
- सुप्रीम कोर्ट ने MCD को 500 साल पुराने शेख अली गुमटी मकबरे के पुनर्स्थापन में मलबा न हटाने पर कड़ी फटकार लगाई.
- कोर्ट ने MCD आयुक्त को पेश होने का आदेश दिया और अगली बार आदेश न मानने पर अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी.
- मकबरे पर अवैध कब्जा था, जहां एमसीडी अनधिकृत कार्यालय और पार्किंग चला रहा था, जिसे ध्वस्त किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को 500 साल पुराने शेख अली ‘गुमटी' मकबरे के पुनर्स्थापन के लिए मलबा न हटाने पर कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या यह मामला एमसीडी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के बीच “ईगो की टकराहट” है? मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एमसीडी आयुक्त को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया. दोपहर बाद आयुक्त के अदालत में आने पर शीर्ष अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि वह एमसीडी के रवैये से “व्यथित और असंतुष्ट” है.
कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि अगली बार दो हफ्ते बाद आदेशों का पालन नहीं हुआ तो स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट कमिश्नर गोपाल शंकरणारायण ने बताया कि दो महीने पहले ध्वस्त अवैध निर्माण का मलबा अभी भी स्थल पर पड़ा है. इस पर अदालत ने एमसीडी की वकील गरिमा प्रसाद से भी जवाब मांगा.
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि इस मामले की दिन-प्रतिदिन निगरानी की जाए और एक वरिष्ठ अधिकारी इसकी जिम्मेदारी संभाले. साथ ही कहा गया कि सफाई, स्वच्छता और मलबा हटाने का कार्य रोजाना किया जाए. अब मामला 18 सितंबर को फिर सुना जाएगा. जिस दिन एमसीडी और ASI को हलफनामा दायर करना होगा.
दरअसल, यह 500 साल पुराना पुरातात्विक महत्व का मकबरा है जिस पर डिफेंस कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन दिल्ली ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा था और जहां एमसीडी एक अनधिकृत कार्यालय और पार्किंग चला रहा था.
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ महीनों से इस मामले की निगरानी कर रही थी. चूंकि जस्टिस धूलिया पिछले महीने सेवानिवृत्त हो गए थे, इसलिए अब इस मामले की सुनवाई जस्टिस अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी कर रहे हैं. दोनों जजों ने एमसीडी के हालिया हलफनामे पर आपत्ति जताई कि गुमटी के आसपास का मलबा हटा दिया गया है और अब केवल वही मलबा बचा है जो जीर्णोद्धार प्रक्रिया के दौरान हुआ था.
यह तब हुआ जब न्यायालय द्वारा नियुक्त कमिश्नर, वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने दलील दी कि उन्होंने कल शाम 4:45 बजे दौरा किया था और वहा न्यायालय के आदेशों के तहत तीन महीने पहले हुए अवैध निर्माणों के ध्वस्तीकरण का मलबा पड़ा है. इस पर, जस्टिस भट्टी ने एमसीडी की वकील, वरिष्ठ वकील, गरिमा प्रसाद से पूछा कि क्या इस मामले में कोई अहंकार का मुद्दा है? एमसीडी देश का सबसे बड़ा निगम है. लेकिन आपके पास आखिरी सवाल का जवाब नहीं होगा. गोपाल शंकरनारायण द्वारा दायर की गई तस्वीरें देखें, जहां तक मैं समझता हूं, संसाधनों से युक्त एमसीडी को सफाई का काम करने में मुश्किल से आधे घंटे से एक घंटे का समय लगता है. जब तक कोई यह नहीं सोचता कि आदेश आते रहेंगे, मैं वही करता रहूंगा जो मैं करता आ रहा हूं. 4-5 इंच का मलबा साफ करने में कितना समय लगता है? अगर कोई गणमान्य व्यक्ति आ रहा है, तो आपको किसी खास जगह को साफ करने के लिए कहा जाता है, आप 2 घंटे में सफाई कर देंगे. क्या आप अदालत के आदेश के प्रति यही सम्मान दिखाते हैं? मुझे खेद है, मुझे उच्च न्यायालय के जज के रूप में पर्याप्त अनुभव था. देश के सबसे खराब ब्रह्मपुरम मलबे से निपटने का मुझे अनुभव था. वहां भी, मुझे ऐसी समस्या नहीं मिली जो मुझे यहां मिल रही है.
पीठ ने आदेश दिया कि मामले पर विचार करने के बाद, हमें अदालत और एमसीडी के बीच दो महीने से संवादहीनता का एहसास हुआ है. इसलिए हम चाहते हैं कि एमसीडी आयुक्त आज दोपहर 3 बजे अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हो ताकि अदालत जो भी आदेश पारित करे, उसे पूरी गंभीरता से लिया जाए. हम यह आदेश देने के लिए बाध्य हैं क्योंकि हमने एमसीडी को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त समय दिया है, लेकिन हम यह देखने के लिए बाध्य हैं कि एमसीडी के आचरण और उसके रुख ने हमारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं