मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी के मंत्री व विधायक कई मामलों में आमने-सामने नजर आते हैं
पटना:
बिहार में अब बीजेपी के बारे में धीरे धीरे धारणा ये तेज होती जा रही है कि एक और ये सत्ता में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोगी के रूप में है और साथ ही विपक्ष की तरह उनकी परेशानी बढ़ाने में अब खुलकर नजर आ रही है. इसके एक नहीं, कई उदाहरण मिलते हैं. जिस पर नीतीश कुमार को सफाई भी देनी पड़ रही है. पढ़ें 10 ऐसे मामले.
- सबसे ताजा उदाहरण उप मुख्यमंत्री रेणु देवी का है. जिन्होंने केंद्र को बिहार सरकार द्वारा विशेष राज्य के दर्जे की माँग करते पत्र की खबर आते ही उसको ना केवल खारिज किया, बल्कि यहां तक कह डाला राज्य में जो भी सड़कों, ब्रिज या महासेतु का निर्माण हो रहा है, वो केंद्र की राशि से हो रहा हैं. इस पर नीतीश कुमार का दो दिनो के अंदर जवाब आया. लेकिन सरकार की जमकर किरकिरी हुई और विपक्ष खासकर राष्ट्रीय जनता सैम्पल वरिष्ठ उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने एक बयान में कहा कि नीतीश सरकार में अंतर्विरोध दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. अंतर्विरोध सामान्य प्रकृति का नहीं है. बल्कि कुछ मूल मान्यताओं को लेकर है. सीएम नीतीश के एक नजदीकी मंत्री का बयान है कि बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में ले आने के लिए विशेष राज्य का दर्जा जरूरी है. दूसरी ओर सरकार की उप मुख्यमंत्री कह रही हैं कि विशेष राज्य का दर्जा कोई मायने नहीं रखता है. उनके अनुसार केंद्र की सरकार बिहार को विशेष राज्य के दर्जे से ज़्यादा सहायता दे रही है.
- इससे पूर्व सार्वजनिक स्थल पर नमाज पढ़ने पर हरियाणा की तरह की पाबंदी की मांग एक बीजेपी के विधायक हरिभूशन ठाकुर बचौल ने की और उसके समर्थन में आये मंत्री सम्राट चौधरी. इस बार भी सीएम नीतीश को आगे आके सफ़ाई देनी पड़ी. लेकिन साफ था कि मंत्रिमंडल में बीजेपी के सहयोगी अब इस बात की परवाह नहीं करते कि उनके सार्वजनिक रूप से बोलने से सीएम नीतीश और सरकार के ऊपर क्या असर होगा.
- जातीय जनगणना के मुद्दे पर बीजेपी के विरोध के कारण सर्वदलीय बैठक फ़िलहाल लंबित है. दिक्कत है कि विधानसभा में इस मुद्दे पर बीजेपी साथ में है और समर्थन करती है. यहां तक कि प्रधानमंत्री के यहां सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भाग तो लिया लेकिन अनमने ढंग से और दो-दो उप मुख्यमंत्री रहने के बावजूद खान मंत्री जनक राम को मनोनीत किया.
- नीतीश कुमार, जिन्होंने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी ज़ीरो टॉलेरेंस की छवि को सहेजकर रखा था, वो भी राजभवन और राज्यपाल के कारण अब तार तार होता जा रहा है. क्योंकि जिन कुलपति के यहां छापेमारी हुई या भ्रष्टाचार के आरोप लगे वो नीतीश कुमार के आग्रह के बाद भी अपने पद पर जमे बैठे हैं. यहां तक कि बीजेपी विधायक भी दिल्ली तक इन कुलपतियों को हटाने की फरियाद कर चुके हैं. लेकिन सब जगह स्थिति यथावत है.
- नीतीश कुमार को विरोध ना केवल अपने मंत्रिमंडल सहयोगियों, राजभवन से झेलना पड़ रहा है, बल्कि जब विधानसभा सत्र चल रहा था, तब विधानसभा अध्यक्ष के रवैए से भी नीतीश कुमार सहज नहीं दिखे. खासकर जैसे उन्होंने एक भ्रष्टाचार के आरोपी इंजीनियर के निलंबन में हुई देरी पर विधानसभा की समिति बनाई, उससे लगा कि वो भी नीतीश कुमार को नीचा दिखाना चाहते हैं.
- विधानसभा अध्यक्ष ने राष्ट्रगान भी सदन के अंदर शुरू किया. लेकिन जनता दल यूनाइटेड के सदस्यों की मानें तो नीतीश कुमार को इसके बारे में कोई अंदाजा नहीं था.
- वैसे ही मंत्री जिवेश मिश्रा ने अपने वाहन रोकने को जैसे मुद्दा बनाया, वो भी नीतीश समर्थक अनावश्यक मानते हैं और सदन में जैसे उन्होंने अपने सरकार के खिलाफ बोला, उससे नीतीश कुमार की ही परेशानी बढ़ी.
- इसके अलावा अब जब भी एनडीए विधायक दल की बैठक होती है, उसमें बीजेपी के विधायक पहले से कहीं अधिक आक्रामक रहते हैं और नीतीश कुमार से बात मनवाने में अधिकांश समय कामयाब भी रहते हैं. जैसे पिछले सत्र के दौरान वेतन और पेन्शन और अन्य भते की मांग नीतीश कुमार ने मानी.
- इन सबके बाद भी बीजेपी विधायक कहते हैं कि भले इतने सारे प्रकरण हो, लेकिन सरकार नीतीश कुमार की मर्जी से चलती है. उनका कहना है कि ये सारे उदाहरण सही हैं, लेकिन इसके जड़ में सुशील मोदी जैसे कद्दावर नेता का ना होना है. वर्तमान में जो दोनों उप मुख्यमंत्री हैं, उनका ना वो कद है और ना वो सम्मान. केवल पद धारक होने के कारण कोई उनकी बात सुनेगा, ऐसा राजनीति में नहीं होता.
- वहीं बीजेपी के नेताओं का कहना है कि पार्टी की लाइन होती है, इसलिए सरकार में अंतर्विरोध के स्वर समय समय से निकलते रहते हैं. लेकिन चूंकि नीतीश कुमार के पास अपना संख्या बल नहीं है और वो राज्य की तीसरी नम्बर की पार्टी है तो विधायक, मंत्री को रहने दीजिए, उनके डीजीपी बार-बार निर्देश देने के बाद भी फोन नहीं उठाते. इसलिए बीजेपी की मजबूरी है कि अगर कुछ गलत है तो उसको सार्वजनिक रूप से जाहिर करे.
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