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फंगल संक्रमण से लड़ने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया नया मॉडल, दवा निर्माण में मिलेगी मदद

इस अध्ययन को प्रतिष्ठित जर्नल सेल कम्युनिकेशन एंड सिंगलिंग में छापा है, जिसे आईआईटी मद्रास, आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच और आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने मिलकर तैयार किया है.

फंगल संक्रमण से लड़ने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया नया मॉडल, दवा निर्माण में मिलेगी मदद
आईसीएमआर
नई दिल्ली:

आईआईआईटी मद्रास और आईसीएमआर-एनआईआरआर सीएच के वैज्ञानिकों ने भारत में पहली बार एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जो फंगल संक्रमण को बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा. इससे सस्ती और असरदार एंटी-फंगल दवाइयाँ बनाने का रास्ता भी खुल सकता है. यह शोध खासतौर पर कैंडिडा अल्बिकन्स नाम के फंगल संक्रमण पर किया गया है, जो खून में फैलने पर घातक हो सकता है.

कैंडिडा अल्बिकन्स संक्रमण क्या है?

कैंडिडा अल्बिकन्स नाम का फंगस एक खतरनाक बीमारी सिस्टमेटिक कैंडीडायसिस का बड़ा कारण है. यह संक्रमण पहले मुंह, गले, त्वचा या जननांग में शुरू होता है और फिर खून और आंतरिक अंगों तक फैल जाता है. दुनियाभर में हर साल 15 लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आते हैं और करीब 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इसकी मृत्यु दर लगभग 63% है. भारत में देखें तो प्रति वर्ष करीब 4.7 लाख नए मामले सामने आते हैं.

इस शोध की विशेषता यह है कि पहली बार फंगल मेटाबॉलिक मॉडल और मानव मेटाबॉलिक मॉडल को जोड़कर एक नई प्रणाली बनाई गई है इससे वैज्ञानिकों यह समझने में आसानी हुईं कि आखिर संक्रमण के दौरान फंगस का मेटाबॉलिज्म (शरीर के अंदर ऊर्जा और पोषण की प्रक्रिया) कैसे बदलता है और कौन-सी प्रक्रियाएँ इसके जीवित रहने के लिए सबसे जरूरी हैं.

इस अध्ययन को प्रतिष्ठित जर्नल सेल कम्युनिकेशन एंड सिंगलिंग में छापा है, जिसे आईआईटी मद्रास, आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच और आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने मिलकर तैयार किया है. वहीं शोध का नेतृत्व आईआईटी मद्रास के वाधवानी स्कूल ऑफ डेटा साइंस एंड एआई के प्रोफेसर कार्तिक रमण और आईसीएमआर-एनआईआरआरसीएच मुंबई की प्रोफेसर सुसन थॉमस ने किया. 

ड्रग रेजिस्टेंट की समस्या कम होने की उम्मीद 

शोधकर्ताओं का दावा है कि इस मॉडल के जरिये एक खास एंजाइम का पता चला है, जो फंगस के संक्रमण के लिए बहुत जरूरी है. इस एंजाइम को जब हटाया गया तो लैब टेस्ट और माउस पर किए गए प्रयोगों में फंगल संक्रमण काफी कम हो गया. प्रो. रमण ने कहा कि यह खोज नई और असरदार एंटी-फंगल दवाओं के निर्माण में मदद करेगी और दवाओं पर बढ़ती रेजिस्टेंस (यानी दवाओं का असर कम होना) की समस्या को भी कम कर सकती है. इस शोध का मकसद मरीजों की जान बचाना, मौत के मामलों को घटाना और इलाज की दर कम करना है.

दवा निर्माण में मिलेगी सफलता 

शोधकर्ताओं को जानवरों पर शुरुआती परीक्षणों में सफलतामिली है. अब अगला कदम क्लीनिकल पार्टनर्स के साथ मिलकर मरीजों के सैंपल पर अध्ययन करना और इंडस्ट्री के साथ जुड़कर इन्हें दवा बनाने की दिशा में आगे बढ़ाना है.

विशेषज्ञ बताते हैं कि कई बार पुरानी दवाएं असर नहीं करतीं क्योंकि फंगस में दवा प्रतिरोध (ड्रग रेजिस्टेंस) बढ़ रहा है. पारंपरिक तरीके से नई दवाएं बनाने में बहुत समय और पैसा लगता है. ऐसे में यह डेटा-आधारित सिस्टम बायोलॉजी तरीका शोध को तेज और ज्यादा सटीक बना सकता है. आईआईटी मद्रास ने कहा कि यह स्टडी भारत की बढ़ती इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च क्षमता का उदाहरण है. इससे न केवल देश में नई एंटी-फंगल थेरेपी विकसित होंगी बल्कि भारत को वैश्विक हेल्थकेयर रिसर्च में नेतृत्व की भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा.

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