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राजौरी में ना-PAK गोलीबारी के बीच डटे हैं बाशिंदे, बोले- बंदूकें थमेंगी, गेहूं फिर उगेगा

भारत के'ऑपरेशन सिंदूर'से बौखलाया पाकिस्तान LoC पर लगातार गोलीबारी कर रहा है. राजौरी में खासकर सीमा से सटे इलाकों में इस गोलीबारी के कारण आम लोगों के घरों को भारी नुकसान पहुंचा है और कुछ लोग घायल भी हुए हैं. इसी गोलीबारी के बीच NDTV के वरिष्ठ संवाददाता अनुराग द्वारी और उनकी टीम ने सीधे ग्राउंड पर जाकर हालात को समझा. पढ़िए इस विशेष रिपोर्ट को

राजौरी में ना-PAK गोलीबारी के बीच डटे हैं बाशिंदे, बोले- बंदूकें थमेंगी, गेहूं फिर उगेगा

Operation Sindoor: बारिश की बूंदें गाड़ी की खिड़कियों पर पड़ रही थीं, और रास्ते सुनसान थे। मैं राजौरी में था — एक ऐसा ज़िला जो कभी महाभारत और बौद्ध भिक्षुओं की यात्राओं का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन आज वहां खामोशी भी डरावनी लगती है. स्कूल बंद हैं, पर बुलंदी से खड़े हैं. हालांकि उनमें अब बच्चे नहीं हैं, क्योंकि यहां बच्चों से ज्यादा बंकर ज़रूरी हो गए हैं. जो घर कभी सुकून देते थे, अब लोग उन्हीं घरों में रेत के बोरे लगाकर बंकर बना चुके हैं.

"गोलाबारी की वो रात..."

वो रात शायद मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा. एक के बाद एक धमाके, खिड़कियों के कांच चटखने लगे. छतों से मलबा गिरने लगा. ये कहते हुए बलबीर कुमार शर्मा की आंखें नम थीं ... मैं गांवों में घूम रहा था — इरविन खेतर, मुकबरकपुरा, पतराड़ा पंचग्राही ...हर घर में एक ही कहानी थी- डर, भागदौड़, चीखें.इरविन खेतर गांव में बलबीर शर्मा ने मुझे दिखाया कि किस तरह उनके मामा का घर सीधा निशाना बना. “पांच लोग थे उस कमरे में. तीन घायल हो गए. जिसमें एक बच्चा भी शामिल थे, बस किस्मत थी,” उन्होंने कहा -अब रिश्तेदार के यहां रह रहे हैं.

पाकिस्तान की गोलीबारी की वजह से राजौरी में घरों की दीवारें- खिड़कियां टूट गई.

पाकिस्तान की गोलीबारी की वजह से राजौरी में घरों की दीवारें- खिड़कियां टूट गई.

"घर नहीं,अब बंकर हैं"

जो घर कभी त्योहारों की रौनक से जगमगाते थे, अब उनमें ताले डले हैं...कुछ  खिड़कियां प्लास्टिक से ढंकी हैं, और लोग एक ही कमरे में दुबके रहते हैं.एक घर में मैंने देखा — बच्चों का क्रिकेट बैट वहीं पड़ा था…मैं एक घर के आंगन में खड़ा था, कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे. “ये घर एक पल में खाली हुआ. यहां रहने वालों ने ज़िंदगी बचाने के लिए सब कुछ छोड़ दिया,” मैं कैमरे की तरफ देखकर यही कहता रहा 

"खेत सूने, अनाज तबाह"

जब हम आगे गए तो पतराड़ा पंचग्राही गांव में देवराज शर्मा से मेरी मुलाकात हुई. उनका घर भी प्रभावित हुआ है. "रात के 1:35 बजे का वक्त था. हमने पांच मिनट पहले ही घर छोड़ा था, नहीं तो आज शायद ज़िंदा न होते," उन्होंने कहा."30 क्विंटल गेहूं था खेत में, सब बर्बाद हो गया।" हमसे बातचीत में उनके आंसू और शब्द, दोनों रुक नहीं रहे थे. "ये दीवारें मैंने पत्थर और उम्मीद से बनाई थीं, बनाना मुश्किल है… लेकिन खो देना उससे भी ज़्यादा मुश्किल है."

राजौरी निवासी देवराज बताते हैं कि यदि 5 मिनट पहले उनका परिवार घर नहीं छोड़ता तो फायरिंग में वो जिंदा नहीं बचते

राजौरी निवासी देवराज बताते हैं कि यदि 5 मिनट पहले उनका परिवार घर नहीं छोड़ता तो फायरिंग में वो जिंदा नहीं बचते

"लेकिन शिवजी ने बचा लिया"

और उसी बर्बादी के बीच एक मंदिर खड़ा है — बिल्कुल वैसा ही जैसा था. एक भी खरोंच नहीं. देवराज मुझे मंदिर की ओर इशारा करके बोले, “शिवजी ने ही बचाया हमें।” शायद यही आस्था है जो इन लोगों को रोज़ रात की गोलाबारी के बाद अगली सुबह के लिए ताकत देती है.

"आसमान से बारिश, ज़मीन पर सेना"

सैनिक लगातार गश्त कर रहे हैं.सरकारी सेवाएं थोड़ी लड़खड़ाई हैं लेकिन सब डटे हैं -- गांववाले भी  — अपनी ज़मीन पर, अपने विश्वास पर.गीता शर्मा से मेरी बात हुई. आंखों में आंसू, आवाज़ कांपती हुई. “हम मकबरकपुरा में थे. गोलाबारी हुई, मेरी बेटी घायल हो गई. अब अस्पताल में है। वो धमाका… वो आवाज़… आज भी नींद में डराती है।”

"बंदूकें थमेंगी, गेहूं फिर उगेगा"

खेतों में इस वक्त हरियाली नहीं, कीचड़ है. जानवर बांध दिए गए हैं, दरवाज़ों पर ताले हैं, और खामोशी में एक अनकहा डर है. लेकिन राजौरी हार नहीं मान रहा. यहां हर किसान, हर मां, हर बच्चा — एक योद्धा है, सबकी उम्मीदें जिंदा है. और मुझे यकीन है, एक दिन यहां फिर गेहूं उगेगा… गोलियां नहीं. 

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