"जम्मू-कश्मीर में देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानून का हुआ दुरुपयोग": पूर्व जजों और नौकरशाहों की रिपोर्ट में आरोप

जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल शासन के तहत नागरिकों की स्थिति बदतर होती जा रही है  जिसमें कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानूनों जैसे कि Unlawful Activities (Prevention) Act और Public Safety Act के तहत उनपर निशाना साधते हुए अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है. ये आरोप  न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों की एक रिपोर्ट में लगाया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानूनों का दुरुपयोग जारी है. ( फाईल फोटो)

नई दिल्ली :

जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल शासन के तहत नागरिकों की स्थिति बदतर होती जा रही है  जिसमें कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानूनों जैसे कि Unlawful Activities (Prevention) Act और Public Safety Act के तहत उनपर निशाना साधते हुए अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है. ये आरोप  न्यायाधीशों और पूर्व नौकरशाहों की एक रिपोर्ट में लगाया गया है. न्यायमूर्ति एपी शाह (दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) की अध्यक्षता वाली रिपोर्ट में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई आयोग द्वारा अनुशंसित परिसीमन की भी आलोचना की गई है. रिपोर्ट में फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स' को लेकर "प्रचार" की भी आलोचना की गई है और कहा गया है कि इस फिल्म ने पंचों (ग्राम प्रधानों) और पंडितों को घाटी में अधिक असुरक्षित बना दिया है.

''उपराज्यपाल के तीन साल के शासन के बाद नागरिक सुरक्षा की स्थिति बदतर हो गई है. कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए और पीएसए जैसे देशद्रोह और आतंकवाद विरोधी कानूनों का दुरुपयोग जारी है." रिपोर्ट में कहा गया है.

‘तीन साल एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में: जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार'  की वार्षिक रिपोर्ट को ‘जम्मू और कश्मीर में मानवाधिकार' नाम के एक स्वतंत्र मंच के साथ साझा किया गया. यह मंच दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और पूर्व केंद्रीय गृह सचिव गोपाल पिल्लई की सह-अध्यक्षता में एक स्वतंत्र निकाय है. फोरमके अन्य सदस्यों में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रूमा पाल और मदन लोकुर, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव और लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) हैं. इस फोरम ने अगस्त 2021 से जुलाई 2022 तक की अवधि को कवर कर अपना रिपोर्ट पेश किया है.

रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि न्यायमूर्ति देसाई आयोग द्वारा अनुशंसित परिसीमन "एक व्यक्ति-एक-वोट सिद्धांत का उल्लंघन करता है". साथ ही केन्द्र सरकार से यह अपील की गई है कि वो "जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करे."

आयोग ने कहा, "चुनाव आयोग को विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा करनी चाहिए और उन्हें पहले से निर्धारित निर्वाचन क्षेत्रों के तहत रखना चाहिए."

रिपोर्ट में सरकार से कश्मीरी पंडितों के कर्मचारियों को स्थानांतरित करने के लिए भी कहा गया है. रिपोर्ट में .ह भी कहा गया कि वे घाटी के भीतर सुरक्षित स्थानों पर फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” के प्रचार के कारण असुरक्षित हो गए हैं.

यह रिपोर्ट घाटी की स्थिति पर सरकार के रुख के बिल्कुल विपरीत है.

पिछले महीने गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया कि 2022 के दौरान किसी भी कश्मीरी पंडित ने कश्मीर घाटी नहीं छोड़ी है. उन्होंने इश रिपोर्ट का भी खंडन किया था कि समुदाय के कई लोगों ने आतंकवादियों द्वारा लक्षित हत्याओं के बाद घाटी छोड़ने की धमकी दी है.

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4,000 से अधिक पंडित कर्मचारी, जो 2010 से प्रधान मंत्री के विशेष रोजगार पैकेज के हिस्से के रूप में लौटे थे - ने पहले कम से कम एक महीने के लिए अपने ड्यूटी ज्वाइन करने से मना कर दिया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनमें से ज्यादातर पहले ही घाटी छोड़कर जम्मू शिफ्ट हो गए थे.