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This Article is From Sep 01, 2022

तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने से मना करने का कोई कारण नहीं है - सुप्रीम कोर्ट

गुजरात सरकार ने तीस्ता की जमानत का विरोध करते हुए कहा है कि सीतलवाड़ ने वरिष्ठ राजनीतिक नेता के इशारे पर साजिश रची और इसके लिए उसे बड़ी रकम मिली.

तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने से मना करने का कोई कारण नहीं है - सुप्रीम कोर्ट
तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है
नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर उठाए बड़े सवाल उठाए हैं. SC ने गुजरात सरकार से पूछा है कि तीस्ता के खिलाफ क्या सबूत और सामग्री जुटाई गई, क्या पुलिस हिरासत से कोई फायदा मिला और मामले की जांच कहां तक पहुंची? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक तो FIR सिर्फ कोर्ट के आदेशों पर लगती है. शीर्ष अदालत ने कहा कि तीस्ता पर कोई UAPA जैसे आरोप नहीं जो जमानत न दी जाए. ये साधारण सीआरपीसी धाराएं हैं. ये महिला अनुकूल फैसले की हकदार है. मामले में अब शुक्रवार दो बजे सुनवाई होगी. इससे पहले गुजरात दंगे में तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी के खिलाफ सबूत गढ़ने की आरोपी तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. CJI यू यू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धुलिया की बेंच यह सुनवाई कर रही है. गुजरात सरकार ने तीस्ता की जमानत का विरोध करते हुए कहा है कि सीतलवाड़ ने वरिष्ठ राजनीतिक नेता के इशारे पर साजिश रची और इसके लिए उसे बड़ी रकम मिली. सुप्रीम कोर्ट की बेंच की सुनवाई से एक दिन पहले हलफनामा दायर किया गया. 

गुजरात की अदालत में अपने रुख  की तरह  गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर कर कहा है कि 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित सबूतों को गलत साबित करने के लिए एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ FIR केवल  SC के फैसले पर आधारित नहीं हैं बल्कि सबूतों द्वारा समर्थित है. अब तक की जांच में सीतलवाड़ के खिलाफ 2002 के सांप्रदायिक दंगों से संबंधित सबूतों को गढ़ने और गलत साबित करने का एक प्रथम दृष्टया मामला सामने आया है. अब तक की गई जांच में प्राथमिकी की सामग्री को प्रमाणित करने के लिए अकाट्य सामग्री को रिकॉर्ड में लाया गया है. आवेदक ने अन्य आरोपी व्यक्तियों के साथ साजिश को अंजाम देकर राजनीतिक, वित्तीय और अन्य भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए आपराधिक कृत्य किए थे.

तीस्ता की ओर से पेश हुए वरिष्‍ठ वकील कपिल सिब्‍बल ने कहा, "मेरे बारे में मुकदमा दर्ज कराया गया कि बड़ी साजिश की बात कही जा रही है. सुप्रीम कोर्ट की पहल पर एसआईटी भी बनाई गई लेकिन एसआईटी दस्तावेजों पर जांच नहीं कर रही. उन दस्तावेजों पर नहीं हो रही जो तहलका टेप वेरिफाइड थे. सीबीआई ने भी उन टेप की विश्वसनीयता की तस्दीक की है.सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि तीस्ता की जमानत याचिका हाईकोर्ट के सामने लंबित है इसलिए हमारी आपत्ति तो इस याचिका के सुनवाई योग्य होने पर ही है.सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देने पर पुनर्विचार याचिका ही आदर्श प्रक्रिया है. जो दलील दी जा रही है वह बिना पुनर्विचार दायर किए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार की तरह है. सिब्बल ने कहा कि इस तरह एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती.ये साफ नहीं किया गया कि आखिर अभियुक्त ने किस तरह के सबूत कैसे गढ़े हैं. हमें एफआईआर की डिटेल बतानी तो चाहिए थी. सिर्फ मनगढ़ंत बताया गया है जबकि मेरे पास सबूत गढ़ने के भी सबूत हैं. सब सरकारी एजेंसी से तसदीक किए हुए हैं. उन्‍होंने कहा कि इस कोर्ट में सारे दस्तावेज दाखिल कर दिए गए हैं. क्या हैं आरोप? जालसाजी. एफआईआर में यह नहीं बताया गया है कि दस्तावेज क्या है? SC का फैसला 24 जून, 2022 को दिया गया था और यह FIR  25 जून को दर्ज की गई थी. ये वो दस्तावेज हैं जो कोर्ट में दाखिल किए गए हैं जिसके आधार पर वे कहते हैं कि मैंने झूठी गवाही दी है.

