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भारत-अमेरिका संबंध और ट्रंप ने डाली टैरिफ वाली खटाई, 3 दशक की मेहनत पर यह सनक यूं भारी पड़ेगी

क्या डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर ने भारत-अमेरिका रिश्तों को संभवतः तीन दशक के सबसे खराब दौर में पहुंचा दिया है? विश्लेषकों के अनुसार आखिरी बार ऐसी तल्खी उस समय देखने को मिली थी जब अमेरिका ने 1998 में परमाणु परीक्षणों के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाए थे.

भारत-अमेरिका संबंध और ट्रंप ने डाली टैरिफ वाली खटाई, 3 दशक की मेहनत पर यह सनक यूं भारी पड़ेगी
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अल्टर्ड तस्वीर
  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कुल 50% टैरिफ लगा दिया है.
  • ट्रंप के टैरिफ अटैक से भारत-अमेरिका के लगभग तीस वर्षों के कूटनीतिक संबंधों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
  • प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को साफ संदेश दिया है कि भारत अपने हितों पर किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करेगा.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 'येन केन प्रकारेण' हर दिन खबर में बने रहना जानते हैं. अभी उनके टैरिफ वॉर के निशाने पर भारत है. अब इसे उनकी सोची समझी रणनीति कहिए या फिर 'मेरे मन मे जो आएगा वो करूंगा' वाला एटीट्यूड, उन्होंने भारत और अमेरिका के दशकों की मेहनत से सींचे संबंधों वाले पौधे में मट्ठा डाल दिया है. विश्लेषकों और अधिकारियों का कहना है कि व्यापार और रूसी तेल खरीद को लेकर भारत के खिलाफ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तीखे टैरिफ अटैक से दोनों देशों के बीच लगभग तीन दशकों की कूटनीतिक प्रगति पर पानी फिरने का खतरा है. उनकी यह सनक दोनों के बीच सहयोग के अन्य क्षेत्रों को भी पटरी से उतार सकती है, क्योंकि घरेलू राजनीतिक दबाव दोनों देशों की सरकार को अपना रुख सख्त करने के लिए मजबूर कर रहा है.

बुधवार को रूसी तेल खरीदने का हवाला देकर ट्रंप ने पहले से ही भारतीय आयात पर लगाए गए 25% टैरिफ में अतिरिक्त 25% टैरिफ जोड़ दिया. यानी भारतीय आयात पर कुल टैरिफ 50% हो गया है. ट्रंप अभी भी रुकते नहीं दिख रहे हैं, उनका टोन अभी भी भारत के खिलाफ है. ऐसे में भारत की आम जनता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ओर देख रही है कि वे ट्रंप की बदमाशी के खिलाफ खड़े हों. उन्होंने ठीक यही किया है. पीएम मोदी ने ट्रंप और अमेरिका को कड़ा संदेश देते हुए साफ कहा है कि भारत अपने हितों से, खासकर अपने किसानों के हितों से किसी कीमत पर समझौता नहीं करेगा.

ट्रंप दशकों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं

भारत हाल के सालों में चीन के साथ अपनी रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता की वजह से वाशिंगटन के लिए एक प्रमुख भागीदार के रूप में उभरा है. लेकिन ट्रंप यूक्रेन जंग रुकवाने में अपनी असफता को छिपाने के लिए भारत को निशाने पर ले रहे हैं, भारत की आर्थिक जरूरतों को नजरअंदाज करते हुए रूस से तेल खरीदने के लिए उसपर टैरिफ लाद रहे हैं. सबसे हास्यास्पद बात यह है कि रूस से व्यापार करने वाला देश भारत अकेला नहीं है. खुद अमेरिका और यूरोपीय संघ बडे़ पैमाने पर अभी भी रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं.

ट्रंप भारत की दोस्ती की तिलांजली देकर पाकिस्तान को अपने करीब ला रहे हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के दो सूत्रों ने कहा कि ट्रंप का यह तंज कि भारत अपने कट्टर विरोधी पाकिस्तान से तेल खरीद सकता है, नई दिल्ली को अच्छा नहीं लगा है. भारत ने ट्रंप के बार-बार किए गए दावों को भी खारिज कर दिया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया सैन्य संघर्ष को समाप्त करने के लिए व्यापार को एक हथकंडे के रूप में इस्तेमाल किया था.

