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This Article is From Mar 20, 2013

श्रीलंका मसले पर सर्वदलीय बैठक : संसद में प्रस्ताव लाने पर एकमत नहीं हैं दल

नई दिल्ली: श्रीलंका के खिलाफ संसद में प्रस्ताव की संभावनाओं को खंगालने के लिए सरकार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में ज्यादातर दलों ने इस कदम का विरोध किया। इसके साथ ही सरकार के पास इस संबंध में कोई रास्ता नहीं बचा है।

90 मिनट तक चली बैठक में सिर्फ द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव लाने के विचार का समर्थन किया।

सूत्रों ने कहा कि ज्यादातर दल इसके पक्ष में नहीं थे इसलिए इस विचार को लगभग त्याग दिया गया।

बाहर से सरकार का समर्थन कर रही समाजवादी पार्टी ने कहा कि श्रीलंका एक मित्र देश है और भारतीय संसद को उसके खिलाफ प्रस्ताव पारित नहीं करना चाहिए।

संसदीय कार्य मंत्री कमल नाथ की ओर से बुलाई गई बैठक से बाहर निकलते हुए सपा के नेता रेवती रमण सिंह ने कहा, ‘हम श्रीलंकाई तमिलों के साथ हैं लेकिन संसद में किसी प्रस्ताव की जरूरत नहीं है क्योंकि चीन के खिलाफ वर्ष 1962 के युद्ध में सिर्फ श्रीलंका ही हमारे साथ खड़ा था।’ उन्होंने कहा, ‘हमने हाल ही में अफजल गुरु पर पाकिस्तानी संसद के प्रस्ताव को खारिज किया है। हम एक मित्र देश के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत को वही करना चाहिए जो राष्ट्रीय हित में और श्रीलंका के तमिलों के हित में हो।’

इधर, सूत्रों के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस ने संप्रग से कहा है कि वह श्रीलंका से संबंधित विदेश नीति के मुद्दे पर उसके साथ होगी।

दूसरी ओर, संप्रग सरकार से द्रमुक के समर्थन वापस लेने से अप्रभावित सरकार ने बुधवार को जोर देकर कहा कि वह पूरी तरह से ‘स्थिर’ है और ‘कमजोर’ नहीं है तथा वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष श्रीलंका से जुड़े प्रस्ताव पर संशोधन पेश करेगी ताकि उस देश में मानवाधिकारों के बारे में ‘ठोस संदेश’ पहुंचाया जा सके।

इस विषय पर सरकार का पक्ष उसके तीन वरिष्ठ मंत्रियों पी चिदंबरम, कमलनाथ और मनीष तिवारी ने मीडिया के समक्ष रखते हुए जोर दिया कि द्रमुक की मांग विचार की प्रक्रिया में थी। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि उसके सहयोगी (द्रमुक) ने समर्थन वापस लेने के निर्णय पर फिर से विचार करने का वायदा करने के बाद अपने रुख में परिवर्तन क्यों किया।

गौरतलब है कि संप्रग सरकार के दूसरे सबसे बड़े घटक रहे द्रमुक के लोकसभा में 18 सदस्य हैं।

सरकार की स्थिरता के बारे में पूछने पर संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि हमारी सरकार कमजोर नहीं है। सरकार अशक्त नहीं है बल्कि स्थिर है। कोई भी राजनीतिक दल हमारे बहुमत को चुनौती देने आगे नहीं आया है।

चिदंबरम ने कहा कि भारत चाहता है कि जिनीवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका पर ‘कड़े’ प्रस्ताव का अनुमोदन किया जाए। उन्होंने कहा कि भारत इस संबंध में मसौदे में संशोधन पेश करेगा ताकि तमिलों के मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर उस देश को ठोस संदेश पहुंचाया जा सके और उसे स्वतंत्र जांच के लिए राजी किया जा सके।

वित्तमंत्री ने उन आरोपों को खारिज कर दिया कि भारत ने अमेरिका के कड़े शब्दों वाले प्रस्ताव को हल्का करने की कोशिश की और कहा कि यह कोरी अफवाह है। उन्होंने कहा कि श्रीलंकाई तमिलों के बारे में संसद में प्रस्ताव पारित करने की द्रमुक की दूसरी मांग पर भी अन्य दलों से विचार विमर्श की प्रक्रिया चल रही है।