सिब्बल ने कहा, "एफआईआर का बड़ा हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को फिर से प्रस्तुन किया गया है.लिखा गया है , आपराधिक साजिश, जालसाजी, दस्तावेजों को गढ़ना और गवाहों को पढ़ाकर और प्रभावित करके निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए झूठे सबूतों को अदालत में रखना. मुझे नहीं सुना गया और इन पहलुओं पर ठीक से SC ने कोई हलफनामा नहीं मांगा. इन सभी पहलुओं पर बड़े पैमाने पर सुनवाई नहीं कीतो मुझ पर कैसे मुकदमा चलाया जा सकता है."उन्‍होंने कहा, "गुजरात पुलिस ने परजूरी और झूठे और जाली दस्तावेजों के आधार आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की है. गुजरात पुलिस की एफआईआर कोर्ट ऑर्डर पर आधारित है ना कि दस्तावेजों और उपलब्ध कराए गए सबूतों पर. मुझसे कभी अपनी चीजों पर सफाई या स्पष्ट करने को नहीं कहा. अब वो कह रहे हैं कि आपके खिलाफ मुकदमा है."सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "तीस्ता को कोई विशेष उपचार देने की आवश्यकता नहीं है. इन सभी को  हाईकोर्ट के समक्ष जाना चाहिए. किसी अन्य सामान्य अभियुक्त की तरह हाईकोर्ट जाना चाहिए. वास्तव में इस प्रकार की स्थिति में, यदि कोई अन्य सामान्य आरोपी इस न्यायालय में पहुँचता, तो क्या उसकी बात सुनी जाती. हजारों अन्य वादी इंतजार कर रहे हैं. ऐसा कोई मामला नहीं है जहां एक आरोपी इस तरह अदालत में पहुंचा हो और राहत दी गई हो. राज्य किसी भी आरोपी के लिए कोई विशेष व्यवहार नहीं चाहता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता  ने कहा कि सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील लंबित है तो वो सुप्रीम कोर्ट कैसे आ सकती है. SG ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों के मुताबिक भी सुप्रीम कोर्ट को जमानत पर फैसला करने से पहले हाईकोर्ट का फैसला भी देखना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को इंतजार कर लेना चाहिए. SC को ऐसे मामलों में सीधे एसएलपी सुनने से परहेज करना चाहिए. CJI ने फिर पूछा-तीस्ता के खिलाफ क्या सामग्री है ? जांच की दिशा किधर जा रही है?'

CJI ने पूछा कि कितने और लोग गिरफ्तार हैं तो सीजेआई ने कहा- 2. सीजेआई ने कहा कि ये तो आप मानते हैं कि आपकी हिरासत में पूछताछ पहले ही हो चुकी है. CJI ने हाईकोर्ट द्वारा 6 हफ्ते का वक्त देने पर भी सवाल उठाए और कहा कि तीन अगस्त को नोटिस जारी कर 19 सितंबर को केस की सुनवाई तय की. क्या बेल मामले में 6 हफ्ते का समय देना चाहिए?CJI ने कहा कि ये एक महिला का क्या मामला है. यह हमे चिंतित कर रहा है कि हाईकोर्ट ने 6 हफ्ते बाद केस लगाया. क्या हम आंखें बंद कर लें अगर हम अंतरिम जमानत दे दें तो? एसजी ने कहा किआप हाईकोर्ट को पहले सुनने को कह दें, इसे स्पेशल केस ना बनाएं. एसजी ने कहा कि यह हत्या के मामले से ज्यादा गंभीर है? सीधे इस केस को ना सुना जाए. इस पर CJI ने कहा, तो कल से हम जमानत देने के खिलाफ सीधे केंद्र की सभी याचिकाओं को खारिज कर देंगे? मामले पर अब शुक्रवार दो बजे से सुनवाई होगी.

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