मध्य प्रदेश में कोरोना मरीजों के इलाज में हो रही लापरवाही को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने संज्ञान में लिया है. राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के पत्र को संज्ञान में लेकर बुधवार को हाईकोर्ट में इस पर मैराथन सुनवाई हुई. सभी पक्षों को सुनने के बाद चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस अतुल श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार को बिंदुवार योजना पेश करने के निर्देश दिए हैं.हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर क्या तैयारी है.
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जरूरतमंद मरीज को रेमडिसिविर इंजेक्शन की उपलब्धता के लिए किए गए इंतजाम पर भी रिपोर्ट मांगी है. हाईकोर्ट ने सरकार को कहा कि बीमित मरीजों के पास यदि कैशलेस कार्ड है तो उसका लाभ सुनिश्चित कराया जाए. कोर्ट ने सरकार को आयुष्मान योजना के अस्पतालों को बढ़ाने का सुझाव भी दिया.
नई दिल्ली से वर्चुअल सुनवाई में शामिल हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि यह बहुत बड़ी आपदा है जिसके लिए आर्मी प्रोटोकॉल जैसे प्रबंधन की आवश्यकता है. उन्होंने प्रदेश भर के शासकीय अस्पताल, जिला अस्पताल के साथ गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पूरी तरह से फंक्शनल करने की आवाश्यकता है। डॉक्टरों के खाली पड़े पदों पर तत्काल नियुक्तियां करने की जरूरत है. वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ और संजय वर्मा ने भी पक्ष रखा. शासन की ओर से महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव ने पक्ष रखा.
सरकारी अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के इलाज में हो रही अव्यवस्था, निजी अस्पतालों में मरीजों से अनाप-शनाप बिल वसूली, ऑक्सीजन की कमी, रेमडेसिविर इंजेक्शन की किल्लत सहित कई बिंदुओं पर बात रखी. वहीं सृजन एक आशा संस्था ने इसी मामले में जनहित याचिका लगाई थी.
पत्र याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं पूरी तरह ध्वस्त हो गई हैं। सरकारी अस्पतालों में इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है. एक-एक बेड के लिए मारामारी मची हुई है. निजी अस्पतालों में इंश्योरेंस और सीजीएचएस सुविधा वाले मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है. उनसे एडवांस में नकद भुगतान के लिए कहा जा रहा है.
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