दलाई लामा ने कहा कि भारत गुरू है और हम चेले हैं...
बेंगलुरु:
तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने मंगलवार को कहा कि हमारे समाज में मौजूद सामंती व्यवस्था की वजह से जाति के नाम पर सामाजिक न्याय का अभाव रहा और इसका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है. स्वयं को प्राचीन भारतीय मूल्यों और ज्ञान का दूत बताते हुए दलाई लामा ने कहा, "भारत गुरू है और हम चेले हैं. हम विश्वसनीय चेले हैं क्योंकि हमने आपके प्राचीन ज्ञान को सहेज रखा है."
दलाई लामा ने यहां 'सामाजिक न्याय और डॉ बीआर अंबेडकर' विषय पर राज्यस्तरीय सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा, "मैं खुद को भारत का सपूत भी मानता हूं क्योंकि मेरे मस्तिष्क की हर कोशिका प्राचीन भारतीय ज्ञान से भरी हुई है और मेरा शरीर भारतीय दाल और चावल से चलता है." उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का अभाव जाति के नाम पर होता है, धर्म के नाम पर नहीं. लेकिन यह सामंती व्यवस्था जैसी मौजूदा सामाजिक व्यवस्थाओं के चलते है.
दलाई लामा ने कहा कि सांस्कृतिक रूप से यह नकारात्मक पहलू हमारे समाज में विद्यमान है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए. धर्म और धार्मिक व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ सामंती प्रथाएं हैं जो नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से जाति से संबंधित अन्याय को समाप्त किया जा सकता है. समाज के कुछ वगोर्ं में मौजूद असुरक्षा की भावना को शिक्षा के माध्यम से समाप्त किया जाना चाहिए.
दलाई लामा ने कहा, "जिससे समानता की भावना आए, जिससे आत्मविश्वास का निर्माण हो. आत्मविश्वास, कड़े परिश्रम और शिक्षा से समानता को हासिल किया जा सकता है." उन्होंने प्राचीन भारतीय मूल्यों और ज्ञान पर कहा कि देश में इन्हें नया रूप दिया जाना चाहिए क्योंकि ये प्राचीन नहीं हैं, बल्कि सर्वाधिक प्रासंगिक हैं. कर्नाटक सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर आयोजित सेमिनार में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकाजरुन खड़गे ने भाग लिया.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
दलाई लामा ने यहां 'सामाजिक न्याय और डॉ बीआर अंबेडकर' विषय पर राज्यस्तरीय सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा, "मैं खुद को भारत का सपूत भी मानता हूं क्योंकि मेरे मस्तिष्क की हर कोशिका प्राचीन भारतीय ज्ञान से भरी हुई है और मेरा शरीर भारतीय दाल और चावल से चलता है." उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का अभाव जाति के नाम पर होता है, धर्म के नाम पर नहीं. लेकिन यह सामंती व्यवस्था जैसी मौजूदा सामाजिक व्यवस्थाओं के चलते है.
दलाई लामा ने कहा कि सांस्कृतिक रूप से यह नकारात्मक पहलू हमारे समाज में विद्यमान है जिसे समाप्त किया जाना चाहिए. धर्म और धार्मिक व्यवस्थाओं के नाम पर कुछ सामंती प्रथाएं हैं जो नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से जाति से संबंधित अन्याय को समाप्त किया जा सकता है. समाज के कुछ वगोर्ं में मौजूद असुरक्षा की भावना को शिक्षा के माध्यम से समाप्त किया जाना चाहिए.
दलाई लामा ने कहा, "जिससे समानता की भावना आए, जिससे आत्मविश्वास का निर्माण हो. आत्मविश्वास, कड़े परिश्रम और शिक्षा से समानता को हासिल किया जा सकता है." उन्होंने प्राचीन भारतीय मूल्यों और ज्ञान पर कहा कि देश में इन्हें नया रूप दिया जाना चाहिए क्योंकि ये प्राचीन नहीं हैं, बल्कि सर्वाधिक प्रासंगिक हैं. कर्नाटक सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर आयोजित सेमिनार में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता मल्लिकाजरुन खड़गे ने भाग लिया.
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