चिदंबरम ने दावा किया कि इस मुद्दे पर सरकार के रूख से द्रमुक वाकिफ है लेकिन उसने 18 मार्च की रात और 19 मार्च की सुबह के बीच अपने रुख में परिवर्तन किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस बारे में नहीं जानकारी है कि द्रमुक ने 18 मार्च की रात और 19 मार्च की सुबह के बीच अपना रुख क्यों बदला।’’ चिदंबरम ने कहा कि द्रमुक सुप्रीमो एम करुणानिधि ने कहा था कि पार्टी समर्थन वापस लेने के निर्णय पर पुनर्विचार करेगी बशर्ते संसद में 22 मार्च से पहले इस बारे में प्रस्ताव पारित किया जाए।

तीनों वरिष्ठ मंत्रियों ने जोर देकर कहा कि द्रमुक के सरकार से समर्थन वापस लेने के बावजूद सरकार को कोई खतरा नहीं है। चिदंबरम ने कहा कि केवल इसलिए कि एक सहयोगी ने समर्थन वापस ले लिया है, इससे सरकार कमजोर नहीं हुई है। कोई राजनीतिक अस्थिरता या राजनीतिक अनिश्चितता नहीं है। मीडिया में कुछ चर्चाओं को छोड़ हमारी स्थिरता के बारे में कोई सवाल नहीं उठा है।

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार स्थिरता की परख के लिए विश्वास प्रस्ताव पेश करेगी, उन्होंने कहा, ‘‘इसका कोई सवाल ही नहीं उठता है, क्योंकि हम बहुमत में हैं।’’ द्रमुक के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद ऐसी अटकलें तेज हो गई थी कि सरकार को बाहर से समर्थन देने वाली सपा और बसपा के दवाबों का सामना करना पड़ेगा जिनके कुल मिलाकर 43 सदस्य हैं।

सरकार की स्थिरता के बारे में कोई ‘संदेह’ या ‘चिंता’ नहीं होने पर जोर देते हुए कमलनाथ ने कहा कि वह अपनी नीतियों को आगे बढ़ाना जारी रखेगी। उन्होंने कहा, ‘‘हम (सरकार) पूरी तरह से स्थिर हैं। अगर कोई परीक्षण होगा, तो सदन में होगा। लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने हमारी स्थिरता को चुनौती नहीं दी है।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस कुछ अन्य दलों को अपने साथ जोड़ेगी, नाथ ने कहा कि राजनीति में दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। द्रमुक की मांग के बारे में पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के समक्ष मसौदा प्रस्ताव में संशोधन लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि संशोधन को मंगलवार को अंतिम रूप दे दिया गया है। साथ ही कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत के स्थायी प्रतिनिधि दिल्ली में हैं और उन्हें संयुक्त राष्ट्र की बैठक में संशोधन पेश करने के लिए उपयुक्त निर्देश दिए जाएंगे। उन्होंने इन खबरों को सिरे से खारिज कर दिया कि भारत प्रस्ताव को हल्का बनाने का प्रयास कर रहा है और कहा कि यह कोरी अफवाह है।

चिदंबरम ने कहा कि भारत का हमेशा से यह रुख रहा है और यही रहेगा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को कड़ा प्रस्ताव मंजूर करना चाहिए ताकि श्रीलंका को ठोस संदेश दिया जा सके और उसे स्वतंत्र एवं विश्वसनीय जांच के लिए राजी किया जा सके।

आर्थिक सुधार और अन्य कल्याण योजनाओं के बारे में चिदंबरम ने कहा कि हम संबंधित विधेयकों को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी रखेंगे। कल ही हमने खाद्य सुरक्षा विधेयक को मंजूरी दी। विधेयक संसद में पेश किया जाएगा और हमें पूरा विश्वास है कि इसे पारित कराने के लिए पर्याप्त समर्थन होगा।

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