अलग राज्यों में FIR के बावजूद हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट दे सकते हैं जमानत: SC का फैसला

शीर्ष अदालत ने कहा, "हम दोहराते हैं कि ऐसी शक्ति केवल असाधारण और बाध्यकारी परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए. जिसका अर्थ है कि आवेदक के लिए ट्रांजिट जमानत या अंतरिम सुरक्षा से इनकार करने से अपूरणीय और अपरिवर्तनीय पूर्वाग्रह पैदा होगा."

अलग राज्यों में FIR के बावजूद हाई कोर्ट और सेशन कोर्ट दे सकते हैं जमानत: SC का फैसला

खास बातें

  • जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच का फैसला
  • धारा 438 के तहत अंतरिम सुरक्षा के रूप में SC का फैसला
  • शीर्ष अदालत ने ट्रांजिट बेल के लिए लगाई शर्तें
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि जब FIR किसी विशेष राज्य के क्षेत्र में नहीं, बल्कि एक अलग राज्य में दर्ज की गई हो, तो सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट (High Court) के पास गिरफ्तारी से अग्रिम जमानत देने की शक्ति होगी. नागरिकों के जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की संवैधानिक अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट को न्याय के हित में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अंतरिम सुरक्षा के रूप में सीमित अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) देनी चाहिए.

शीर्ष अदालत ने कहा, "हम दोहराते हैं कि ऐसी शक्ति केवल असाधारण और बाध्यकारी परिस्थितियों में ही दी जानी चाहिए. जिसका अर्थ है कि आवेदक के लिए ट्रांजिट जमानत या अंतरिम सुरक्षा से इनकार करने से अपूरणीय और अपरिवर्तनीय पूर्वाग्रह पैदा होगा." 

हालांकि, पीठ ने ऐसे मामलों के लिए शर्तें भी निर्धारित की हैं:-
- सीमित अग्रिम जमानत के आदेश पारित करने से पहले, FIR करने वाले जांच अधिकारी और लोक अभियोजक को नोटिस जारी किया जाए.
- हालांकि, उचित मामले में अदालत को अंतरिम अग्रिम जमानत देने का विवेक होगा. 
- जमानत देने के आदेश में उन कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए कि आवेदक को अंतर-राज्यीय गिरफ्तारी की आशंका क्यों है और जांच की स्थिति पर अंतरिम अग्रिम जमानत का प्रभाव पड़ सकता है. 
- जिस क्षेत्राधिकार में अपराध का संज्ञान लिया गया है, वह CrPC की धारा 438  में राज्य संशोधन के माध्यम से उक्त अपराध को अग्रिम जमानत के दायरे से बाहर नहीं करता है.
- आवेदक को क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार वाली अदालत से ऐसी जमानत मांगने में असमर्थता के बारे में अदालत को संतुष्ट करना होगा.
- दिए गए आधारों में जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और शारीरिक क्षति के लिए उचित और तत्काल खतरा हो सकता है.
- वह क्षेत्राधिकार जहां FIR दर्ज की गई है, जीवन की स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन की आशंका या मनमानी के कारण बाधाएं, चिकित्सा स्थिति या व्यक्ति की दिव्यांगता के तहत क्षेत्राधिकार में सीमित अग्रिम जमानत की मांग की जा सकती है. 
- अदालत ने कहा कि ऐसी सभी अत्यावश्यक परिस्थितियों का हिसाब देना पूरी तरह से असंभव होगा जिसमें आवेदक के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए अप्रत्याशित आदेश दिया जाएगा.
-जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की  पीठ ने सेशन जज, बैंगलोर के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका में फैसला सुनाया, जिसने आरोपी पति की  जमानत याचिका को अनुमति दे दी थी. 


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