मनी, यूके, हेलसिंकी, श्रीलंका और थाईलैंड की यात्रा की.'
जांच में यह भी पता चला है कि वह जेकेएलएफ के लिए कुरियर का काम करती थी. एक अधिकारी ने बताया, 'वह अधिकांश यात्राओं के लिए अलग-अलग एयरपोर्ट्स से फ्लाइट्स लेती थी, लेकिन भारत वापस नेपाल या बांग्लादेश से सड़क के जरिए आती थी.'
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से तैयार किए गए डोजियर के मुताबिक, उसने साल 2011 में अपनी JKAS परीक्षा पास की और कुछ महीनों के भीतर बिट्टा कराटे से शादी कर ली.
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की सूची के अनुसार, कश्मीर विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभाग में वैज्ञानिक-D डॉ. मुहीत अहमद भट्ट को भी आतंकी लिंक के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया.
जांच टीम के सदस्य एक अधिकारी ने बताया, "मुहीत 2017 से 2019 तक कश्मीर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (KUTA) का अध्यक्ष था. उसने साल 2016 में छात्रों का विरोध-प्रदर्शन आयोजित कराने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसमें कई युवा मारे गए थे.'
उनके अनुसार मुहीत ने पथराव करने वालों और आतंकवादियों के कुछ परिवारों को KUTA का फंड बांटा था. जनवरी 2018 में जेके प्रशासन के डोजियर के अनुसार, मुहीत ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों के परिवारों को वित्तीय सहायता प्रदान की थी.
डोजियर के मुताबिक, 'उसने सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए आतंकवादियों के परिवारों को वित्तिय मदद के लिए फंड अरेंज किया था. ऑडिट से बचने के लिए KUTA ने सोसाइटी के रूप में रजिस्ट्रेशन से चालाकी से टाला. हालांकि, बैंकिंग चैनल का इस्तेमाल जारी रखा. उसे छात्रों को चरमपंथी बनाने और कश्मीर में पाकिस्तानी प्रोपेगैंडा फैलाने की अहम कड़ी माना गया है.'
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डोजियर में आगे कहा गया है कि माजिद हुसैन कादरी लश्कर का कट्टर आतंकवादी है. बताया गया है, 'जब कादरी 2001 में कश्मीर विश्वविद्यालय में एमबीए का छात्र था, तो वह अगस्त 2001 में दो पाकिस्तानी लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों के संपर्क में आया और कश्मीर विश्वविद्यालय में लश्कर-ए-तैयबा का लिंक बन गया.'
साथ ही डोजियर में कहा गया है कि 2002 में उसे आतंकवादियों के लिए हथियार कूरियर के रूप में काम करने की जिम्मेदारी दी गई. 2003 में उसे लश्कर का प्रवक्ता बनाया गया और जून 2004 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उसके पास से एक स्नाइपर राइफल भी बरामद की गई थी. वह दो साल तक PSA के तहत हिरासत में था और बाद में कोर्ट ने उसे बरी कर दिया था.
मार्च 2007 में उसकी नियुक्ति कश्मीर विश्वविद्यालय में कॉन्ट्रेक्चुअल लेक्चरर के रूप में हो गई. जम्मू-कश्मीर प्रशासन में वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'उसका रिक्रूटमेंट केस कभी भी करेक्टर वैरिफिकेशन के लिए सीआईडी को नहीं भेजा गया, जो कि अनिवार्य है. साल 2010 में उसकी नियुक्ति कश्मीर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में हो गई. अभी वह मैनेजमेंट स्टडी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर था.'
हिज्बुल मुजाहिद्दीन के सुप्रीम कमांडर सैयद सलाहुद्दीन के बेटे सैयद अब्दुल मुईद को भी बर्खास्त कर दिया गया. मुईद JKEDI(जम्मू-कश्मीर उद्यमिता विकास संस्थान) में प्रबंधक आईटी के रूप में काम कर रहा था.
2012 में मुईद को कॉन्ट्रेक्ट पर एक आईटी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था. सूत्रों ने बताया कि मुईद को नियुक्त करने के लिए भी नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं थी. सलेक्शन पैनल के कम से कम 3 सदस्यों में ऐसे अधिकारी भी शामिल थे जिन्हें आतंकियों से सहानुभूति रखने वाला माना जाता है. बाद में उसे स्थाई कर दिया गया. एक अधिकारी ने बताया कि उसके केस को भी सीआईडी वैरिफिकेशन के लिए नहीं भेजा गया.
बता दें, सलाउद्दीन के अन्य दो बेटों, अहमद शकील और शाहिद यूसुफ को भी 2000 के दशक में सरकारी सिस्टम में घुसा दिया गया था. लेकिन बाद में दोनों को बर्खास्त कर दिया और अभी दोनों जेल में बंद हैं.
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