हाल के वर्षों में, लगातार अमेरिका ने चीन की बढ़ती ताकत का मुकाबला करने के अपने दीर्घकालिक प्रयासों में एक महत्वपूर्ण पार्टनर के रूप में भारत के साथ संबंध बेहतर किए हैं. खुद ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत को तरजीह दी.

लेकिन अब विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप के हालिया कदमों ने दोनों देशों के रिश्ते को संभवतः सबसे खराब दौर में पहुंचा दिया है. आखिरी बार दोनों के बीच इस स्तर की तल्खी ढाई दशक पहले देखने को मिली थी जब अमेरिका ने 1998 में परमाणु परीक्षणों के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाए थे (जो करना भारत की सुरक्षा के लिए हर लिहाज से अहम था.)

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार वाशिंगटन के कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में कार्यरत एशले टेलिस ने कहा कि "हम एक अनावश्यक संकट की ओर बढ़ सकते हैं जो भारत के साथ एक चौथाई सदी की कड़ी मेहनत से हासिल की गई उपलब्धियों (संबंधों में) को खत्म कर देगा."

कई मोर्चों पर कमजोर हो सकते हैं रिश्ते

जॉर्ज डब्लू. बुश की सरकार में विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी रहे इवान फेगेनबाम ने चेतावनी दी कि भारत के साथ संबंध का असर अमेरिका की घरेलू राजनीति पर पड़ने का जोखिम है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारत बड़ा अहम रोल अदा करता है. चाहें वो एच1बी वीजा लेकर गए तकनीकी कर्मचारी हों या अमेरिकी कंपनियों द्वारा ऑफशोरिंग और भारत में मैन्युफैक्चरिंग करना. दोनों देश कई मोर्चों पर टैक्नोलॉजी शेयर करते हैं और मिलकर इनोवेशन करते हैं. ट्रंप की यह सनक इन सबपर असर डाल सकती है.

नागरिक परमाणु प्रौद्योगिकी पर सहयोग के लिए 2008 के समझौते के बाद से, दोनों देशों ने खुफिया जानकारी शेयर करने और रक्षा सहयोग को गहरा किया है. दोनों ने क्वाड समूह के माध्यम से ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ बातचीत का विस्तार किया है, जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक में चीन के प्रभुत्व को रोकना है.

लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल और फिर पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ मोदी के तालमेल के बावजूद, अब दरारें सामने आई हैं.

फरवरी में अमेरिका से भारतीयों को निर्वासित किया गया. भले अमेरिका का दावा था कि वो अवैध प्रवासी थे लेकिन जिस तरह से उन्हें हाथ पैर में चेन लगाकर सैन्य विमानों से निर्वासित किया गया था, बहुत सवाल उठे थे. इससे पहले 2023 के अंत में भी रिश्ते की गंभीर परीक्षा हुई थी. तब अमेरिका ने दावा किया था कि उसने अमेरिकी धरती पर एक खालिस्तानी आतंकी को मारने की भारतीय संपर्क वाली साजिश को नाकाम कर दिया है. नई दिल्ली ने इस साजिश से किसी भी आधिकारिक संबंध से इनकार किया है.

क्या ट्रंप की गलती भारत-रूस-चीन को लाएगी करीब?

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के एक सूत्र ने कहा कि भारत को अमेरिका के साथ संबंधों को धीरे-धीरे सुधारने की जरूरत है. लेकिन साथ ही उसे उन अन्य देशों के साथ और अधिक जुड़ना चाहिए, जिन्होंने ट्रंप टैरिफ का खामियाजा भुगता है. इसमें अफ्रीकी संघ और ब्रिक्स ब्लॉक शामिल हैं, जिसमें ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं.

भारत पहले से ही रूस और चीन के साथ संबंध मजबूत करने के लिए कुछ कदम उठा रहा है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस साल नई दिल्ली आने की उम्मीद है. मंगलवार को रूस ने कहा कि दोनों देशों ने "विशेष रूप से विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के रूप में" रक्षा सहयोग को और मजबूत करने पर चर्चा की है.

भारत ने चीन के साथ भी जुड़ाव बढ़ाया है, जो 2020 में सीमा संघर्ष के बाद वर्षों के तनाव के बाद एक बदलाव है. पीएम मोदी भी 2018 के बाद पहली बार चीन का दौरा करने वाले हैं. पीएम मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की मीटिंग में हिस्सा लेंगे.

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