"नाजुक मुद्दा, आम राय बनाने की हो कोशिश" : समान नागरिक संहिता पर RJD और JDU

केसी त्‍यागी ने कहा कि 23 जून को विपक्षी दलों की जो कामयाब बैठक हुई है, यह उसी का नतीजा है कि बीजेपी बौखला गई है और सबका निशाना नीतीश कुमार और हमारी पार्टी है. 

समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर केसी त्‍यागी ने कहा कि आम सहमति नहीं बनती है तो विरोध करेंगे. (प्रतीकात्‍मक)

नई दिल्‍ली :

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra modi) के समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर दिए बयान के बाद राजनीतिक दलों में हलचल मच गई है. जेडीयू के मुख्‍य प्रवक्‍ता केसी त्‍यागी ने समान नागरिक संहिता को लेकर कहा कि यह नाजुक मुद्दा है जो सभी धर्म और संप्रदायों से जुड़ा हुआ है. उन्‍होंने कहा कि यह देश विभिन्न तरह की मान्यताओं का देश है लिहाजा ऐसे सवालों पर आम राय बनाने का प्रयास करना चाहिए. उन्‍होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हमें अफसोस है कि सात साल तक सरकार की तरफ से इस पर कोई पहल नहीं हुई. अब चुनाव होने वाले हैं तो आनन-फानन में समान नागरिक संहिता की याद आई है. उधर, आरजेडी के सांसद मनोज झा ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री ने ऐसे मौके पर अपनी बात कही है, जहां पर उसका कोई औचित्‍य नहीं था.  

केसी त्‍यागी ने कहा कि 2017 में डॉक्टर वी एस चौहान विधि आयोग के अध्यक्ष थे, उन्होंने उस समय अपनी रिपोर्ट दी थी. उस पर हमारी पार्टी के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने एक पत्र के द्वारा पार्टी की मंशा से उन्‍हें अवगत कराया था कि यह नाजुक मुद्दा है, सभी धर्म और संप्रदाय से जुड़ा हुआ है. यह देश विभिन्न तरह की मान्यताओं का देश है लिहाजा ऐसे सवालों पर आम राय बनाने का प्रयास करना चाहिए. सभी अल्पसंख्यकों से बातचीत करनी चाहिए और राज्य सरकारों को विश्वास में लेना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों से भी बुलाकर वार्ता करनी चाहिए. उन्‍होंने कहा कि हमें अफसोस है कि सात साल तक सरकार की तरफ से इस पर कोई पहल नहीं हुई. अब चुनाव होने वाले हैं तो आनन-फानन में उनको समान नागरिक संहिता की याद आई है और वह भी धार्मिक ध्रुवीकरण के हिसाब से. 

उन्‍होंने कहा कि किसी का आधिकारिक बयान आने से पहले ही भाजपा के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि हम तुष्टीकरण के लिए इसका विरोध कर रहे हैं. आर्टिकल 44 की संविधान में भी व्याख्या है, लेकिन कह रहे हैं कि एक महीने में अपनी राय दो वरना हम अपने तरीके से इसे लागू करेंगे. यह तानाशाही है, मनमानापन है और सिर्फ चुनावी फायदे के लिए की गई कार्रवाई है. 

त्‍यागी ने कहा कि हम चाहते हैं कि इस पर पहले आम सहमति बनाई जाए और अगर नहीं बनती है तो हम इसका विरोध करेंगे और अगर सर्वानुमति से बनता है तो हम इसका समर्थन करेंगे. 

उन्‍होंने कहा कि 23 जून को विपक्षी दलों की जो कामयाब बैठक हुई है, यह उसी का नतीजा है कि बीजेपी बौखला गई है और सबका निशाना नीतीश कुमार और हमारी पार्टी है. उन्‍होंने कहा कि बिहार परिवर्तन की जमीन है, जहां से 1974 में जयप्रकाशजी ने अपना बिगुल बजाया था और अब 23 जून को नीतीश कुमार ने विपक्षी नेताओं के साथ बिगुल बजाया है, नतीजा वही होगा जो 1977 में हुआ था. 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरे को लेकर उन्‍होंने कहा, "अमित शाह जी लगातार जा रहे हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह वहां की ना भाषा जानते हैं और ना ही संस्कार और ना ही वहां के रीति रिवाज को जानते हैं उनके लिए यह एक नई जगह है." 

उधर, मनोज झा ने समान नागरिक संहिता को लेकर कहा कि इसे हिंदू मुस्लिम का मुद्दा मत बनाइए. यह आदिवासी रीति-रिवाजों का भी मामला है. हिंदू धर्म की अपनी विविधता है, बहुलवाद है, उसके लिए आप क्या करेंगे. 

इसके साथ ही उन्‍होंने कहा कि हिंदू मैरिज सेंटीमेंट है, इस्लामिक मैरिज है. इस विशाल देश में इतनी सारी छोटी मोटी चीजें हैं, इतनी विविधता है कि आपको मुश्किल होगी. इसलिए पहले विधि आयोग ने कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है.

मनोज झा ने कहा कि बहुत चिंता है कि आर्टिकल 44 लागू हो, उससे पहले आर्टिकल 39 पर भी नजर डालिए. आज देश में सबसे बड़ी चिंता यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं है इनकम को लेकर बराबरी की बात है. सरकार के पास इस को लेकर को ब्लू प्रिंट है ही नहीं, मैं यह चाहता हूं कि आप अपनी प्राथमिकता तय कीजिए. पहले इस सरकार की प्राथमिकताएं केवल ध्रुवीकरण है और आप इसे हिंदू मुसलमान बना रहे हैं. 

उन्‍होंने कहा कि समर्थन क्या हवा में होता है. सरकार के पास कागजात क्‍या है वह तो पहले सामने आए. उन्‍होंने कहा कि प्रारूप सामने आए. सरकार अपने विधि आयोग की रिपोर्ट के बारे में क्या नजरिया पेश करती है, यह तो सामने आए. 

उन्‍होंने कहा कि पहले सामने मसौदा तो हो, प्रधानमंत्री जी मुझसे नहीं पूछते हैं कि आप सपोर्ट करोगे या नहीं. ऐसे नहीं चलता है, पहले प्रारूप सामने आएगा हम तो कई सारी डिस्क्लेमर दे रहे हैं. क्या आप इतिहास को खारिज कर देंगे, अगर आप कहते हैं किस संविधान के डायरेक्टिव प्रिंसिपल में यह है तो फिर चाहूंगा कि इनकम में जो गैर बराबरी का मामला है उसको खत्म करें फिर बात करते हैं. झा ने कहा कि प्रारूप जब आएगा तो पहले उसका अध्ययन करेंगे. 

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