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This Article is From Jan 19, 2021

घर खरीददारों को सुप्रीम कोर्ट में लगा झटका, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड वैध ठहराया

कोर्ट ने संशोधन, एक परियोजना के संबंध में एक दिवाला याचिका को बनाए रखने के लिए कम से कम अचल संपत्ति के 100 आवंटी या कुल संख्या का दस प्रतिशत जो भी कम हो, होना चाहिए, को बरकरार रखा

घर खरीददारों को सुप्रीम कोर्ट में लगा झटका, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड वैध ठहराया
सुप्रीम कोर्ट.
नई दिल्ली:

घर खरीददारों (Homebuyers) को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इन्सॉल्वेंसी (दिवालियापन) एंड बैंकरप्सी (दिवाला) कोड (IBC) के संशोधन को संवैधानिक तौर पर वैध ठहराया है. कानून के मुताबिक एक परियोजना के संबंध में एक दिवाला याचिका को बनाए रखने के लिए कम से कम अचल संपत्ति के 100 आवंटी या कुल संख्या का दस प्रतिशत जो भी कम हो, होना चाहिए. इस संशोधन को बरकरार रखा गया है. शीर्ष अदालत का फैसला दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2020 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया है. 

इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (संशोधन) अध्यादेश, 2019 (अध्यादेश) की धारा 3 को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया है कि उक्त प्रावधान, जो इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की धारा 7 में कुछ प्रावधान जोड़ता है और रियल एस्टेट आवंटियों के लिए NCLT जाने के लिए नई शर्तों को निर्धारित करता है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है. 

अध्यादेश के अनुसार एक अचल संपत्ति परियोजना के संबंध में एक दिवाला याचिका को बनाए रखने के लिए कम से कम अचल संपत्ति के 100 आवंटी या कुल संख्या का दस प्रतिशत जो कभी कम हो, होना चाहिए. याचिकाकर्ता घर खरीददार हैं जिसने IBC की धारा 7 के तहत NCLT से संपर्क किया. उनका कहना है कि प्रावधान के अनुसार नई आवश्यकता का पालन करने में विफल रहने पर उसे अपना केस वापस लेना पड़ सकता है.

याचिका के अनुसार, "वित्तीय लेनदारों" पर IBC के तहत "लेनदारों" की श्रेणी के तहत पहले से ही एक मान्यता प्राप्त "वर्ग" है और अध्यादेश वित्तीय लेनदार को आगे विघटित करता है और उस नवनिर्मित वर्ग पर एक शर्त लगाता है. यह स्थिति उन्हें कोड के तहत दूसरों के लिए उपलब्ध लाभ के लिए फिर से इकट्ठा करने से रोकती है. 

नए कानून में कहा गया है कि होम बॉयर्स एक डेवलपर को इनसॉल्वेंसी कोर्ट में ले जाना चाहते हैं तो यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी प्रोजेक्ट के कुल आवंटियों में से न्यूनतम 100 या 10% बिल्डर के खिलाफ इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने के लिए संयुक्त याचिका का हिस्सा हों.

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि अधिनियम की धारा 3 और 10, संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) का उल्लंघन कर रही हैं क्योंकि इसमें खरीददारों को, जो वित्तीय लेनदार हैं को उपायहीन बना दिया है और उनको एक पूर्व शर्त लगाकर भेदभाव के अधीन किया गया है.  

आईआरपी के लिए इनसॉल्वेंसी बैंक कोड की धारा 7 के तहत एक विशेष परियोजना के आवंटियों की न्यूनतम संख्या के रूप में आवेदन दाखिल करने के लिए आवश्यक बनाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. 

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