
India's Most Wanted Criminals: 17 साल 'ऑपरेशन तहव्वुर' पूरा हुआ. मुंबई हमले का गुनहगार भारत के कब्जे में है. पीएम मोदी जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिले तो प्रेस के सामने अमेरिकी राष्ट्रपति ने कह दिया, "तहव्वुर राणा को भारत को सौंपा जाएगा." ये अचानक नहीं हुआ था. भारत इसके लिए लगातार अमेरिका पर प्रेशर डाल रहा था और आखिरकार अमेरिका को भारत की बात माननी पड़ी. मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है.
चीन से लेकर कनाडा तक हर बार भारत भारी
रूस का खुलकर साथ देना हो या कतर से अपने पूर्व नेवी अधिकारियों को छुड़ाना. अमेरिका से टैरिफ पर बराबरी के स्तर पर बातचीत हो या मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर राणा को अमेरिका से खींचकर भारत लाना, ये भारत की नई कूटनीति है. यही नहीं चीन से गलवान पर दो-दो हाथ करना हो या कनाडा को दो टूक खालिस्तान के मुद्दे पर दुनिया के सामने बेनकाब करना, 2014 के बाद भारत का रुख साफ है. हम किसी के पचड़े में पड़ेंगे नहीं, और कोई हमारे मामले में टांग अड़ाएगा तो छोड़ेंगे नहीं. भारत की इसी कूटनीति को देख कनाडा और पाकिस्तान ने अपने यहां आतंकवादियों की एक के बाद एक हत्याओं की इल्जाम भारत की खुफिया एजेंसी रॉ पर लगाने की कोशिश की, मगर दुनिया को भी पता है कि भारत सीना ठोककर काम करता है. उसे इंटरनेशनल कानूनों को तोड़ने की जरूरत नहीं है.
आतंकवादियों को भारत ने क्या संदेश दिया
तहव्वुर राणा की वापसी ने भारत के गुनहगार आतंकवादियों की नींदे उड़ा दी हैं. अब तक तो सिर्फ उन्हें अनजान चेहरों से मौत दिखाई देती थी, अब उन्हें जेल भी नजर आने लगा है. भारत ने साफ कर दिया है कि वो अपने गुनहगारों को माफ नहीं करेगा. आज नहीं तो कल उनका इंसाफ होगा. भारत के टॉप 10 लिस्ट में शुमार नीचे दिए गए सभी चेहरे हर कदम पर अब अपनी मौत को देख रहे हैं. चाहे वो गोली हो या फांसी. उन्हें यकीन हो गया कि भारत उन्हें छोड़ने वाला नहीं है.
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दुनिया को भारत ने क्या और कैसे समझाया
भारत ने 2014 के बाद दुनिया को समझाया कि अब भारत के साथ दोहरा रवैया नहीं चलेगा. एक तरफ भारत से दोस्ती की बात और दूसरी तरफ भारत के साथ धोखा. अब दोस्त और दुश्मन की पहचान बातों से नहीं, बल्कि उनके कामों से होगी. तभी तो भारत ने जब कश्मीर से धारा 370 हटाई तो तुर्की और पाकिस्तान को छोड़कर किसी देश ने गलत बयानी नहीं की. अरब जगत तक भारत के साथ खड़ा नजर आया. तुर्की ने साथ दिया तो उसे भारत ने ब्रिक्स में एंट्री नहीं लेने दी. अब वो भी भारत से समझौता करने के रास्ते पर चल पड़ा है, लेकिन पाकिस्तान के जरिए मुस्लिम जगत का खलीफा बनने के सपने का मोह तुर्की नहीं छोड़ पा रहा. चीन को गलवान से समझ आ गया कि भारत उसकी घुड़की में नहीं आने वाला और युद्ध करने की स्थिति में अभी चीन है नहीं. उसे दुनिया का सुपरपावर बनना है और ऐसे में वो भारत से लड़कर अपनी मंजिल को दूर नहीं करता. इसलिए वो भारत से अभी फिलहाल सीधे कोई पंगा नहीं लेना चाहता. वहीं अरब जगत को समझ आ गया है कि पाकिस्तान के साथ उनका कोई भविष्य नहीं है. पाकिस्तान खुद कटोरा लिए घूम रहा है तो वो उनकी क्या मदद करेगा. ऐसे में उन्हें भारत के साथ रहने में फायदा दिख रहा है. अमेरिका अपने आप को सुपरपावर बनाए रखने के लिए भारत से अच्छे संबंध चाहता है. उसे पता है कि अगर चीन से उसकी लड़ाई हुई तो भारत उसकी बड़ी मदद कर सकता है. ऐसे में अमेरिका भी भारत के खिलाफ मामले से अब दूरी रखने लगा है. कनाडा अपने खालिस्तान प्रेम में भारत से टकराने आया तो अंजाम ट्रूडो को अपने पद से इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा. अब उसके रिश्ते अमेरिका, चीन और रूस तीनों से खराब हो चुके हैं. ऐसे में भारत से अब वो बनाकर ही रखना चाहेगा. रूस तो पहले ही भारत का दोस्त था, यूक्रेन युद्ध में भारत के चट्टान की तरह साथ खड़े रहने के बाद अब ये दोस्ती और पक्की हो चली है. यूरोप से भारत के रिश्ते पहले भी दोस्ताना था, लेकिन रह-रहकर उनका पाकिस्तान प्रेम जाग उठता था, अब वो भी समझ चुके हैं कि अगर कारोबार करना है तो भारत से हाथ मिलाकर ही रहना होगा. पाकिस्तान पर दो-दो बार सर्जिकल स्ट्राइक कर भारत ने उसे अच्छे से पहले ही समझा दिया है.
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इजरायल ने माना भारत की बड़ी कामयाबी

जैसे को तैसा जवाब देने का आदी इजरायल भी अब भारत के इस गुण की तारीफ करने लगा है. भारत में इजरायल के महावाणिज्यदूत कोबी शोशानी का मानना है कि तहव्वुर राणा का भारत आना मोदी सरकार की एक बड़ी कामयाबी है. शोशानी ने आईएएनएस से कहा, "मैं भारत सरकार को बधाई देना चाहूंगा क्योंकि यह निश्चित रूप से मोदी सरकार, भारतीय कूटनीति के लिए एक बड़ी सफलता है, वर्षों की कोशिशों के बाद उसे भारत लाया जा सका है। इस घटनाक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के बेहतर रिश्ते की भी भूमिका रही है. 26/11 हमले के बाद मैं भारत आया था. मुझे विदेश मंत्री ने यहां भेजा था. मेरे जेहन में उस वक्त नरीमन हाउस, ताज महल होटल, वीटी स्टेशन और लियोपोल्ड कैफे जाने की याद आज भी ताजा है. मुझे वह दिन बहुत अच्छी तरह याद है. मुझे आज भी बारूद की गंध आती है."
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