इशरत जहां की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
दिल्ली पुलिस ने गृह मंत्रालय की शिकायत पर इशरत जहां केस में मामले की गायब हुई फाइलों को लेकर अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.
गृह मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी वीके उपाघ्याय की तरफ से दिल्ली पुलिस कमिश्नर को 26 अगस्त को दी गई शिकायत में कहा गया कि 15 जून 2004 को गुजरात के अहमदाबाद में 4 लोगों जावेद शेख, जीशान जोहर, अमजद अली और इशरत जहां को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया था. इसके बाद इशरत जहां की मां शमीमा कौशर ने गुजरात हाइकोर्ट में याचिका लगाकर इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की और ये भी कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें मुआवजा दिया जाए.
केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पहला एफिडेविट 6 अगस्त को 2009 को दायर किया गया. इसके बाद 29 सितंबर 2009 को केंद्र सरकार की तरफ से एक और एफिडेविट गुजरात हाइकोर्ट में दायर किया गया. जब इशरत जहां मामले को लेकर मार्च 2016 में मीडिया में बड़े पैमाने पर चर्चा हुई तो इस केस से जुड़ी फाइलों को गृह मंत्रालय में देखना शुरू किया. इस दौरान ये अहम दस्तावेज गायब पाए गए-
गृह मंत्रालय ने इस मामले में 14 मार्च 2016 को अपनी तरफ से एक आंतरिक कमेटी द्वारा दस्तावेजों के गुम होने की जांच करायी. जांच करने वाले अधिकारी ने 15 जून 2016 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. रिपोर्ट में यह कहा गया कि जिन परिस्थितियों में फाइलों से ये दस्तावेज गायब हुए हैं और उनके गायब होने के पीछे के मकसद की जांच होनी चाहिए.
इस संबंध में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी 409 यानि क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है.
गृह मंत्रालय के अंडर सेक्रेटरी वीके उपाघ्याय की तरफ से दिल्ली पुलिस कमिश्नर को 26 अगस्त को दी गई शिकायत में कहा गया कि 15 जून 2004 को गुजरात के अहमदाबाद में 4 लोगों जावेद शेख, जीशान जोहर, अमजद अली और इशरत जहां को पुलिस मुठभेड़ में मार दिया गया था. इसके बाद इशरत जहां की मां शमीमा कौशर ने गुजरात हाइकोर्ट में याचिका लगाकर इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की और ये भी कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें मुआवजा दिया जाए.
केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पहला एफिडेविट 6 अगस्त को 2009 को दायर किया गया. इसके बाद 29 सितंबर 2009 को केंद्र सरकार की तरफ से एक और एफिडेविट गुजरात हाइकोर्ट में दायर किया गया. जब इशरत जहां मामले को लेकर मार्च 2016 में मीडिया में बड़े पैमाने पर चर्चा हुई तो इस केस से जुड़ी फाइलों को गृह मंत्रालय में देखना शुरू किया. इस दौरान ये अहम दस्तावेज गायब पाए गए-
- 18 सितबंर 2009 को गृह सचिव की तरफ से अटॉर्नी जनरल को लिखे गए पत्र की ऑफिस कॉपी और इनक्लोजर
- 18 सितंबर 2009 को ही गृह सचिव द्वारा अटॉर्नी जनरल को लिखे गए एक दुसरे पत्र की ऑफिस कॉपी
- अटॉर्नी जनरल की तरफ से वेरीफाई किया हुआ ड्राफ्ट एफिडेविट
- 24 सितंबर को 2009 को गृह मंत्री द्वारा संसोधित एफिडेविट की कॉपी
- 29 सितंबर 2009 को गुजरात हाइकोर्ट में दायर उसी एफिडेविट की ऑफिस कॉपी
गृह मंत्रालय ने इस मामले में 14 मार्च 2016 को अपनी तरफ से एक आंतरिक कमेटी द्वारा दस्तावेजों के गुम होने की जांच करायी. जांच करने वाले अधिकारी ने 15 जून 2016 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी. रिपोर्ट में यह कहा गया कि जिन परिस्थितियों में फाइलों से ये दस्तावेज गायब हुए हैं और उनके गायब होने के पीछे के मकसद की जांच होनी चाहिए.
इस संबंध में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी 409 यानि क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया है और जांच शुरू कर दी है.
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