
- किसान महापंचायत ने सुप्रीम कोर्ट में पीली मटर के ड्यूटी-फ्री आयात को रोकने की मांग की है.
- भारत में पीली मटर की कीमत कम होने से घरेलू दाल उत्पादक आर्थिक संकट में हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और विदेशी व्यापार महानिदेशक से इस मामले में जवाब मांगा है.
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में भारतीय दालों और विदेश से आयात होने वाली सस्ती पीली मटर को लेकर दिलचस्प बहस देखने को मिली. बहस के केंद्र में विदेशी पीली मटर थी. जो भारतीय बाजार में थोक में 45 से 50 रुपए किलो तक मिलता है. इसे गरीब की दाल कहा जाता है लेकिन अब किसान महापंचायत इसके निर्बाध आयात पर अंकुश की मांग लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. किसान महापंचायत ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की है कि पीली मटर की ड्यूटी-फ्री निर्बाध आयात ने दाल उत्पादकों को बर्बादी के कगार पर ला दिया है. किसान महापंचायत ने याचिका में तर्क दिया गया कि सस्ती पीली मटर का आयात भारतीय दाल किसानों की आजीविका को प्रभावित कर रहा है.
मालूम हो कि पीली मटर का यह मामला घर-घर से जुड़ा है. भारत में पीली मटर महज 3,500 रुपये प्रति क्विंटल में बिक रही है जबकि भारतीय अरहर और मूंग जैसी दालों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पांच साल में 5,800 रुपये से बढ़कर 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.
विदेशी पीली मटर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है किसान महापंचायत
किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भूइयां और जस्टिस एन.के. सिंह की पीठ के सामने दलील दी कि पीली मटर दालों का सस्ता और अस्वास्थ्यकर विकल्प है. इसकी लगातार ड्यूटी-फ्री आयात से अरहर और मूंग जैसी घरेलू दालों की खेती घाटे का सौदा हो गई है.
संगठन ने सरकार की उस अधिसूचना को रद्द करने की मांग की है जिसमें मार्च 2026 तक पीली मटर के आयात की अनुमति दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और विदेशी व्यापार महानिदेशक (DGFT) से जवाब मांगा है.
खास बात ये है कि सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्य कांत ने प्रशांत भूषण से कई सवाल पूछे. गौरतलब है कि जस्टिस सूर्य कांत हरियाणा के किसान परिवार से आते हैं और वो नवंबर में देश के अगले मुख्य न्यायाधीश भी बनेंगे.
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा
- क्या सही में पीली मटर अस्वास्थ्यकर है ? इसे लेकर कोई स्टडी है क्या?
- साथ ही यह सवाल भी उठाया कि क्या भारत में दाल उत्पादन घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है? और यदि आयात पर रोक लगती है तो क्या दालों की कीमतें बढ़कर आम उपभोक्ताओं को परेशानी में डाल देंगी..
- जस्टिस सूर्य कांत ने ये भी कहा कि दाल की फसल तैयार होते ही व्यापारी किसानों से इसे खरीद लेते हैं और स्टोर कर लेते हैं. ऐसे में ये भी देखना होगा कि कही ऐसा ना हो कि गरीबों को पीली मटर भी ना मिल पाए.
याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा कि अगस्त और सितंबर 2025 में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री को पत्र लिखकर पीली मटर के ड्यूटी-फ्री आयात पर चिंता जताई थी और चेतावनी दी थी कि इसका असर किसानों को दाल उत्पादन का क्षेत्र बढ़ाने से हतोत्साहित करेगा.
- नीति आयोग ने भी सितंबर 2025 की अपनी रिपोर्ट ‘पल्सेस सेक्टर में आत्मनिर्भरता' में कहा था कि आयात पर निर्भरता कोई स्थायी समाधान नहीं है और घरेलू उत्पादन बढ़ाना ही विकल्प है.
- याचिका में आगे कहा गया है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने मार्च 2025 की रिपोर्ट में पीली मटर के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध की सिफारिश की थी.
- आयोग ने चेताया था कि इसके भारी आयात से घरेलू दाल बाजार और कीमतों पर नकारात्मक असर पड़ेगा और भारतीय किसान प्रभावित होंगे.
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