प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने कश्मीर (Jammu-Kashmir) के भारत में विलय को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawahar Lal Nehru) पर गलतियां करने का आरोप मढ़ा, तो बीजेपी और कांग्रेस में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पीएम मोदी के बयानों को तथ्यों से इतर करार दिया. उन्होंने कहा कि नेहरू ने तानाशाही तरीके से संविधान में धारा 370 नहीं डालीं. नोटबंदी के उलट इस पर चर्चा हुई थी.
जयराम रमेश ने ट्वीट किया, 'नेहरू ने तानाशाही तरीके से संविधान में धारा 370 नहीं डालीं. नोटबंदी के उलट इस पर चर्चा हुई. पटेल, अम्बेडकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कोई आपत्ति नहीं की. जम्मू-कश्मीर में काम कर चुके अय्यंगार ने इसका मसौदा तैयार किया था. इस पर किसी ने इस्तीफा नहीं दिया.'
इससे पहले जयराम रमेश के एक ट्वीट पर केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने पलटवार किया था. रिजिजू ने सिलसिलेवार ट्वीट में जयराम रमेश के दावों का खंडन किया. उन्होंने बताया कि नेहरू ने खुद लोकसभा में कश्मीर के विलय को लेकर जो बातें कहीं, पीएम मोदी के आरोप उसी पर आधारित हैं. रिजिजू ने जयराम रमेश पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया.
रिजिजू ने अपने ट्वीट में कहा, 'जवाहर लाल नेहरू के संदिग्ध भूमिका का बचाव करने के लिए लंबे समय से कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के बारे में ऐतिहासिक झूठ बोला जा रहा है. वह ऐतिहासिक झूठ यह है कि महाराजा हरि सिंह कश्मीर का भारत में विलय के मुद्दे पर घबराए हुए थे. जयराम रमेश का झूठ उजागर करने के लिए नेहरू के बयान को ही दोहराता हूं.'
एक दूसरे ट्वीट में किरन रिजिजू ने लिखा, 'नेहरू ने शेख अब्दुल्ला के साथ समझौते के बाद 24 जुलाई 1952 को लोकसभा को संबोधित किया था. नेहरू ने कहा था कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर के भारत में विलय के लिए पहली बार उनसे जुलाई 1947 में बातचीत की थी. यानी, स्वतंत्रता मिलने से एक महीने पहले. लेकिन नेहरू ने महाराजा की बातों को अनसुनी कर दिया और उन्हें फटकार लगाई.'
रिजिजू का दावा- कश्मीर विलय में टालमटोल कर रहे थे नेहरू
किरन रिजिजू ने आगे कहा कि नेहरू ने जुलाई 1947 में महाराजा हरि सिंह के विलय के आग्रह को न केवल ठुकराया था, बल्कि अक्टूबर 1947 में उनकी फटकार भी लगाई थी. और जब पाकिस्तानी आक्रांता श्रीनगर के कई किलोमीटर अंदर घुस गए तब नेहरू ने क्या कहा ये भी जान लीजिए. इस ट्वीट में भी उन्होंने एक स्क्रीनशॉट शेयर किया है. इसमें लिखा है, 'मुझे याद है कि संभवतः 27 अक्टूबर को हम दिनभर माथापच्ची करने के बाद शाम को इस नतीजे पर पहुंचे कि सभी जोखिमों और खतरों बावजूद हम ना महाराजा की अपील ठुकरा नहीं सकते और हमें अब उनकी मदद करनी ही होगी. यह आसान नहीं था.'
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक रैली के दौरान जवाहरलाल नेहरू पर परोक्ष हमला करते हुए कहा था कि सरदार वल्लभभाई पटेल ने अन्य रियासतों के विलय से जुड़े मुद्दों को चतुराई से हल किया, लेकिन कश्मीर का जिम्मा ‘एक अन्य व्यक्ति' के पास था और वह अनसुलझा ही रह गया.
रिजिजू ने लोकसभा में नेहरू के 24 जुलाई, 1952 के भाषण का हवाला देते हुए दावा किया कि महाराजा हरि सिंह ने पहली बार भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय के लिए आजादी से एक महीने पहले ही जुलाई 1947 में नेहरू से संपर्क किया था, और यह नेहरू थे जिन्होंने महाराजा की बात को अस्वीकार कर दिया.
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