प्रधानमंत्री आवास योजना का नारा है ‘हाउसिंग फॉर ऑल', लेकिन मध्यप्रदेश की जमीनी हकीकत में यह 'सिस्टम के मुनाफे' का प्रोजेक्ट बनकर रह गया है. कटनी में 100 करोड़ की जमीन को महज 25 करोड़ में निपटाने का खेल हो या सतना के 'भूतिया' गांव में मृतकों के नाम पर मकान बांटने की कहानी, हर तरफ गरीबों के आशियाने पर भ्रष्टाचार का साया है. राजधानी भोपाल तक में हितग्राही किस्त और किराए की दोहरी मार झेल रहे हैं. एनडीटीवी की इस विशेष रिपोर्ट में देखिए कि कैसे कागजों पर तो फाइलें मोटी होती गईं, लेकिन गरीब की छत का इंतजार 7 साल बाद भी खत्म नहीं हुआ.
कटनी का 'झिंझरी' कांड: 100 करोड़ की जमीन और कागजी खेल
कटनी के झिंझरी में 105 करोड़ की लागत से 1512 घर बनने थे, लेकिन आज यह प्रोजेक्ट करीब-करीब भ्रष्टाचार का स्मारक बन चुका है. आरोप है कि हाईवे की बेशकीमती जमीन जिसका रिजर्व प्राइस कम आंका गया, उसे महज 1 लाख के अंतर पर एक पार्टनर फर्म को दे दिया गया. तत्कालीन आयुक्त सत्येंद्र धाकरे ने माना था कि "ठेकेदार ने साल भर से काम बंद किया है और 7 करोड़ का अधिक भुगतान हुआ है, जिसकी रिकवरी के लिए नोटिस दिया गया है." वहीं वर्तमान आयुक्त तपस्या परिहार कहती हैं कि शिकायत मिली है, परीक्षण करा रहे हैं. हालांकि प्रारंभिक तौर पर कार्रवाई विधिवत लग रही है. दूसरी तरफ, असोटेक विंडसर के सीईओ राज श्रीवास्तव का दावा है कि "आरोप गलत हैं, प्रोजेक्ट 6 सालों से बंद था जिसे हम ठीक करके लोगों को सुविधाएं दे रहे हैं.
हितग्राहियों की सिसकियां: "7 साल का इंतजार और खोखले वादे"
दूसरी तरफ सिस्टम की इस खींचतान में गरीब बुरी तरह पिस रहा है. हितग्राही रानी बेन कहती हैं, "7 साल हो गए, कोई सुनता नहीं है, क्या गरीब आदमी ऐसे ही रह जाएगा?" वहीं ममता बेन का दर्द है कि "20 हजार जमा किए थे, हम गरीब लोग कहां तक भटकें?" स्थानीय पार्षद तुलसा बेन इसकी तस्दीक करती हैं और बताती हैं कि "2019 में पैसा जमा कराया गया था, लेकिन हितग्राही आज भी परेशान हैं." यह उन हजारों परिवारों की आवाज है जिनका पैसा और भरोसा दोनों सिस्टम ने तोड़ दिया है.
भोपाल: राजधानी में 'दोहरी मार' झेलता मध्यम वर्ग
भोपाल में तो हालत यह है कि हितग्राही अब आत्महत्या तक की धमकी दे रहे हैं. यहां एक हितग्राही रिंकी नंदा ने NDTV को बताया- "सैलरी इतनी नहीं है कि किस्त और किराया दोनों भर सकें, पति अब रैपीडो चलाने लगे हैं ताकि घर चल सके." नीतेश व्यास का भी यही सवाल है कि "प्रधानमंत्री पर भरोसा करके मकान लिया था, 3 साल बाद भी न पजेशन मिला न अधिकार." यहां घर का सपना अब एक अंतहीन बोझ बन गया है जिसमें ईएमआई बाउंस हो रही है और बुनियादी सुविधाओं का नामोनिशान नहीं है.
सतना: फूस की छत और सरकारी 'पक्का मकान'
सतना के अकौना गांव की कहानी किसी मजाक जैसी है. यहां गरीब आज भी धुएं के बीच रहने को मजबूर है. ग्रामीण राजेश केवट ने NDTV को बताया कि गरीबों को घर नहीं मिलता, बड़े लोगों को मिल जाता है. राजकुमार केवट ने इसे 'प्रशासन की मनमानी' बताया, तो मानस केवट ने कहा कि "गरीबों का नाम ही नहीं आया.एक स्थानीय महिला ने गुस्से में पूछा कि "पात्रों के नाम नहीं हैं और जिनके पास खेती है उन्हें मिल गया, हम कागज देते हैं तो वे गुम कर देते हैं और पैसा मांगते हैं.
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