विज्ञापन

'उदयपुर फाइल्‍स' को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कल भी जारी रहेगी सुनवाई, हाई कोर्ट भेजा जा सकता है मामला

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि समाज का अधिकार है कि वो फिल्म देखे या ना देखे. हर काल्पनिक फिल्म किसी ना किसी सच्ची घटना पर आधारित होती है. उन्‍होंने कहा कि ⁠जब कोई घटना होती है अच्छी या बुरी तो लेखक और फिल्म वाले कुछ ना कुछ थीम बनाते हैं.

'उदयपुर फाइल्‍स' को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कल भी जारी रहेगी सुनवाई, हाई कोर्ट भेजा जा सकता है मामला
  • सुप्रीम कोर्ट में उदयपुर फाइल्स फिल्म की रिलीज को लेकर सुनवाई हुई. इस मामले में कल भी सुनवाई जारी रहेगी.
  • केंद्र सरकार ने कहा कि फिल्म आतंकवाद पर आधारित है और किसी समुदाय को निशाना नहीं बनाती है.
  • सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई की.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्‍ली :

फिल्‍म उदयपुर फाइल्‍स की रिलीज को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई. इस मामले में अभी तक कोई फैसला नहीं सुनाया गया है और शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वो मामले को दिल्‍ली हाई कोर्ट फिर से भेज सकता है. सुप्रीम कोर्ट कल होने वाली सुनवाई पर इस बात पर सुनवाई करेगा कि फिल्‍म की रिलीज पर रोक का अंतरिम आदेश जारी रहेगा या नहीं. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने सुनवाई की.

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कि यह फिल्म अपराध को लेकर है, किसी समुदाय को लेकर नहीं. ⁠इसमें किसी समुदाय को नहीं, बल्कि आतंकवाद को निशाना बनाया गया है. ये आतंक को दर्शाती है. अब आतंक एक वैश्विक घटना है जिसका हम सभी सामना कर रहे हैं.

फिल्‍म किसी भी समुदाय को बदनाम नहीं करती: तुषार मेहता

साथ ही कहा कि ये आरोपी वही लोग हैं, जिन्होंने खुद फेसबुक पर पोस्ट किया था कि उन्होंने उसका गला काटा. इस पर आरोपी जावेद की ओर से मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि ये आरोपी नहीं हैं. वो 19 साल का है और ⁠उसने कुछ भी पोस्ट नहीं किया.

तुषार मेहता ने कहा कि फिल्म अपराध पर केंद्रित है और किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाकर नहीं है. संवाद सामान्य हैं. आतंकवाद के संदर्भ संदर्भ-विशिष्ट हैं. इसकी ⁠विषयवस्तु किसी भी विदेशी संबंध को खतरा नहीं पहुंचाती है. ⁠समिति के समक्ष स्क्रीनिंग की गई. ⁠समिति ने विदेश मंत्रालय को भी अपनी सिफारिशों के लिए आमंत्रित किया. ⁠सेंसर बोर्ड (CBFC) द्वारा निर्धारित 55 कट्स लागू किए गए. ⁠फिल्म किसी भी समुदाय को बदनाम नहीं करती है और इसमें दिखाए गए सभी पात्र काल्पनिक हैं. हालांकि आरोपी की वकील ने कहा कि इससे ट्रायल प्रभावित होगा.

न्यायिक अफसरों को अंडर एस्टीमेट मत कीजिए: जस्टिस सूर्यकांत

सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप हमारे न्यायिक अफसरों को अंडर एस्टीमेट मत कीजिए. उनकी पूरी ट्रेनिंग होती है. ⁠वो डयूटी बाउंड होते हैं कि केस को तथ्यों के आधार पर डिसाइड करें. साथ ही कहा कि वकील, जनता अपनी-अपनी टिप्पणियां कर सकते हैं, ⁠लेकिन न्यायिक अधिकारी का कर्तव्य है कि वह मामले का फैसला रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री के आधार पर ही करे और कुछ नहीं.

वकील मेनका गुरुस्वामी ने अदालत में कहा कि समाज पूर्वाग्रह से ग्रस्त है.

वहीं जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जजों की दुर्दशा देखिए. अगर वे बरी करते हैं, तो समाज तरह-तरह के शब्दों का इस्तेमाल करता है. ⁠न्यायपालिका को इस सब बकवास से अप्रभावित रहना चाहिए. उन्‍होंने कहा कि हममें से ज्‍यादातर लोग सुबह अखबार नहीं पढ़ते हैं. ⁠हम क्यों पढ़ें?

समाज का अधिकार है कि वो फिल्म देखे या ना देखे: जस्टिस सूर्यकांंत 

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि समाज का अधिकार है कि वो फिल्म देखे या ना देखे. हर काल्पनिक फिल्म किसी ना किसी सच्ची घटना पर आधारित होती है. उन्‍होंने कहा कि ⁠जब कोई घटना होती है अच्छी या बुरी, लेखक, फिल्म वाले कुछ ना कुछ थीम बनाते हैं. आपकी दलीलें माने तो ये सब बंद हो जाएगा.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 26/11 और अक्षरधाम हमले जैसी वास्तविक घटनाओं पर फिल्में और वेब सीरीज बनी हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हम कुछ लोगों की बात मानेंगे तो एक दिन भी अदालत नहीं चला पाएंगे. अदालत को हर तरह की बकवास से प्रभावित नहीं होना चाहिए और सिर्फ केस की फाइल पर ही ध्‍यान देना चाहिए. हममें से ज्‍यादातर लोग तो अखबार भी नहीं पढ़ते, ना जाने क्या क्या लिखा जाता है.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि हाई कोर्ट इस मुद्दे पर फैसला कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपको CBFC के संशोधन के फैसले को चुनौती देने का अधिकार है. कपिल सिब्बल ने मांग की कि हाई कोर्ट को फिल्‍म देखने दीजिए और फैसला लीजिए. वहीं मेनका गुरुस्वामी ने दलील दी कि सिनेमैटोग्राफर एक्ट की धारा 6 केंद्र सरकार को कट्स की सिफारिश करने का अधिकार नहीं देती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस में नहीं पड़ते हैं, अगर उन्हें कोई चीज सही नहीं लगती है तो इससे उनका सुझाव देने का अधिकार नहीं छीन सकते हैं.

प्रोड्यूसर के वकील ने क्‍या कहा?

प्रोड्यूसर के वकील गौरव भाटिया ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कहा था कि संशोधन का अर्थ यह भी होगा कि अथॉरिटी को एडिट करने का अधिकार होगा. कानून कहता है कि सीबीएफसी ने मुझे कानूनी तौर पर वैध सर्टिफिकेट दिया था. कमेटी ने मेरे पक्ष में फैसला सुनाया. फिर भी मेरी फिल्म रिलीज नहीं हो रही है.

उन्‍होंने कहा कि आरोपी जावेद का फिल्म में कोई जिक्र भी नहीं है. उसने सुप्रीम कोर्ट में झूठा हलफनामा दिया है. उसकी उम्र कहीं 19 तो कहीं 22 साल है. कानून उस व्यक्ति के साथ है, जिसके पास वैध प्रमाणपत्र है.

भाटिया ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजमेंट का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि जब एक बार CBFC से किसी फिल्म की रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट मिल गया तो फिल्म की रिलीज पर रोक का कोई मामला नहीं बनता है. हालांकि कपिल सिब्‍बल ने कहा कि रिलीज पर रोक जारी रहनी चाहिए.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com