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हेमंत ने ढूंढ निकाला 4 दशक पुराना फॉर्मूला, 'लाल हरा मैत्री' से भगवा को पछाड़ने की तैयारी

झारखंड मुक्ति मोर्चा और मार्क्सवादी समन्वय समिति के नेतृत्व में लंबे समय तक झारखंड अलग राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ी गयी थी.

हेमंत ने ढूंढ निकाला 4 दशक पुराना फॉर्मूला, 'लाल हरा मैत्री' से भगवा को पछाड़ने की तैयारी
नई दिल्ली:

झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand assembly elections) को लेकर नॉमिनेशन की शुरुआत हो चुकी है. दूसरे चरण में भी जिन सीटों पर वोट डाले जाएंगे उन सीटों पर भी आज से नामांकन प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी है. एनडीए में सीटों के बंटवारे पर फैसला हो चुका है.  सभी दल ने अपने अधिकतर प्रत्याशियों के नाम का भी ऐलान कर दिया है. वहीं दूसरी तरफ इंडिया में भी सीटों को लेकर लगभग सहमति बन गयी है. हालांकि आधिकारिक ऐलान अभी बाकी है.

जेएमएम, भाकपा माले और कांग्रेस सीटों को लेकर लगभग सहमत हैं. हालांकि राजद में कुछ नाराजगी देखने को मिल रही है. इस चुनाव में लंबे समय के बाद जेएमएम और वामदल एक मंच पर आते दिख रहे हैं. झारखंड में 4 दशक के बाद लाल हरा मैत्री देखने को मिल रही है. अंतिम बार 1985 के विधानसभा चुनाव में ऐसा गठजोड़ देखने को मिला था. 

हेमंत सोरेन की क्या है रणनीति?
हेमंत सोरेन ने लंबे समय के बाद गठबंधन के लिए ऐसे दलों को तरजीह दी है. जिनके साथ एक दौर में जेएमएम के अच्छे रिश्ते रहे थे. झारखंड में जेएमएम इस चुनाव में भाकपा माले के लिए 4-5 सीट छोड़ने के लिए लगभग तैयार है.  भाकपा माले 2019 के चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा नहीं रही थी. हाल ही में भाकपा माले में झारखंड अलग राज्य आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली ए.के. रॉय की पार्टी मासस का विलय हुआ है. जिसके बाद उसके आधार वोट में मजबूती आयी है. ये ऐसे दल हैं जो लंबे समय तक जेएमएम को बिना शर्त समर्थन करते रहे हैं. 

हाल ही में हेमंत सोरेन के साथ माले नेताओं की बातचीत की एक तस्वीर सामने आयी थी. भाकपा माले के नेता और सिंदरी से पार्टी के संभावित प्रत्याशी चंद्रदेव महतो ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा था कि आदरणीय हेमंत सोरेन जी के साथ विधानसभा चुनाव को लेकर सकारात्मक बातचीत हुई. इसके साथ ही कई सीटों पर जेएमएम और भाकपा माले के कार्यकर्ताओं की संयुक्त बैठकों का दौर शुरु हो गया है. 

क्या है 'लाल हरा मैत्री'?
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना ए.के. रॉय, बिनोद बिहारी महतो और शिबू सोरेन ने की थी. उस दौरान मार्क्सवादी समन्वय समिति के तौर पर एक राजनीतिक दल अस्तित्व में था और जेएमएम की स्थापना दवाब समूह के तौर पर हुई थी. बाद के दिनों में जेएमएम की संसदीय राजनीति में एंट्री हुई लेकिन मार्क्सवादी समन्वय समिति और जेएमएम के कैडर लगभग एक ही रहे. चुनावों में दोनों दल एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ते थे. इस गठजोड़ ने अविभाजित बिहार के झारखंड हिस्से में अच्छी सफलता पायी थी. 1985 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटों पर जेएमएम और मासस के उम्मीदवारों को जीत मिली थी. एक बार फिर हेमंत सोरेन ने पुराने गठजोड़ को वापस लाया है. इस गठजोड़ को देश भर में 'लाल हरा मैत्री' के नाम से जाना जाता था.

हेमंत के दांव से बीजेपी की बढ़ सकती है परेशानी
हेमंत सोरेन के दांव से बीजेपी की परेशानी बढ़ सकती है. सिंदरी, निरसा, राजधनवार, बगोदर, चंदनक्यारी सहित कई ऐसी सीटें हैं जहां पिछले चुनाव में बीजेपी को जीत मिली थी. हालांकि पिछले चुनाव में लेफ्ट पार्टी के साथ जेएमएम का गठबंधन नहीं था. जिस कारण बीजेपी को बेहद कम अंतर से इन सीटों पर जीत मिली थी. अब इस गठजोड़ के बाद लगभग 10 ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी प्रत्याशियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. 

भाकपा माले के नेता और सिंदरी से 4 बार विधायक रहे आनंद महतो ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि मार्क्सवादी समन्वय समिति जिसका विलय हाल ही में माले में हुआ है उसके दौर से ही लाल हरा मैत्री झारखंड की पहचान रही है. ऐसे में हम उस विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पूरी मजबूती से आगे बढ़ना चाहते हैं. बीजेपी को रोकने के लिए तमाम दलों को एकजुट होना चाहिए.

झारखंड में 2 चरण में हो रहे हैं विधानसभा चुनाव
झारखंड में 2 चरण में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. पहले चरण में 43 सीटों पर 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. वहीं दूसरे चरण में 20 नवंबर को 38 सीटों पर मतदान होंगे. 23 नवंबर को मतो की गणना होनी है. साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में जेएमएम कांग्रेस गठबंधन को जीत मिली थी. 

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