अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी की. सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा है. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा. अदालत को तय करना है कि क्या राज्य विधानसभाएं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण शुरू करने में सक्षम हैं?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने सुनवाई की.
उप-वर्गीकरण का मामला 2020 का है, जब जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि राज्य सरकार "सबसे कमजोर लोगों" के लिए केंद्रीय सूची में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को उप-वर्गीकृत कर सकती हैं.
हालांकि, इस बेंच द्वारा लिया गया दृष्टिकोण एक अन्य पांच जजों की बेंच द्वारा 2004 के फैसले के विपरीत था. इस फैसले में कहा गया था कि राज्यों को एकतरफा "अनुसूचित जाति के सदस्यों के एक वर्ग के भीतर एक वर्ग बनाने" की अनुमति देना राष्ट्रपति की शक्ति के साथ छेड़छाड़ करना होगा.
विपरीत विचारों का सामना करने पर यह मामला सात जजों की पीठ को भेजा गया. पीठ को भेजे गए प्रश्नों में यह भी शामिल है कि क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है, क्योंकि SEBC श्रेणी के लिए भी इसकी अनुमति दी गई थी.
अदालत यह तय करेगी कि क्या राज्य विधानसभाएं अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण शुरू करने में सक्षम हैं.
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